बुधवार, 9 जुलाई 2014

वैनिटी-बॉक्स का इंतजार !

गरीबी रेखा आज संसद भवन के पास ही मिल गई।उसका मूड चढ़ते सेंसेक्स की तरह खिला हुआ था।हमने उसके यूँ उछलने का कारण पूछा तो हुलसकर बोली,’हमारी रेटिंग में जबरदस्त उछाल हुआ है।गाँव हो या शहर,सब जगह हमने ‘अबकी बार-इफेक्ट’ से अभूतपूर्व वृद्धि की है। गाँवों में जहाँ हम 27 से 32  पर पहुँच गए वहीँ शहरों में 33 से 47 रूपये पर।इससे पाँच रुपए की थालियाँ और ज्यादा हासिल हो सकेंगी। गरीबों ने पहली बार किसी मामले में रिकॉर्ड बेहतर किया है ,इसीलिए हमारी ख़ुशी संभाले नहीं संभल रही है।’
‘पर ये तो गणितीय आंकड़े भर हैं।हमें तो देश जस का तस दिख रहा है।पिसने वाला अभी भी पिस रहा है और कूदने वाला लम्बी छलाँगें भर रहा है।’ हमने अपनी गंभीर चिंता जताते हुए कहा ।गरीबी रेखा ने तुरंत पलटवार किया,’आप जैसे लोग नहीं चाहते कि हमारा नामोनिशान रहे,यह तो सरकार की कृपा है जो हमें बचाए और बनाये हुए है।हमारे अस्तित्व पर ही विपक्ष का कैरियर दाँव पर लगा है।अगर हम न हों,तो सोचिए,इन सबका क्या होगा ? आप जैसे समृद्ध और आर्थिक विशेषज्ञ नहीं चाहते कि हम आंकड़ों में भी बचे रहें।हम न होंगे,फिर आप सब किस पर चर्चियांयेंगे ?’
बात को ज्यादा उलझते देखकर हमने अगला सवाल सामने धर दिया,’नई रपट बताती है कि देश के अंदर गरीबों की संख्या में भारी उछाल आया है पर आपकी ‘प्राइस वैल्यू’ बढ़ा दी गई है।इससे भविष्य में गरीबों के अल्पसंख्यक होने का खतरा नहीं पैदा हो गया ?आपके बने रहने के लिए बुरे दिन ही ज़रूरी हैं।ऐसे अच्छे दिनों में आप कैसे सर्वाइव कर पाएँगी ? ’ गरीबी रेखा पहले से और आश्वस्त होती हुई बोली,’आप इस बात से निसाखातिर रहें।जब तक हमारे माँ-बाप,मंहगाई और भ्रष्टाचार,पूरे दम-खम के साथ जिंदा हैं,हम बने रहेंगे,हमारा कुनबा बढ़ता रहेगा।अंदर की बात यह है कि हमारे बने रहने से समाज और सरकार के सभी पक्षों को प्राणवायु मिलती है।वैसे भी अमीर भाई इन छोटे-मोटे आंकड़ों से बेफिक्र रहते हैं।यहाँ तक कि इन्हीं आंकड़ों की बदौलत कइयों की वार्षिक-योजना बनती है।इसलिए हमारा होना सबकी प्राथमिकता में है।हम दोनों की तुलना ही बेमानी है।हमारी विकास दर इकाई-दहाई की रेन्ज में होती है जबकि उनकी करोड़ों-अरबों में,पर देखिये आंकड़े हमारे ही भारी पड़ते हैं।लोग चुनावी घोषणापत्र में किये गए वायदों को भूलकर हमारे आंकड़ों में उलझ जाते हैं।इससे सरकार व विपक्ष सभी को राहत मिल जाती है और चैनलों पर विशेषज्ञ भी बहसियाने लग जाते हैं।‘
यह बातचीत जारी थी,तभी देश के खर्चे का बोझ लादे वित्तमंत्री जी आते दिखाई दिए।गरीबी रेखा उनके साथ ही संसद भवन के अंदर प्रविष्ट हो गई।हो सकता है उसे वित्त मंत्री के भारी-भरकम सूटकेस से इस बार अपने लिए वैनिटी-बॉक्स निकलने का अंदेशा हो गया हो ! पर इधर हमारे विश्वस्त सूत्रों ने बिलकुल इसके उलट खबरें दी हैं।उनका कहना है कि नए मंत्री जी ने अपने बक्से में गरीबों के रंग-रोगन से ज्यादा उनके फर्स्ट-ऐड का सामान भरा है।अब उसमें से यदि कड़वी दवा निकलती है तो यह उनका दुर्भाग्य है।

'प्रजातंत्र लाइव' में 09/07/2014 को.

कोई टिप्पणी नहीं:

साहित्य-महोत्सव और नया वाला विमर्श

पिछले दिनों शहर में हो रहे एक ‘ साहित्य - महोत्सव ’ के पास से गुजरना हुआ।इस दौरान एक बड़े - से पोस्टर पर मेरी नज़र ठिठक ...