गुरुवार, 24 जुलाई 2014

सांसदों के लिए नया मेन्यू !

बड़े दिनों बाद एक अच्छी खबर आई है।चुनाव बाद थके-हारे,भूखे-प्यासे लोगों पर आखिरकार संसद की कैंटीन मेहरबान हुई है।कैंटीन में वर्षों से रोटी-दाल या कढ़ी-चावल जैसा देसी और उबाऊ खाना परोसा जाता रहा है।मेनू में शामिल ऐसी चीज़ें व्यंजन की श्रेणी में भी नहीं आतीं ।नेताजी को असली तृप्ति तो अब जाकर मिलेगी,जब वे चिकन-करी,ग्रिल्ड-फिश,कश्मीरी राजमा और छोले-भठूरे खाकर पूर्ण-तुष्टि की डकार भरेंगे।इस तरह मंहगाई से निपटने में संसद की कैंटीन एक मिसाल बन सकती है।जो भी अच्छी शुरुआत होनी है,तो क्यों न देश के गर्भ-गृहसे हो,यही सोचकर यह सराहनीय फैसला लिया गया है।

अब जब नए और शाही व्यंजन कैंटीन में आ गए हैं तो उनका जमकर लुत्फ़ उठाया जा सकेगा।भरे-पेट होने के अपने अलग फायदे हैं।जुबान और पेट के तुष्ट होने के बाद इनकी कार्य-प्रणाली वैसे भी सुस्त हो जाती है।इसका सीधा फायदा संसदीय कार्यवाही पर पड़ता है।ऐसे में सदन में न ज्यादा शोर-शराबा होगा,न कड़वाहट और न ही ज्यादा उछल-कूद।लोग अपनीअपनी सीटों में मस्त होकर पड़े रहेंगे।इस बीच सही मौका देखकर सत्ताधारी-दल अपने आवश्यक बिल पास करवा लेगा।ऐसे में कैंटीन के छोटे-मोटे बिल यदि सरकार के बड़े बिलों में अपना योगदान करते हैं तो इसमें बुरा क्या है ?

इसका एक उजला पक्ष यह भी है कि संसद की कैंटीन से तरह-तरह के सुस्वादु भोजन करने के पश्चात संसद-सदस्य सदन में बढ़ती मंहगाई और बढ़ते बिजली-बिल पर धारदार चर्चा कर सकेंगे।कैंटीन के मेनू में दक्षिण का इडली-सांभर-डोसा और इतालियन पिज्जा-बर्गर को भी शीघ्र समाविष्ट करना चाहिए।यदि गुजराती ढोकला-खांडवी,इन्दौरी-पोहा और पंजाबी-पराठा भी मेनू में आ जाँय तो संसद में उपस्थिति का प्रतिशत अपने-आप बढ़ जायेगा।देश के अधिकतर खाने वाले यदि कैंटीन में ही भर-पेट हो लेंगे,तो देश के अन्य भागों में,खासकर संसद के बाहरी इलाकों में खाने की डिमांड कम होगी।इससे मंहगाई में स्वतः कमी दर्ज हो सकती है।

फ़िलहाल,संसद की कैंटीन गुलजार है और माननीय वहीँ जीम रहे हैं।वैसे भी सदन के अंदर छत टपकने से उधर जाने और नहाने का कोई प्रोग्राम नहीं है।सही समय पर कैंटीन के मेनू में बदलाव किया गया है।सदन के अंदर कुरता-फाड़ने और भीगने के अंदेशे से अच्छा है कि मामूली रकम में भर-पेट भोजन किया जाय।सोने के लिए सदन में वैसे ही मनाही नहीं है इसलिए बिना घोड़े बेचे मंहगाई पर ज़रूरी चिंतन भी हो सकेगा और कैंटीन के व्यंजनों पर ढेर सारा विमर्श भी।



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