मंगलवार, 29 जुलाई 2014

बदलाव देखना है गर तो नज़र पैदा कर !

आम आदमी फ़ोकट में परेशान है जबकि सरकार हमेशा की तरह मंहगाई की तरफ़ से बेफिक्र है।उसे कथनी-करनी का फर्क बखूबी पता है।बढ़ती मंहगाई केवल चैनलों और अख़बारों में है।धीरे-धीरे यह वहाँ से भी हट जाएगी।इसके लिए प्रयास प्रारम्भ भी कर दिए गए हैं।धर्म और संस्कृति के बहाने किताबों में इतिहास के पुनर्लेखन की बात हो रही है।अब देश की सबसे बड़ी समस्या यही है।इसलिए विशेषज्ञ इस पर चिंतन में जुट गए हैं।उनके लिए आलू और टमाटर के बारे में सोचना ‘चिरकुटिया-चिंतन’ की श्रेणी में आता है।

आम आदमी अपने खाली थैलों को भर निगाह देख भी नहीं पा रहा है।उसका सब्जी का मासिक खर्च न्यूनतम हो गया है।ऐसे में हर महीने उसकी अच्छी-खासी बचत हो रही है।यह बात उसे अभी नहीं कुछ दिन बाद पता चलेगी जब उसका बैंक-बैलेंस भारी और शरीर हल्का हो जायेगा।इस अनोखे योग से अपनी देह को स्लिम करने के लिए उसके जिम का खर्चा भी बच गया।इससे अच्छे दिनों की उम्मीद तो उसे भी नहीं थी।योग वाले बाबा भी इसलिए इन दिनों गायब हैं।ऐसी सरकार में उनके योग के बिना ही आम आदमी अनुलोम-विलोम में जुटा है।बाबा भी नया सेक्टर तलाश रहे हैं।

कुछ लोग आम आदमी को बरगलाने में लग गए हैं।अजी,ढाई महीने हो गए और उसके हाथ में आया क्या ? पड़ोसी देश से फायरिंग अभी भी बंद नहीं हुई है।हमारे भूभाग को गलत नक़्शे में दिखा दिया गया है।ऐसे बेतुकी बातों को सुनकर आम आदमी बिंदास है।उसे पता है कि ये सब बुरे दिनों की खबरें हैं।उसको ‘अच्छे दिनों’ के नायक पर पूरा भरोसा है।लाल होते टमाटर और बढ़ते आलू पर वक्तव्य देना अब उनके जैसे पद वाले को शोभा भी नहीं देता।यह गली-मुहल्ले के विक्रेता और स्थानीय सट्टेबाज की मिलीभगत का मामला भर है।

देश आलू-टमाटर से कहीं बड़ा है और उससे भी बड़ा मसला है हमारे गौरव का।बच्चों के लिए स्कूल या अध्यापक भले न हों पर पाठ्य-पुस्तकों में हमारे अतीत का बखान ज़रूर हो।सरकार का सारा फोकस अब इसी ओर होना चाहिए।मंहगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दे तो स्वतः निपट जायेंगे जब धर्म और संस्कृति पर खतरा दिखाया जायेगा।रही बात बदलाव की,तो इतनी जल्दी गज भर की जुबान बन्द हो गई,ये क्या कम बड़ा बदलाव है ?

हिन्दुस्तान में 29/07/2014 को।

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