मंगलवार, 12 जुलाई 2016

आत्मा का पर्यटन !

चुनाव की आहट आते ही क़दमों में जान आ गई है।नेता जी मोबाइल हो गए हैं।जिस कम्पनी का नेटवर्क अच्छा है,टॉकटाइम भी फ्री है,उसी का कनेक्शन लेने में समझदारी मानी जाती है।ऐसे समय में नेता जी खुद को रीसेट करते हैं ताकि अनावश्यक मेमोरी डिलीट हो जाय।इससे नयापन तो आता ही है,तगड़ा स्पेस भी मिलता है।उनको पुराना कुछ याद भी नहीं रहता।वे अचानक स्मृतिदोष का शिकार हो जाते हैं।पिछले सारे बयान इस आधार पर स्वतः निरस्त हो जाते हैं।


नेता जी ने पुराना घर छोड़ दिया है।वहाँ उनका दम घुट रहा था।इससे पहले जब यहाँ आए थे,तब भी यही लक्षण थे।वे तो बस बीमारी का सही इलाज करना चाहते हैं।जनसेवा के लिए दम होना पहली शर्त है।वे नशे के भी खिलाफ़ हैं,इसलिए वे दम के लिए दूसरे दल पर लद लेते हैं।इस क्रिया से उनमें और उस दल में यानी दोनों में दम बहाल हो जाता है।कई बार दूसरे दल में लदने वाले का दम इतना भारी होता है कि उस दल का ही दम निकलने लगता है।ऐसा विलय अचानक प्रलय में बदल जाता है।इससे संभावित क्रांति वहीँ ठिठक जाती है।


नेता जी की मजबूती उनकी निष्ठा है।यह ‘पंचकन्या’ की तरह हमेशा पवित्र बनी रहती है।वे जहाँ-जहाँ जाते हैं,उनके साथ चलती है।वे इस मामले में बड़े निष्ठुर हैं।किसी भी पद का लोभ उन्हें आसक्त नहीं करता।वे सबको आश्वस्त करते हैं कि उनकी लड़ाई सिद्धांतों की है।ऐसा संकल्प सुनते ही सारे सिद्धांत उनकी मुट्ठी में दुबक जाते हैं।


वह पिछड़ा समय था जब सुर बदलने में थोड़ा वक्त लगता था।उधर मोबाइल सिंगल से डबल सिम हुआ और इधर नेता जी भी अपडेट हो गए।पलक झपकते ही सुर बदल जाता है।एक ही काया में कई रूप धरने का हुनर आ चुका है।इससे राजनीति को बड़ा फायदा हुआ।दल और नेता दोनों के पास विकल्पों का आसमान खुल गया है।खुले आसमान में घाम,बारिश और शीत सहने का दम सबके पास नहीं होता।नेता जी को इसका अभ्यास है।इस मायने में वे सच्चे योगी हैं।उनकी आत्मा ही नहीं काया भी कलुषरहित हो गई है।


नेता जी के आवागमन को दलबदल कहना नादानी है।यह तो विशुद्ध पर्यटन है।ये बातें संसारी लोग नहीं समझ सकते।


कोई टिप्पणी नहीं:

धुंध भरे दिन

इस बार ठंड ठीक से शुरू भी नहीं हुई थी कि राजधानी ने काला कंबल ओढ़ लिया।वह पहले कूड़े के पहाड़ों के लिए जानी जाती थी...