देश में इस समय सब कुछ राष्ट्रमय हो गया है।सरकार भी समझ रही है कि सारे लोग उसकी थाप पर राष्ट्रवादी मूड में नाच रहे हैं।राष्ट्रवादियों ने बड़ा दिमाग लगाया और पाया कि विभिन्नता में एकता वाले राष्ट्र से बड़ा कन्फ्यूजन क्रिएट हो रहा है।इसलिए राष्ट्र की अलग-अलग पहचान घोषित कर दी जाए,जिससे आने वाली पीढ़ी अपने बीच में से गैर-राष्ट्रीय को छाँटकर अलग कर सके।निश्चय यह किया गया कि जितने प्रतीकों पर ‘राष्ट्रीय’ का लेबल लगाया जा सके,जल्द लगाया जाय।यह काम खुलेआम अच्छा-सा बयान फेंककर किया जा सकता है।इससे पारदर्शिता के लिए सरकार की प्रतिबद्धता पर किसी को कोई शक भी न होगा।
राष्ट्रहित में गंभीर चिंतन करते हुए ऐसे बयान आने भी लगे हैं।सबसे पहले गीता को ‘राष्ट्रीय ग्रन्थ’ का दर्जा देने की बात की गई।बयान के साथ ही कुछ वजहें भी नत्थी की गईं,जिससे ऐसा करना निहायत ज़रूरी हो गया था।कहा गया कि देश में ग्रन्थों को लेकर बड़ी सुस्ती बरती जा रही है।लोग आधुनिक संचार साधनों के जंजाल से इतना चिपटे रहते हैं कि उन्हें धर्म की बातें पढने-सुनने का मौका ही नहीं मिलता।इन्हीं वजहों से लोग बाबाओं के आश्रमों और डेरों की ओर पलायन कर रहे हैं।यही सही समय है कि उन्हें ‘राष्ट्रीय ग्रन्थ’ की उपयोगिता से अवगत कराया जाय।
गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करने के पीछे इसका सूत्र-वाक्य है,’कर्म किये जा,फल की इच्छा मत कर तू इंसान,ये है गीता का ज्ञान’।अब इसको ढंग से समझने की ज़रूरत है,पर कुछ लोग केवल गीता का नाम सुनकर ही उछल पड़े हैं।अरे भाई ! ज़रा सेकुलर-खाँचे से निकलकर सोचिये,अर्थ स्पष्ट हो जायेगा।गीता कहती है कि तुम्हारा काम केवल कर्म करना है।फल की चिंता तुम मत करो।उसे तो हम हासिल कर ही लेंगे।तुम्हें मिलेगा भी तो किसी काम का नहीं।आजकल फल पाने से ज्यादा उसको बचा या पचा पाना बहुत मुश्किल हो गया है।इसे राष्ट्रीय घोषित करने से इसका संरक्षण स्वतः हो जायेगा और हमारी राष्ट्रीय जिम्मेदारी भी पूरी हो जाएगी।लोग तो केवल इसका जाप करें,किसी तरह की उम्मीद न करें।अगले चुनावों से पहले हम उसकी उम्मीदों को जगा देंगे और याद दिला देंगे कि उसका काम केवल वोट देना है ,बस।
सरकार की इस ‘राष्ट्रीय नीति’ में हमें भी दम लगता है।लगे हाथों इस विषय में कुछ सुझाव हमारी ओर से भी पेश हैं।सरकार को चाहिए कि वह योग सिखाने वाले बाबा को राष्ट्रीय संत घोषित कर दे,इससे उन्हें पूर्ण संरक्षण प्राप्त होगा और वो बेखटके अपना धंधा-पानी बढ़ा सकते हैं।कालेधन को ‘राष्ट्रीय शर्म’ घोषित कर देने से उसका नाम लेना भी शर्म का विषय हो जायेगा।ऐसे में मारे शर्म के कोई भी उस मुद्दे को उठाने से बचेगा।सरकार को भी अपना काम करने का समय मिलेगा।
सरकार को सबसे बड़ी राहत बयानबाजी के क्षेत्र में मिलेगी।आये दिन कोई न कोई मंत्री ऐसा बयान दे देता है,जिससे तूफ़ान आ जाता है।इसकी काट के लिए एक अचूक उपाय है।जिस बयान पर भी हंगामा शुरू हो जाय ,उसे तुरंत ‘राष्ट्रीय बयान’ घोषित कर दिया जाय।इससे उस बयान और सम्बंन्धित मंत्री को स्वतः संरक्षण प्राप्त हो जायेगा।संसद में इस बहाने कुछ काम-धाम भी हो लेगा।
आये दिन स्त्री-सुरक्षा को लेकर सरकार लाचार दिखती है ।इस फार्मूले से इसका भी निदान हो जायेगा।क्यों नहीं स्त्री को ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ घोषित कर दिया जाय ! इससे वो अपने-आप संरक्षण पा लेगी और सरकार भी अपने दायित्व से मुक्ति।’राष्ट्रीय धरोहर’ के लिए किसी दिवालिया होती विमानन कम्पनी से बेहतर कुछ नहीं होगा।इससे नए साल के आकर्षक कलेंडर छपना भी सुनिश्चित हो जायेगा और बेरोजगार मॉडलों को काम भी मिल सकेगा।
