कुर्ता और धोती बहुत
बेचैनी महसूस कर रहे थे। खूँटी पर टँगे हुए उन्हें कई रोज हो गए थे पर वहाँ से
उन्हें उतारने की सुध किसी को नहीं आई । उनकी यह दशा पास में टंगे पाजामे से न
देखी गई । उसने दोनों से सहानुभूति जताते हुए उनके दुःख का कारण पूछा। कुर्ते ने
इधर-उधर झाँकते हुए कहा,’हम अभी तक सदुपयोगी रहे हैं। एक के बाद एक हमने देह के
सारे दाग छिपाए,अपनी सफेदी में कालिख पुतवाई पर अब अचानक हमें ही भुला दिया गया । सुना
है कि लोग अब दाग की चिंता से मुक्त हो गए हैं। उन्हें अब दागों से किसी बात का डर
नहीं लग रहा है,जबकि सामने चुनाव हैं। पहले जब चुनाव आते थे तो हमारा बोलबाला रहता
था। हम पर चरक करके रोज़ हवाई सैर की जाती थी ,पर अबकी बार न जाने क्या हुआ;जिसे
देखो वही टोपी लगाकर निकल पड़ता है। देह ढंकने के लिए हमारे विकल्प में वह कुछ भी
पहन लेता है,पर टोपी लगाना नहीं भूलता। ’
हवा में हिलते हुए
पाजामा थोड़ा कुर्ते के करीब आया और समझाने के अंदाज़ में बोला,’बंधु ! आपकी मुख्य
समस्या यह है कि आप एक निश्चित नाप के हैं,इसलिए सब पर फिट नहीं हो सकते। अब हमें
ही देखो,हमने अपनी देह को इस तरह बना रखा है कि जैसी जिसकी तोंद हो,उसके मुताबिक
ढीला हो जाता हूँ। बिगड़ा काम बनाने के लिए
हम किसी के भी पैर में समा सकते हैं। इसलिए हमारी कीमत हर समय रहती है और हमारी
माँग भी। ’इतना कहकर पाजामा धोती की तरफ थोड़ा लहराया। धोती उसका मंतव्य समझते हुए
बोली,’पर हम तो बिना नाप के हैं,फ़िर हमें क्यों इस खूँटी पर सूली की तरह टांग दिया
गया है। हम देह और पैर दोनों को ढंकते हैं और इज्ज़त भी। हम किसी की कालिमा या
कुरूपता को घूँघट से ढंकते हैं और कुछ शर्म भी बचाकर रखते हैं। ऐसे में हमें खूँटी
पर टांगकर हमारे साथ अन्याय किया गया है। अब जब लग रहा था कि इस चुनाव में हमारी
कदर होगी,हमें अनिश्चितकाल के लिए भुला दिया गया है। ’
अब पाजामा थोड़ा
गम्भीर हो गया। उसने समस्या की गाँठ खोलते हुए कहा,’बहन,समय की बहुत कमी है। लोग इस
वक्त बेहद जल्दी में हैं। वे लालकिले पर चढ़ने के लिए केवल धोती के भरोसे नहीं रह
सकते। अगर रास्ते में धोती फँस गई तो बचे हुए भाषण सड़क पर खड़े होकर ही पढ़ने
पढेंगे। दूसरी बात यह कि जितनी देर में वे आपको सम्हालेंगे मतलब लपेटेंगे,उतनी देर
में दसठो बुरका पहन लेंगे। आप रंग-बिरंगी और टाइम खोटा करने वाली हैं,जबकि बुर्के
के मामले में ऐसी कोई च्वाइस ही नहीं है। इससे काम में दस-गुना तेजी आ जाती है। इसीलिए
इस समय बाज़ार में बुर्के की माँग बढ़ गई है। चुनाव निपट जाने दो;बुरका और टोपी
दोनों निपट जायेंगे। ’
इन तीनों में
खुसर-पुसर चल ही रही थी कि सामने के दरवाजे से टोपी और बुरका दिखाई दिए। वे मजे
से सज-धजकर नई रैली की तरफ जा रहे थे और
इधर कुर्ता और धोती खूँटी पर टँगे-टँगे ही हवा में हिलने लगे।वे मन ही मन कह रहे
थे ,’हाय ,हम टोपी न हुए,बुरका न हुए !’
जनसंदेश टाइम्स में ०९/१०/२०१३ को प्रकाशित
1 टिप्पणी:
बड़ी माँग है, कम लोगों की,
अंतड़ी सूजे सब लोगों की।
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