बुधवार, 23 जुलाई 2014

सूखे और भूखे पर नज़र !

नई सरकार के नए बजट ने सबका ध्यान रखा है।इसमें भूखे और सूखे पर ख़ास तवज्जो दी गई है। काले बादल भले ही बरसने से चूक गए हों,पर उजली सरकार तो जनता की है ना,उसे तो हर हाल में बरसना ही है।भले ही उसकी जेब खाली हो,पर बजट में हर सेक्टर को करोड़ों रुपए बाँटने का ऐलान किया गया है।भूखों के लिए यह आयोजन तपते जेठ में सावन की फुहार-सा आया है।रही बात धनराशि की,तो सरकारी योजनाओं के लिए पैसा कभी कोई समस्या रही ही नहीं ।उसके पास इससे निपटने की एक से एक नायाब स्कीमें मौजूद होती हैं।जब सरकार खुद ही जोर-जोर से पी-पी-पीचिल्ला रही हो तो उसके आवाहन को जनहित में लगीं मंगलकारी संस्थाएं कब तक और क्योंकर अनसुना कर पाएँगी ? देखिएगा,जल्द ही देशी-विदेशी कम्पनियाँ जनता के ऊपर ऐसी मूसलनुमा बारिश करेंगी कि सबकी सनातन-भूख  मिनटों में फुर्र हो जाएगी ।

कुछ लोग मौसम से नाराज हैं,पर मौसम कोई सरकार तो नहीं है जो मौका पड़ने पर किसी दूसरे से हाथ मिला ले।अगर ऐसा सम्भव हो जाए तो मुंबई और असम के बादल दिल्ली शिफ्ट हो जाएँ।ऐसा होने पर सरकार भी खाली हाथ हो जाएगी ।फिर सूखे के नाम पर बनने वाली उन राहत-योजनाओं का क्या होगा जिनसे कइयों को वास्तविक राहत मिलती है।रिक्त आपदा राहत कोषकी सुध कौन ले पाएगा,लेकिन फ़िलहाल ऐसा कुछ गजब नहीं हुआ।सूखे को लेकर देश के अंदर विशेष चिन्तन चल पड़ा है। कई सूखा-निवारक-पत्रतो राजभवन की ओर प्रेषित भी कर दिए गए हैं ।

सरकार इस संभावित विपदा पर पूरी तरह से देश के साथ है या कहिये उसके इंतजार में है।चिंतन के लिए माहौल का अनुकूल होना बहुत आवश्यक है।इसके लिए पचासेक वातानुकूलित यंत्रों से लैस आवासों की व्यवस्था की जा सकती है ताकि चिन्तन के बीच में कोई बाधा उत्पन्न न हो सके ।आम आदमी को एक पंखा चलाने और दो लट्टू जलाने के लिए बिजली किस तरह मुहैया कराई जाए,इसके लिए चिंतकों के टॉयलेट को भी वातानुकूलित बनाना पड़ता है।इस संदर्भ में महत्वपूर्ण तथ्य है कि वास्तविक चिंतन और मौलिक आइडिये अकसर वहीँ से निकलते हैं।ऐसे में उनका और देश का सूखा दोनों एकबारगी निपट जाते हैं।

मौसमी बारिश को लेकर सरकार कतई चिंतित नहीं है।उसके अपने हाथ में बादलों की पूरी एक टोली है जो रक्षा,रेल और सड़कों पर झमाझम बरसने को तैयार है।उधर निमन्त्रण का सूखा भी खत्म हो गया है।अंकल सैम ने वह दावतनामा भेज दिया है,जिसका वर्षों से इंतजार था।फिर भी यदि बरसाती बादलों ने सूखा राहत योजनामें अड़ंगा लगाने की कोशिश की तो उस योजना के नामपट्ट को बाढ़ राहत योजनामें तब्दील करने का बैक-अप प्लान भी तैयार है.कुल मिलाकर आम आदमी सरकारी राहत से बच नहीं सकता. इसी उम्मीद पर अधिकारी मौसम की ओर से बेपरवाह हैं.भूखे और सूखे का यह तालमेल निरंतर और चिर-काल तक बना रहे,इसी में उनका और उनके परिजनों का भला है ।रही बात आम आदमी की,सो वह सूखे खेत पर खड़े होकर आसमान की ओर ताके ,ईश्वर उसका भी भला करेगा !


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