शनिवार, 19 अक्तूबर 2013

सपने और सरकार ।

19/10/2013 को नईदुनिया में।
हमारी सरकार आम आदमी की तरह सोचती है और वैसा ही करती भी है। जो लोग यह कहते नहीं थकते कि सरकार की नीतियां आम आदमी के लिए नहीं बनती हैं,उन्हें अब अपनी धारणा बदलनी पड़ेगी। आम आदमी और उसमें एक बुनियादी फर्क है कि सरकार स्वयं सपने नहीं देखती वरन उसके सपनों को पूरा करती है। यही काम करने के लिए तो जनता उसे चुनती है और वह वही कर रही है। फ़िर कोई कैसे कह सकता है कि सरकार आम आदमी का ध्यान नहीं रखती। वह उसके जीते-जागते मुद्दों पर भले टालमटोल कर दे पर सपनों को पूरा करने के लिए बिलकुल कृतसंकल्प है।

हाल ही में एक बाबा को ज़मीन में गड़े हुए खजाने का सपना आया। उन्होंने सपने को सरकार तक पहुँचाया और सरकार फ़ौरन उसको पूरा करने में लग गई। वह युद्ध-स्तर पर खुदाई का कार्य करवा रही है,भले ही उसमें कुछ हासिल हो या नहीं पर उस पर यह इलज़ाम तो आयद न होगा कि उसे जनभावनाओं की फ़िक्र नहीं है। जो सरकार किसी सपने पर इतना सक्रिय हो जाये,वह दिन के उजाले में उठाये हुए जनांदोलनों की आवाज़ को वह क्यों नहीं सुनेगी ? बस ,ज़रूरत इस बात की है कि सपना कौन देखता है और आन्दोलन की अगुवाई कौन करता है ? अब कब और किस पर सरकार को अमल करना है ,इतना तो अधिकार उसको मिलना ही चाहिए।

ज़्यादा समय नहीं हुआ जब एक और बाबा ने सपना देखा था कि स्विस बैंक में इतनी रकम जमा है कि जिससे देश का सारा कर्जा उतर जायेगा। इस पर सरकार को बिलकुल यकीन नहीं हुआ क्योंकि यह सपना था ही नहीं,बाबा ने यह सब खुलेआम कहा था। सरकार इस पर व्यर्थ में खोजबीन कराकर जनता के ही पैसों को जाया नहीं करना चाहती थी । दूसरी वजह यह रही कि सरकार केवल जनता के सपनों को ही पूरा करने के लिए होती है। सरकार ने फ़िर भी बाबा की खैर-खबर लेने व खजाने के संबंध में आधी रात में उनका बयान दर्ज़ करना चाहा तो वे भेष बदल कर भाग खड़े हुए। उन्हें लगा कि खजाने के बजाय सरकार उन्हीं को समाधिस्थ करने पर आमादा है। अब बिना कोई जोखिम लिए खज़ाना तो क्या मीडिया का अटेंशन और इनकम टैक्स का नोटिस भी नहीं मिलता।

लोकतंत्र में सपने देखने से अधिक ज़रूरी है कि कौन उसे देखता है ? सपने बहुत सारे हैं पर पूरे वही होते हैं जो युवराज-टाइप के हों या आम आदमी-टाइप । आम आदमी के लिए ‘मनरेगा-कार्ड’ और ‘मुफ़्त-खाना’ वाले सपनों पर सरकार ने अमल करना शुरू भी कर दिया है। इससे सरकार का युवराज-टाइप का सपना भी पूरा हो जायेगा। सरकार को ऐसे ही सपने पूरे करने चाहिए जिसमें उसका और जनता ,दोनों का भला हो। यानी एक तीर से दो शिकार। अब ऐसे में कौन से बाबा को भगवान बनाना है और किसको ‘मैराथन-दौड़’ का अभ्यास कराना,यह सरकार ही सुनिश्चित करेगी। इसलिए सपने भले कोई देखे, उनके ऊपर कंट्रोल सरकार का ही रहेगा। अगली बार यदि आप कोई सपना देखना चाहें तो सरकार से उसकी पूर्व-स्वीकृति अवश्य ले लें !

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