बुधवार, 16 अक्तूबर 2013

नेताजी और उनका संन्यास।


नेशनल दुनिया में 25/10/2013 को व जनवाणी में 16/10/2013 को प्रकाशित

 कहते हैं कि काम करने वाले के लिए कभी आराम का समय नहीं होता है। वह एक काम से छूटता है तो दूसरा पकड़ लेता है या यूँ कहिये,काम ही उसको पकड़ लेता है। अभी हाल में क्रिकेट के भगवान ने खेल से रिटायर होने का ऐलान किया,जिसका सबने स्वागत किया। पहले उनके खेल को और अब रिटायरमेंट –प्लान को ख़ूब मीडिया कवरेज मिली। इससे उत्साहित होकर कुछ लोगों ने नेता जी से भी अपना रिटायरमेंट-प्लान घोषित करने की माँग शुरू कर दी। नेता जी ने भी साफ़ कर दिया है कि वे जब तक जीते रहेंगे,देश-सेवा करते रहेंगे। उनकी इस बात में काफ़ी दम है।

आखिर ,देश-सेवा करना कोई साधारण खेल नहीं है। क्रिकेट या अन्य खेल में जहाँ शरीर का चुस्त होना ज़रूरी है वहीँ राजनीति में दिमाग का। शरीर के बूढ़े होने के प्रमाण तो मिलते हैं पर दिमाग के सठियाने के नहीं। ख़ासकर नेता जी का रोबोटिक-दिमाग आजीवन सक्रिय रहता है। वे आखिर दम तक अपनी सेवाएं देने के लिए उपलब्ध रहते हैं। नेता जी जीते-जी अपना रिटायरमेंट-प्लान किसी को नहीं बताते। पता नहीं,कब लॉटरी लग जाये ?देश में ऐसा एक कारनामा पहले हो चुका है, जब एक नेता ने चुनाव न लड़ने का ऐलान कर दिया था पर बाद में प्रधानमंत्री बनकर उसने देश की ख़ूब सेवा की। इसलिए नेता जी को रिटायरमेंट लेने में कोई समझदारी नहीं दिखती।

जो लोग नेता जी के रिटायरमेंट को आवश्यक मानते हैं,वे भूल जाते हैं कि इसमें जनता का ही नुकसान है। यदि नेता जी के आराम करने के लिए कोई मियाद फिक्स कर दी गई तो इससे उनकी सेवा-भावना आहत होगी तथा वह और तीव्र-गति से काम करेगी। इसके असर में नेता जी कम समय में ही अपना कोटा पूरा करने का जतन करेंगे। इसके लिए वे दिन-रात हाड़-तोड़ सेवा करने में जुट जायेंगे। इससे उनकी जान का और हमारे माल का ज़्यादा नुकसान होने की आशंका पैदा हो जायेगी । इसलिए देश की सेवा के लिए नेता जी का आजीवन-संकल्प लेना बिलकुल उचित और तार्किक लगता है।

कुछ खिलाड़ी हैं जो देश के लिए खेलते हैं पर नेता जी देश से खेलते हैं। इसके लिए बहुत बड़ा हुनर होना चाहिए । वैसे भी,कोई हुनरमंद खिलाड़ी कभी खाली नहीं बैठता। खेल से संन्यास लेने से पहले और बाद में वह जनता को बताता फिरता है कि कौन-सा तेल, साबुन या बनियान उसके लिए अच्छी है,भले ही उसने कभी इनका प्रयोग न किया हो। फ़िर नेता जी तो विशुद्ध परोपकारी हैं .वे नित-प्रति टीवी के आगे बयान देते हैं ,वह भी फ़ोकट में। राजनीति के ऐसे खिलाड़ी की तुलना किसी और क्षेत्र के खिलाड़ी से कैसे की जा सकती है ?नेता जी एक कुशल खिलाड़ी हैं,फ़िर उनका ‘स्ट्राइक-रेट’ भी औरों से ज़्यादा है.अभी हालिया दंगे ने ये साबित भी कर दिया है.

नेता जी से संन्यास की माँग गैर-वाजिब है।ये पहले ही उस दशा को प्राप्त हैं,तभी इनके ऊपर अवस्था या व्यवस्था का कोई असर नहीं होता है। जहाँ बाबा और संत संन्यास को भरपूर एन्जॉय कर रहे हैं,ऐसे में नेता जी के संन्यास न लेने का निर्णय त्याग का उच्चतम उदाहरण है।

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कुछ को अपनी सेवा से संतुष्टि ही नहीं मिलती है, मृत्यु तक चलती रहती है।

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