आपको चिंकारा की चीत्कार भले सुनाई दी हो,पर हमें लगता है कि उसे मुक्ति मिली।पिछले बीस सालों से वह नन्हीं जान रोज मर रहा था।फैसला आते ही वह सांसारिक बन्धनों से,कोर्ट-कचहरी से मुक्त हो गया।जब यह साफ़ हो गया कि उसे किसी ने नहीं मारा तब कहीं जाकर उसे सुकून मिला।इस फैसले से यह भी जाहिर हुआ कि हिरन जंगल में हरे-भरे पेड़ों के बीच ही लम्बी छलांग नहीं मार सकता,वह किसान की तरह पेड़ से लटक भी सकता है।जंगल में वह भले घूमता हो पर राज आदमी का ही चलता है।यह भी सबक मिलता है कि पैर ज्यादा होने से दिमाग नहीं बढ़ जाता।चौपाया दोपाए के नीचे ही रहेगा।
इधर ‘सुल्तान’ रुपहले परदे पर धूम मचाए है।सिनेमा के जानकार उसके खाते में रोज करोड़ों जोड़ते जा रहे हैं।कहते हैं कि ‘सुल्तान’ की रफ़्तार को सुल्तान भी नहीं रोक सकता।एक बार जो उसने कमिटमेंट कर ली फिर वह अपनी भी नहीं सुनता।यह बात उस अपढ़ और सिनेमा-द्रोही हिरन को नहीं पता थी।जब हमारा नायक महाबलियों को पलक झपकते ही धूल में मिला देता है तो यह तो ‘छौना’ था।उसकी देह के पास से गुजरने वाली हवा ने ही उसे उड़ा दिया।यह पाँच सौ करोड़ी-हवा थी।दो कौड़ी के हिरन की अगर कुछ कीमत होती भी है तो उसके मरने के बाद।इसीलिए उसकी खाल खींचने के लिए कुछ लोग हमेशा तत्पर रहते हैं।पिछले बीस सालों से यही हो रहा था।अब जाकर नामुराद हिरन को मुक्ति नसीब हुई है।
कुछ लोग अभी भी ‘सुल्तान’ पर उँगली उठा रहे हैं,उन्हें इस पर पुनर्विचार करने की ज़रूरत है।जो लोग आज तक ठीक से ‘आदम-राज’ का अध्ययन नहीं कर पाए,वे ‘जंगलराज’ के अलिखित कानून पर सवाल उठा रहे हैं।न्याय का मतलब सिर्फ़ यह नहीं कि ‘बड़े आदमी’ और ‘छोटे आदमी’ पर एक ही धारा लगे।ख़ास बात यह कि विपरीत धारा में भी कौन पार उतर सकता है ? ’ख़ास आदमी’ का विधायक और ‘आम आदमी’ का विधायक एक-सा नहीं हो सकता।कायदन ‘आम’ को आदमी बने रहने की तमीज तो आई नहीं अभी,और चला है विधायक बनने।असल ‘विधायक’ वह जो विधायी नियमों से परे हो।कानून का ख़ास होने के लिए सुल्तान होना या सुल्तान का ख़ास होना ज़रूरी है।और आप बात करते हैं उस हिरन की,जिसके पास ख़ास को देने के लिए एक वोट भी नहीं ! ऐसे आदमी,विधायक और हिरन जितनी जल्दी मुक्ति पा जाएँ,भला होगा।
इधर ‘सुल्तान’ रुपहले परदे पर धूम मचाए है।सिनेमा के जानकार उसके खाते में रोज करोड़ों जोड़ते जा रहे हैं।कहते हैं कि ‘सुल्तान’ की रफ़्तार को सुल्तान भी नहीं रोक सकता।एक बार जो उसने कमिटमेंट कर ली फिर वह अपनी भी नहीं सुनता।यह बात उस अपढ़ और सिनेमा-द्रोही हिरन को नहीं पता थी।जब हमारा नायक महाबलियों को पलक झपकते ही धूल में मिला देता है तो यह तो ‘छौना’ था।उसकी देह के पास से गुजरने वाली हवा ने ही उसे उड़ा दिया।यह पाँच सौ करोड़ी-हवा थी।दो कौड़ी के हिरन की अगर कुछ कीमत होती भी है तो उसके मरने के बाद।इसीलिए उसकी खाल खींचने के लिए कुछ लोग हमेशा तत्पर रहते हैं।पिछले बीस सालों से यही हो रहा था।अब जाकर नामुराद हिरन को मुक्ति नसीब हुई है।
कुछ लोग अभी भी ‘सुल्तान’ पर उँगली उठा रहे हैं,उन्हें इस पर पुनर्विचार करने की ज़रूरत है।जो लोग आज तक ठीक से ‘आदम-राज’ का अध्ययन नहीं कर पाए,वे ‘जंगलराज’ के अलिखित कानून पर सवाल उठा रहे हैं।न्याय का मतलब सिर्फ़ यह नहीं कि ‘बड़े आदमी’ और ‘छोटे आदमी’ पर एक ही धारा लगे।ख़ास बात यह कि विपरीत धारा में भी कौन पार उतर सकता है ? ’ख़ास आदमी’ का विधायक और ‘आम आदमी’ का विधायक एक-सा नहीं हो सकता।कायदन ‘आम’ को आदमी बने रहने की तमीज तो आई नहीं अभी,और चला है विधायक बनने।असल ‘विधायक’ वह जो विधायी नियमों से परे हो।कानून का ख़ास होने के लिए सुल्तान होना या सुल्तान का ख़ास होना ज़रूरी है।और आप बात करते हैं उस हिरन की,जिसके पास ख़ास को देने के लिए एक वोट भी नहीं ! ऐसे आदमी,विधायक और हिरन जितनी जल्दी मुक्ति पा जाएँ,भला होगा।
1 टिप्पणी:
तीखा व्यंग्य।राजनीति की तल्ख सच्चाइयों को छूता हुआ।
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