लोग कहते हैं कि कुछ बदल नहीं रहा है।जब ‘राष्ट्रीय’ तमगा मिलने पर ही सब कुछ चकाचक और दुरुस्त हो जाने की उम्मीद है तो सरकार को पहाड़ खोदने की क्या ज़रुरत है ? फिर भी किसी को सरकार से शिकायत रहती है तो सरकार को ही ‘राष्ट्रीय’ घोषित कर दिया जाय,इससे किसी को उस पर उँगली उठाने का मौका भी नहीं मिलेगा।
राष्ट्रहित में गंभीर चिंतन करते हुए ऐसे बयान आने भी लगे हैं।सबसे पहले गीता को ‘राष्ट्रीय ग्रन्थ’ का दर्जा देने की बात की गई।बयान के साथ ही कुछ वजहें भी नत्थी की गईं,जिससे ऐसा करना निहायत ज़रूरी हो गया था।कहा गया कि देश में ग्रन्थों को लेकर बड़ी सुस्ती बरती जा रही है।लोग आधुनिक संचार साधनों के जंजाल से इतना चिपटे रहते हैं कि उन्हें धर्म की बातें पढने-सुनने का मौका ही नहीं मिलता।इन्हीं वजहों से लोग बाबाओं के आश्रमों और डेरों की ओर पलायन कर रहे हैं।यही सही समय है कि उन्हें ‘राष्ट्रीय ग्रन्थ’ की उपयोगिता से अवगत कराया जाय।
गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करने के पीछे इसका सूत्र-वाक्य है,’कर्म किये जा,फल की इच्छा मत कर तू इंसान,ये है गीता का ज्ञान’।अब इसको ढंग से समझने की ज़रूरत है,पर कुछ लोग केवल गीता का नाम सुनकर ही उछल पड़े हैं।अरे भाई ! ज़रा सेकुलर-खाँचे से निकलकर सोचिये,अर्थ स्पष्ट हो जायेगा।गीता कहती है कि तुम्हारा काम केवल कर्म करना है।फल की चिंता तुम मत करो।उसे तो हम हासिल कर ही लेंगे।तुम्हें मिलेगा भी तो किसी काम का नहीं।आजकल फल पाने से ज्यादा उसको बचा या पचा पाना बहुत मुश्किल हो गया है।इसे राष्ट्रीय घोषित करने से इसका संरक्षण स्वतः हो जायेगा और हमारी राष्ट्रीय जिम्मेदारी भी पूरी हो जाएगी।लोग तो केवल इसका जाप करें,किसी तरह की उम्मीद न करें।अगले चुनावों से पहले हम उसकी उम्मीदों को जगा देंगे और याद दिला देंगे कि उसका काम केवल वोट देना है ,बस।
सरकार की इस ‘राष्ट्रीय नीति’ में हमें भी दम लगता है।लगे हाथों इस विषय में कुछ सुझाव हमारी ओर से भी पेश हैं।सरकार को चाहिए कि वह योग सिखाने वाले बाबा को राष्ट्रीय संत घोषित कर दे,इससे उन्हें पूर्ण संरक्षण प्राप्त होगा और वो बेखटके अपना धंधा-पानी बढ़ा सकते हैं।कालेधन को ‘राष्ट्रीय शर्म’ घोषित कर देने से उसका नाम लेना भी शर्म का विषय हो जायेगा।ऐसे में मारे शर्म के कोई भी उस मुद्दे को उठाने से बचेगा।सरकार को भी अपना काम करने का समय मिलेगा।
सरकार को सबसे बड़ी राहत बयानबाजी के क्षेत्र में मिलेगी।आये दिन कोई न कोई मंत्री ऐसा बयान दे देता है,जिससे तूफ़ान आ जाता है।इसकी काट के लिए एक अचूक उपाय है।जिस बयान पर भी हंगामा शुरू हो जाय ,उसे तुरंत ‘राष्ट्रीय बयान’ घोषित कर दिया जाय।इससे उस बयान और सम्बंन्धित मंत्री को स्वतः संरक्षण प्राप्त हो जायेगा।संसद में इस बहाने कुछ काम-धाम भी हो लेगा।
आये दिन स्त्री-सुरक्षा को लेकर सरकार लाचार दिखती है ।इस फार्मूले से इसका भी निदान हो जायेगा।क्यों नहीं स्त्री को ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ घोषित कर दिया जाय ! इससे वो अपने-आप संरक्षण पा लेगी और सरकार भी अपने दायित्व से मुक्ति।’राष्ट्रीय धरोहर’ के लिए किसी दिवालिया होती विमानन कम्पनी से बेहतर कुछ नहीं होगा।इससे नए साल के आकर्षक कलेंडर छपना भी सुनिश्चित हो जायेगा और बेरोजगार मॉडलों को काम भी मिल सकेगा।
लोग कहते हैं कि कुछ बदल नहीं रहा है।जब ‘राष्ट्रीय’ तमगा मिलने पर ही सब कुछ चकाचक और दुरुस्त हो जाने की उम्मीद है तो सरकार को पहाड़ खोदने की क्या ज़रुरत है ? फिर भी किसी को सरकार से शिकायत रहती है तो सरकार को ही ‘राष्ट्रीय’ घोषित कर दिया जाय,इससे किसी को उस पर उँगली उठाने का मौका भी नहीं मिलेगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें