सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

जनसत्ता में पहली बार व्यंग्य !

जनसत्ता में २८/१०/२०१२ को प्रकाशित !


संयुक्त राष्ट्र चले जाओ जी !


जब से देश की राजनीति से लालू-तत्व नदारद हुआ है,हमें ठठाकर हँसने का मौका शायद ही मिला हो. लगता है कि इस बात को हमारी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार ने समझा है,तभी हमें पिछले कुछ दिनों से ज़ोरदार हँसी का अहसास कराया जा रहा है.सबसे मौलिक और सुखद अनुभूति हमारे कानून मंत्री ने कराई है.अन्ना टीम द्वारा लोकपाल की माँग पर उन्होंने सीधे और निष्कपट भाव से यह कहा कि भइया,इस बारे में अगर कुछ करना ही चाहते हो तो संयुक्त राष्ट्र संघचले जाओ,हम आपकी और सेवा नहीं कर सकते.सच पूछिए,इस बयान की साफ़गोई से हम तो बिलकुल गदगद हुए जा रहे हैं.

 

वैसे हम सबको आनंद प्रदान करने की यह इनकी पहली कोशिश नहीं है.इससे पहले उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में ये अपनी ज़ोरदार उपस्थिति दर्ज़ करा चुके हैं.तब हमें हंसाने के लिए ये खुद रोने लगे थे और सुबकते हुए बोले थे कि बाटला कांड को सुनकर उनकी नेता भी ऐसे ही जार-जार रोई थीं.हमें तो लगता है कि उनकी इस बात से इनकी पार्टी के समर्थक इतना दुखी हो गए कि वे वोट डालना ही भूल गए.फ़िर भी,अपने नुकसान की क़ीमत पर अगर इनका ज़ज्बा क़ायम है तो यह बड़ी बात है.

 

इस सरकार को महंगाई से इतना दुःख है कि वो लगातार हमें हंसाने और खुश रखने का प्रयास कर रही है.समय-समय पर इसके सहयोगी दल भी इस काम में अपना भरपूर सहयोग दे रहे हैं,पर मुख्य सत्ता दल होने के नाते कांग्रेस अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होना चाहती.इसलिए उसके एक और मंत्री ने अन्ना-टीम के आन्दोलन को ड्रामा करार देने में ज़्यादा समय नहीं लिया.उनका मतलब यही था कि ड्रामा होगा तभी तो जनता का मनोरंजन होगा.वे भी यही चाहते हैं कि जनता ड्रामा देखती रहे और बाकी चीज़ें भूल जाय.

 

कुछ समय पहले दो दिन तक हमारे देश में बिजली के ग्रिड फेल हो जाने से अधिकतर हिस्से अँधेरे में ही मगन थे.बिजली मंत्री ने उन्हें यह कहकर खुश कर दिया कि इसी तरह के हालात से अमेरिका भी जूझा है और उसे उबरने में तो चार दिन लगे थे,जबकि हमने यह कमाल सिर्फ दस घंटे में ही कर दिखाया है.सरकार ने भी उनकी बात और उनके काम को गंभीरता से लिया और तुरत ही पदोन्नति के आदेश दे दिए.सुनते हैं कि मंत्रीजी ने भी नए मंत्रालय को सँभालने से पहले ही अमेरिका में हुई कई ऐसी घटनाओं का रिकॉर्ड तलब कर लिया ताकि समय आने पर वे उनकी नज़ीर देकर हमारा मनोरंजन कर सकें.

 

हम तो कहते हैं कि बिजली नहीं है,पानी नहीं है,सड़क नहीं है तो बेखटके हम सबको संयुक्त राष्ट्र की शरण में जाना चाहिए क्योंकि वो भी समझदार है कि हमारी सरकार का मुखिया कितना लाचार है.अब जब तक राहुल बाबा का आगमन नहीं होता,लोकपाल तो छोड़ो, हमें हर ऐसे काम के लिए अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र का मुँह देखना पड़ेगा.इससे हमारी पीर भी कम होगी और सरकार की भी.पर,यह भी हो सकता है कि ऐसा करते-करते हमारी इतनी आदत पड़ जाय और आगामी चुनावों में भी हम वोट मांगने वालों से कह दें कि भइया,आप भी संयुक्त राष्ट्र चले जाओ,वोट भी वही देगा,तब कैसा रहेगा ? कभी उनको भी तो हँसने का मौका हमें देना चाहिए कि नहीं..?

 

 



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