१५/१०/२०१२ को डीएलए में प्रकाशित ! |
दफ्तर से बाहर निकलते ही मैंने कार्टून
जी को घेरना चाहा पर वे किसी पतली गली की तलाश में लगे। मैं भी कच्चा खिलाड़ी नहीं
हूँ,मैंने
सोच रखा था कि बहुत दिनों से महाशय चर्चा में हैं तो इनसे ज़रूर मिला जाय।कार्टून
जी बचते-बचाते हुए कैम्पस के बाहर निकलने ही वाले थे कि मैंने उन्हें धर लिया।वे
फुसफुसाते हुए बोले,’जिस बात का अंदेशा था,वही हुआ।आजकल मेरे साथ यह रोज़ ही हो रहा है।’ मैंने
आश्चर्य जताते हुए पूछा,’क्यों भई ! आप ऐसा कैसे कह रहे हैं ?आज हर तरफ अखबार या टीवी में आप प्रकट हो रहे हैं।पहले तो अखबारों में
किसी कोने में पड़े रहते थे,कोई पूछता तक नहीं था,अब तो सम्पादकीय पृष्ठ तक आपने कब्ज़ा लिया है,और
क्या चाहिए आपको ?’
कार्टून जी बोले,’चलिए,चाय की गुमटी के पास चलते हैं।आपको अंदर की बात वहीँ पर बताते हैं।अगर
यहाँ बाहर रहे तो हम फ़िर से अंदर हो जायेंगे।आजकल हमारे पब्लिकली आने पर रोक लगी
हुई है।’मैंने तुरत हामी भर दी और आशंकित नज़रों से देखते हुए
मैं उनके साथ हो लिया।चाय वाले को एक बटा दो का आर्डर देकर कार्टून जी ने अपन मुँह
खोला,’आप अपने काम में इतना तल्लीन हैं कि देश-दुनिया की कोई
खबर नहीं है आपको ! आजकल व्यवस्था जी ने ख़बरें छपने-छापने का
सारा काम अपने हाथ में ले लिया है।जब सीधी-सादी और सरल ख़बरें छन रही हैं तो हम
इत्ते टेढ़े-मेढे और वक्र होकर कैसे बाहर आ सकते हैं?कुछ
कार्टूनों ने बाहर ज़बरिया निकलने की हिमाकत की थी तो किसी को निष्कासित कर दिया
गया तो किसी पर राज-द्रोह का पक्का केस बन गया।अब बताओ,ऐसे
में हम करें तो क्या करें ?’
मैंने मुद्दे की गंभीरता को ताड़ते हुए
पूछा,’तो फ़िर आप क्या करेंगे?अगर बनेंगे तो बाहर
निकलेंगे,नहीं निकलने पर तो आपका अस्तित्व ही नहीं रहेगा।’कार्टून जी ने संयत स्वर में जवाब दिया,’भई मैंने
खूब सोच-समझ लिया है।मुझे तो कुछ सूझ नहीं रहा है।अगर बनते हैं तो पुलिस जी हमारी
सेवा को लालायित हो उठते हैं और अगर नहीं तो देश जी हमारी सेवा से महरूम हो जाते
हैं।अब आप ही सलाह दो कि हम करें तो क्या करें?’ मैंने उनकी
परेशानी को अपनी समझते हुए सलाह दी,’भई!आपको बनाने से कौन
रोक रहा है,आप खूब बनाइये पर कार्टून नहीं,कोयला बनाइये।इस क्षेत्र में किसी तरह का कोई खतरा नहीं है।सबसे बड़ी बात
है कि यह काम अभी तक देश-सेवा की श्रेणी में है’,‘पर इसके
लिए मुझे क्या करना होगा ?’ उतावले होकर कार्टून जी ने पूछा।
‘बस,आपको
एक चुनाव लड़ना होगा।अगर उसमें जीत गए तो फ़िर आप पारसमणि जैसे हो जायेंगे।सांसद या
मंत्री बनकर जो भी कोयला करेंगे सब सोना हो जायेगा और यह कि इत्ता सारा कोयला
बनाने के बाद भी आप राजद्रोह से बरी रहेंगे,असली देशसेवक
कहलायेंगे सो अलग ।इसलिए अगर कहो तो एक-दो ब्लॉक आपके नाम आवंटित करवा देते हैं।अखबार
में जो भी बनाते हो वह एक दिन के लिए होता है,कोयला बनाओगे
तो ज़िंदगी भर के लिए फुरसत मिल जायेगी।अब खुद ही सोच लो,क्या
करना है?’मैंने देखा कि कार्टून जी अब आश्वस्त से दिख रहे
थे।तब तक चाय आ गई थी और हम दोनों कोयले की सिगड़ी में बनी चाय को सुड़कने लगे थे !
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