शुक्रवार, 4 जुलाई 2014

अबकी बार ‘मंतरमार’ सरकार !

लोगों को उम्मीद थी कि उनके आते ही मँहगाई और भ्रष्टाचार छूमंतर हो जायेंगे,पड़ोसी देश थर-थर काँपने लगेंगे,बलात्कारी और कुसंस्कारी ढूंढें से भी नहीं मिलेंगे पर सब कुछ उल्टा हो रहा है।जिस जनता ने राहत के लिए नई सरकार का मुँह ताका था,वो खुद अपने लिए ‘हनीमून-पैकेज’ की माँग कर रही है।काम करने के लिए पूरी ज़िन्दगी पड़ी है।जो पाया है उसको भोगने का भी तो हक़ होना चाहिए।इसलिए प्राथमिकतायें बदल गई हैं। ’स्किल्ड’ नेतृत्व की यही विशेषता है कि समय के अनुसार स्वयं को ढाल ले,नहीं तो ढलने में ज्यादा वक्त नहीं लगता।

लोग बड़े नादान हैं।अभी महीना भी ना हुआ और वो मानसून की तरह ‘अच्छे दिनों’ की ओर टकटकी लगाये देख रहे हैं।जब मानसून कभी ‘टैम’ पर नहीं आया,तो सरकारी-बारिश कैसे परम्परा तोड़ सकती है ? अभी तो उनके लोग प्रशिक्षण-शिविरों में घुसे हैं,सरकार चलाने के ‘मंतर’ पा रहे हैं।वे ठीक तरह से सीख-साखकर बाहर निकलेंगे तभी जनसेवा का वास्तविक कार्यक्रम शुरू हो पायेगा।

वे सरकार की अगुवाई कर रहे हैं तो उसे चलाने का नुस्खा भी उन्हें मालूम है।’एक चुप,हज़ार सुख’ का सुफल उन्हें बखूबी पता है।इस बाबत उन्हें पुरानों से नहीं नए-नवेलों की तरफ़ से खटका है।उनको ठीक तरह से समझा दिया गया है कि मंहगाई और भ्रष्टाचार को दिल से लगाने की ज़रूरत नहीं है।कुछ भी कहने के पहले उन्हें अपने पूर्ववर्तियों का हश्र याद रखना होगा।पाँच रुपए और बारह रुपए की थाली परोसने वाले आज खुद कटोरा लिए घूम रहे हैं।इसलिए सौ बातों की एक बात है कि चुप मार कर बैठें,थोड़े दिनों में जनता अपने आप मन मार कर बैठ जाएगी।

सरकार से ‘अबकी बार चमत्कार’ की उम्मीद करने वाले अभी पूरी तरह नाउम्मीद नहीं हुए हैं।उनको लगता है कि किसी दिन बीजिंग को बिहार के नक्शे में दिखाकर और एक सिर के बदले दस सिर लाकर ‘अबकी बार टक्करदार सरकार’ का सफल प्रदर्शन होगा।रही बात मंहगाई और भ्रष्टाचार की,सो वे सब पिछली सरकार की उपज हैं और इन्हें खत्म करने में 67 साल से कुछ अधिक समय तो लगेगा ही।यह कम ‘अच्छे दिन’ हैं क्या कि अबकी बार सरकार खुद जनता से राहत माँग रही है और उससे बचने-निपटने के लिए अपने लोगों को ‘मंतर’ बाँट रही है !

'डेली न्यूज़ ' जयपुर में 04/07/2014 को प्रकाशित

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