बुधवार, 23 अक्तूबर 2013

काश ,मुझे कोई सपना आए!

जनसंदेश में 23/10/2013 को।
सपने फ़िर से चर्चा में हैं। एक साधु ने हाल ही में सपना देखा कि फलां जगह सोने का खजाना गड़ा है । खजाना अभी हाथ नहीं लगा है पर उसको लेकर कई लोग सपने देखने लगे हैं। खजाना मिलने पर देश का बहुत सारा क़र्ज़ निपटने का सपना मीडिया भी दिखा रहा है। कुछ दिन पहले कुछ नेताओं के सपने भी चर्चा में छाये हुए थे। कोई सपनों में प्रधानमंत्री बन रहा था तो कोई अपने को इस स्थिति में बता रहा था कि वह सपने नहीं देखता,उन पर डायरेक्ट अमल करता है। कुछ बाबा लोग भी सपने देखते,दिखाते हुए धरे गए थे।

सपनों को लेकर की जा रही चर्चाओं ने मेरी बेचैनी फ़िर से बढ़ा दी। आखिर सपने मुझे क्यों नहीं आते ? क्या मुझे कोई बीमारी है यह सोचकर नुक्कड़ वाले डॉ. झोलाराम के यहाँ अपनी परेशानी लेकर पहुँच गया । वे आँखें मूँदे कुर्सी पर अधलेटी मुद्रा में पड़े हुए थे। हमारी आहट पाकर डॉक्टर साहब उठ बैठे और अपने आले को टटोलने लगे। मुझे प्रत्यक्ष पाकर कहने लगे,’मुझे अपने सपने पर पूरा भरोसा था और तुमने उसे सच कर दिखाया’। इतना सुनते ही मेरी धड़कन और बढ़ गई। अब यहाँ भी सपने की बात ? साधु,नेता,डॉक्टर सभी को सपने आ रहे हैं फ़िर मुझे क्यों नहीं ?

डॉक्टर झोलाराम ने मेरी चिंतन-प्रक्रिया को भंग करते हुए पूछा,’क्या परेशानी है आपको ?’ ‘डॉ. साहब,बहुत दिन हुए ,मुझे कोई सपना नहीं दिखा। क्या यह कोई गंभीर बीमारी है ? मैंने डरते-डरते ही पूछा। डॉ. साहब ने मुझको ऐसे घूरा जैसे मुझे कोई बड़ी संक्रामक बीमारी हो। उन्होंने मेरी आँखों की पुतलियों को कई बार उलट-पुलटकर देखा। अंत में गंभीर होते हुए बोले,’आप को नींद बहुत आती है। आपकी आँखों से लगता है कि आप हमेशा घोड़े बेचकर सोते हैं,इसलिए ऐसी नींद में किसी सपने के लिए गुंजाइश नहीं है। इतना सोना स्वास्थ्य के लिए भले ही हितकर हो,पर सपनों के लिए ठीक नहीं। ’ 'मगर डॉ.साहब, क्या करें ? खुले आसमान में मच्छरों का संगीत सुनते हुए गहरी नींद आ जाती है। बस,यह ससुरा सपना ही नहीं आता। ’

डॉ. झोलाराम ने अब मेरे पेट पर हाथ फिराया। कहने लगे,’सपने न आना तुम्हारी वंशानुगत बीमारी है। मुझे  तो लगता है कि तुम्हारी कई पीढ़ियों ने कोई सपना ही नहीं देखा है। इसकी दवा मेरे पास नहीं है। आप चाहें तो सरपंच जी से मिलकर ‘मनरेगा’ का जॉब-कार्ड बनवा लें। सपने की गारंटी नहीं है, पर देह में पेट का एहसास जरूर हो जायेगा। ’यह सुनकर मैं निराश हो गया। लौटते-लौटते डॉ. साहब से पूछ ही लिया कि आखिर सपने देखने का कोई उपाय तो होगा ? डॉ. झोलाराम ने ज़ोर देकर कहा कहा,’उपाय तो है,पर यह गाँव में रहकर नहीं हो सकता। सपने देखने के लिए पहले जमीन तैयार करनी पड़ती है । बड़े शहर में जाओ। वहाँ सोने से पहले बड़े मॉल के चक्कर लगाओ। वहाँ की हर दुकान पर भरपूर नज़र डालो। बस,कीमत मत पूछना,नहीं तो सपना भी नहीं आएगा। किसी नेता के फार्म-हाउस या बाबा के आश्रम का फेरा भी नियमित रूप से लगाओ,तभी कुछ हो सकता है। ’

डॉ. साहब का यह नुस्खा लेकर घर लौट आया हूँ। तब से शहर जाने के इंतजाम में लगा हूँ। सोच रहा हूँ  कि अपने जीते-जी शहर जाने का सपना पूरा कर लूँ,ताकि नींद में सोने के खजाने जैसा कोई सपना मुझे भी इस जनम में नसीब हो जाय।
 
 
हरिभूमि में १२/११/२०१३ को

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

औरों का सपना क्यों जिया जाये, जो देखा वही जी लें।

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