पहले उत्तराखंड और
अब अरुणाचल में घड़ी उल्टा घूम गई है।इसने सारी गणित बिगाड़ दी।तब की बात और थी जब
गणित का मतलब केवल जोड़तोड़ और गुणा-भाग होता था।घड़ी के घूमने से अब भाग्य हावी हो
गया है।हो सकता है घड़ी में यह गुण नेताओं की संगत से आ गया हो।सड़क पर आ चुके रंक को
सिंहासन पर बैठा देना अब घड़ी के ही बूते की बात है।इसके घूमने से खुशियों के लड्डू
ही नहीं फूटते,जमी-जमाई कुर्सी भी रेत की मानिंद ढह जाती है।जो काम तीर-तलवार से संभव
नहीं,वह पतन्नी-सी सुई कर रही है।
घड़ी के उल्टा घूमने
का यह मुफीद समय है।भाग्य पर भरोसा करने वाले इससे बड़े खुश हैं।वे चाहते हैं कि
ऐसी चमत्कारी घड़ी उनकी हर मुराद पूरी कर दे।अगर ऐसा होने लगा तो चीजें बड़ी तेजी से
बदल जाएँगी।एक तरफ जहाँ कबाड़ख़ाने में जा चुकी खादी फिर से कलफ़ पाकर चमचमा जाएगी,वहीँ
दूसरी ओर मलमली-कुर्सी पर जमा पैर काँटा चुभने से ‘कलप’ उठेगा।अचानक सुहाने दिन
काली रातों में बदल जाएँगे।मीठी नींद ‘अनिद्रा’ की बीमारी बन जाएगी।
जब से ऐसी खबर आई
है,हमारे दोस्त गुप्ता जी अपने घर की दीवाल घड़ी को कई बार ताक चुके हैं।उसे किस
एंगल से और कितना घुमाया जाय इसकी संभावित योजना भी तैयार कर ली है।वे अपनी घड़ी के
काँटे को एक सौ अस्सी डिग्री घुमाकर ‘अच्छे दिनों’ से ‘बुरे दिनों’ की ओर ले जाना चाह
रहे हैं।उन्हें नहीं पता कि ऐसा करने के लिए घड़ी फुल चार्ज होनी चाहिए।हो सकता है
कि उल्टा घुमाते वक्त घड़ी ऐसी जगह ठिठक जाए,जब वे निरे कुँवारे थे।जब हमने ऐसी
आशंका जाहिर की,वे सिहर गए।उनको सत्तर वाली दाल दो सौ में मंजूर है पर अपनी
वैवाहिक स्थिति में इत्ता उलटफेर कतई नहीं।इसी साल बमुश्किल उनके चुन्नू को नर्सरी
में दाखिला मिला है।घड़ी घुमाकर वे उसे गँवाना नहीं चाहते।
सोचिए,भविष्य में हर
आदमी के पास ऐसी ‘टाइम-मशीन’ हो जाए तो क्या होगा ! हमें ‘वेदों की ओर लौटें’ या ‘अंग्रेजों
भारत छोड़ो’ जैसे नारे लगाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।सुई घुमाते ही पूरा कश्मीर
हमारा और ईराक सद्दाम का हो जाएगा।मुक्तिप्रदायिनी गंगा भगीरथ की जटाओं से निकलकर हमारे
सामने निर्मल रूप में प्रवाहित होने लगेंगी।इस सबसे बड़ी बात यह होगी कि ‘अबकी
बार,मंहगाई पर वार’ का नारा फिर से गूँजने लगेगा।हमें ऐसी घड़ी की सख्त ज़रूरत है जो
पलक झपकते ही नेताओं की तरह ‘यू-टर्न’ ले ले।
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