नवभारत टाइम्स में पहली बार.....31/07/2014 को प्रकाशित |
मंत्री जी के घर में जासूसी का सनसनीखेज मामला उजागर हुआ है।मीडिया और
विपक्ष लगातार कह रहा है कि जासूस बेडरूम तक पहुँचने में सफल हो गए हैं।यह और
गंभीर मसला है,जब इस जासूसी के तार अमेरिका से जुड़े बताए जाते
हैं।सरकार और स्वयं मंत्री जी इकरार करने से इंकार कर रहे हैं पर दूसरे लोग पूरे
यकीन से कह रहे हैं कि जासूसी हुई है।गोया कहने वालों को पूरी योजना पता हो ! जो
पीड़ित है वह चिल्ला रहा है कि उसे कोई दर्द नहीं है पर भला कुशल-क्षेम के
आकांक्षियों को ऐसे तसल्ली मिली है कभी ?
जासूस के क्षेत्र में काम करने वाले इस घटना से बहुत उत्साहित
हैं।उनमें अब अपने गोपन-कृत्यों के प्रति अपराध-बोध जैसा कुछ फील नहीं होगा।जिसकी
जासूसी की जाएगी अगर वही खुलेआम बयान जारी कर देगा कि ऐसा कुछ नहीं हुआ है तो फिर
किस बात का डर ?
इससे सुरक्षा
एजेंसियां भी राहत महसूस करेंगी कि यह सब उनके ज़बरदस्त सुरक्षा प्रबंधों का परिणाम
है।सरकार यदि ऐसा स्वीकार कर लेगी तो सदन के अंदर और बाहर विशेष बयानों की
आवश्यकता होगी जबकि ‘ना-ना ‘ करने पर बस ऐसी खबरों का खंडन भर करना होगा।
विपक्ष सरकार को घेरने के प्रयास में पिछले दो महीने से लगा है।एक तरफ
जहाँ अब तक विपक्ष के नेता का ही नहीं पता है,वहीँ वह मुद्दे
ढूँढने के लिए ‘गूगल-सर्च’ में लगा है।अचानक ‘इत्ता’ बड़ा मुद्दा हाथ आ
गया है तो इसे कैसे जाने दे।यहाँ तक कि मामले की गंभीरता को देखते हुए पिछली सरकार
में दस सालों से मौन रहे नेता जी भी बोल पड़े ।बढ़ती कीमतों या मंहगाई पर बात करना ‘लोकल’ मुद्दा है।चूंकि
जासूसी का मुद्दा ‘इंटरनेशनल-टच’ लिए हुए है इसलिए भी इस पर ज्यादा फोकस
है।
रही बात जासूसों की,वे हर युग और हर काल में रहे हैं।देवकी नंदन
खत्री के उपन्यास ’चंद्रकांता संतति’ का कथानक केवल
ऐय्यारों यानी जासूसों के दम पर ही सुपरहिट रहा।आज भी क्या हॉलीवुड,क्या बॉलीवुड,सब जगह इनके चर्चे
हैं।हाल ही में एक बॉलीवुड अभिनेत्री ने भी जासूस का किरदार बखूबी निभाया है ।यह
जेम्स बांड का ही जलवा है कि जासूसी से ज्यादा ज़िक्र उसकी गाड़ी और गर्लफ्रेंड का
होता है।पर जासूसी का जो रोमांच राजनैतिक क्षेत्र में होता है,वह आपराधिक क्षेत्र
में कहाँ ? ’विकिलीक्स’ या ‘तहलका’ को याद कीजिये,उनकी एलीट-टाइप की जासूसी
को सारी दुनिया ने एडवेंचर माना था !
जिसकी जासूसी की जाती है उससे एक बात तो साबित हो ही जाती है कि उस
बंदे में दम है।फोन टेप करने और बंगले में ताक-झाँक करने के जमाने लद गए।अब तो भाई
लोग खटिया के नीचे ही कुछ अदृश्य-सी वस्तु फिट कर देते हैं जिससे उनकी ‘फैमिली-वीडियो’ बनती रहती है।अब
विरोधियों को इसमें कोई ‘करतूत’ नज़र आती है,तो कोई क्या करे !
ऐसा भी नहीं है कि हमेशा किसी का विरोधी ही उसकी खैर-खबर लेने या उसकी
रणनीति परखने के लिए ‘बग’
का इस्तेमाल करता हो।कई बार यह काम अपने ही लोग
बड़े सुभीते से कर लेते हैं।इससे अपने ही आदमी की चाल,ढाल और वफ़ादारी
आसानी से पता हो जाती है।अकसर ऐसे कामों में जासूस कभी फेल नहीं होते,भले ही उन्हें
दुश्मन-देश या अपराधियों की गतिविधियों की तनिक भी भनक न मिल सके।
मौजूदा मामला ज़रा अलग किस्म का है।सरकार इस तरह की जासूसी को सिरे से
नकार रही है।वह यह कैसे मान ले कि उसके रहते यह काम दूसरों के द्वारा अंजाम दिया
गया है।इससे तो गलत सन्देश जाएगा।हमें तो लगता है कि ऐसी सरकार या मंत्री ही
नाकारा है जो जासूसी के योग्य नहीं है।फिर भी,विपक्ष की संजीवनी के लिए ही सही,सरकार को यह बात मान
लेनी चाहिए।इससे सरकार की अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग में भी ज़बरदस्त उछाल आएगा।
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