बुधवार, 8 जनवरी 2014

आम आदमी होने के खतरे !


‘मैं भी आम आदमी हूँ’,यह कहने में अब डर लगने लगा है।पता नहीं,बाजू वाला कब,क्या समझ बैठे ? ख़ास की कैटेगरी में तो हम कभी थे ही नहीं,अब आम से भी वंचित हो गए।जब से ईमानदार लोगों ने आम आदमी पर अपना दावा किया है,हमें अपने आम आदमी होने पर शक पैदा हो गया है।इतिहास गवाह है कि आम आदमी टाइप ईमानदार को बेईमान भाइयों ने सदा ही गले लगाया है।उन्होंने आम आदमी की सेवा के लिए अपनी सारी प्रतिष्ठा दाँव पर लगा दी।पहले जब हम अपने को आम आदमी कहते या ईमानदार कहते,तो बेईमान भाइयों को काम करने में बड़ी सहूलियत होती थी ।उनकी ‘सेवा’ के हम सबसे सॉफ्ट टारगेट होते थे।इस लिहाज़ से हमें पहली वरीयता मिलती,बदले में हमारे ईमानदार होने पर उनको पूरा ‘सर्विस-चार्ज’मिलता।इस तरह बेईमान और ईमानदार एक साथ,मिल-जुलकर आराम से गुजारा कर रहे थे।यानी ख़ास और आम दोनों सुखी थे।

जब से ईमानदार लोगों ने आम आदमी पर अपना पेटेंट जाहिर किया है,हम तो कहीं के न रहे ।किसी दफ्तर में यह कहने पर कि ‘मैं भी आम आदमी हूँ’,सामने बैठा बाबू भाग खड़ा होता है।उसे लगता है कि मैं ‘वो’ वाला आम आदमी हूँ,जिसने ईमानदारी-ईमानदारी चिल्लाकर ख़ास की नाक में दम कर रखा है।ऐसे में हम उसे ख़ास टाइप के ईमानदार दिखाई देने लगते हैं।हम लाख समझाएं, पर वह हमें अपनी बिरादरी का समझता ही नहीं है।अब यह आम आदमी होना ही दुःख दे रहा है।’मैं भी आम आदमी हूँ’ कहना और भी कई खतरे लेकर आया है।हमारे कई साथी समझते हैं कि देश के मिशन-2014 में मैं ही सबसे बड़ा रोड़ा बनूँगा ।हमें खेल बिगाड़ने वाला और दूसरे के हाथ में खेलने वाला बताया जा रहा है।इन सबको यह नहीं पता कि हम अपना स्वाभाविक खेल ही खेल रहे हैं।इनको अभी भी आम आदमी के खिलाड़ी होने पर संदेह है जबकि हमारे लिए आम आदमी बने रहने में यही सब खतरे हैं।

मजे की बात यह है कि पूरे देश में अब ख़ास नहीं आम होने में रार मची हुई है।कुछ लोगों ने पहले टोपियों में ही लिखा हुआ था कि वे आम आदमी हैं पर इसके लिए अब सदस्यता-अभियान भी चलने वाला है।इसमें व्यक्ति को घोषणा करनी होगी कि वह आम आदमी है ।इस देशव्यापी कार्यक्रम  में जो व्यक्ति शामिल होगा,वही आम आदमी माना जायेगा ।मेरी मुश्किल यह है कि मैं किसी दल में शामिल नहीं हो सकता हूँ ,पर इससे मैं आम आदमी होने से भी वंचित हुआ जा रहा हूँ।मैं ख़ास कभी रहा नहीं और अब आम आदमी भी नहीं रह पा रहा हूँ ।अब सारी चिंता मेरे आदमी बने रहने पर टिक गई है।आम आदमी की पहचान खोने के बाद अपने को आदमी के रूप में बचाने की हमारी जद्दोजहद शुरू हो चुकी है।इसके पहले कि कोई इस पर भी अपना पेटेंट करवाए, मैं यह घोषित करता हूँ कि ‘मैं आदमी हूँ’ और इस पर केवल मेरा ही पेटेंट रहेगा।
8/1/2014 को जनसंदेश में।
नेशनल दुनिया में 15/01/2014 को।

2 टिप्‍पणियां:

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन शहीद लांस नायक सुधाकर सिंह, हेमराज और ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

फलों में तो सुना था, अब आदमियों में में आम ख़ास हो गया।

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