‘सबका साथ,सबका विकास’ का उद्घोष करने वाले अब पूर्ण रूप से सक्रिय हो गए हैं।अभी तक दड़बों में घुसे देश-उद्धारक और समाज-सुधारक यक-ब-यक सामने आ गए हैं।आठ सौ सालों के बाद देश अब जाकर जागा है।खबर है कि दो हज़ार इक्कीस तक इसे किसी भी सूरत में सोने नहीं दिया जाएगा।लूटे गए माल की तुरंत ‘घरवापसी’ ज़रूरी है।कितने अच्छे दिन आ गए हैं कि इंसान अब माल बन गया है।जगह-जगह शिविर लग रहे हैं ताकि भूले-बिसरे लोग अपने घरों को सुरक्षित लौट सकें।समाज-सुधारकों द्वारा बनाये गए असली घरों में आते ही उन्हें भूख,बेकारी और छुआछूत से पूरी तरह निजात मिल जाएगी।यह नए हिन्दुस्तान का निर्माण है।
साहिबे-आलम चुप हैं।वैसे तो वे अकसर अपने मन की बात को जनता के पास रेडियो और टीवी द्वारा ‘फेंकते’ हैं पर उन्होंने घरवापसी पर गहन चुप्पी साध रखी है।कई लोग जब उन्हें सदन में ढूंढ रहे थे तब वे राज्यों में अपनी सत्ता ढूँढ रहे थे।ख़ास जगहों और मौकों से ख़ास का गायब हो जाना ही असली जादूगरी है।ठण्ड में घरवापसी भी आम की ही ज़रूरी है,ख़ास तो चलता-फिरता हीटर होता है।उसके बयान में धार और उसकी म्यान में तलवार दोनों बाय-डिफॉल्ट होते हैं।
धर्म के पुजारी मैदान में अपनी-अपनी कुदालें लेकर कूद पड़े हैं।धर्मयुद्ध करने का यही सही समय है।अब न अंग्रेजों के ज़ुल्म सहने की आशंका है और न ही नए देश को साधने की चुनौती।खाते-पीते और शांति से बढ़ते समाज में वैसे भी धर्म की पूछ-परख नहीं होती,ऐसे में उनके बाज़ार का क्या होगा ? लुटा हुआ माल दुकान पर आ जाये तो उसे मनमाने ढंग से फिर बेचकर लूटा जा सकता है।बाज़ार में इकलौती दुकान होगी तो ज़ाहिर है,टर्न-ओवर भी बढ़ेगा।बार-बार ‘अच्छे-दिन’ की माँग करने वाले अब खामोश हो गए हैं।उन्हें अब न मंहगाई दुखती है और न भ्रष्टाचार हलकान करता है।बड़े डर के आगे इस तरह भी छोटे डर दूर किये जा सकते हैं।यह तो बस ‘अच्छे दिनों’ का एक सैम्पल भर है.
पहले सफाई-अभियान को बुलंदी पर चढ़ाया गया और इसके लिए सड़कों और कार्यालयों की सफाई के बजाय सोशल मीडिया को ग्लैमरस फोटुओं से नहला दिया.इसके साथ गाँधी जी को भी जी भर के याद किया गया.अब सफाई वाली झाड़ू किसी कोने में पड़ी है और गाँधी जी फ्रेम में टांग दिए गए हैं.
फ़िलहाल मुक्ति का नया राग ईज़ाद हो गया है.सब इसे पंचम सुर में अलाप रहे हैं.मंहगाई-मुक्त,भ्रष्टाचार-मुक्त,कांग्रेस-मुक्त,परिवारवाद-मुक्त भारत अब मानवता,समानता और सौहार्द-मुक्त होने की दहलीज़ पर खड़ा है।आइए,इन अच्छे दिनों में आपका...नहीं नहीं, केवल घरवापसी करने वालों का स्वागत है !
साहिबे-आलम चुप हैं।वैसे तो वे अकसर अपने मन की बात को जनता के पास रेडियो और टीवी द्वारा ‘फेंकते’ हैं पर उन्होंने घरवापसी पर गहन चुप्पी साध रखी है।कई लोग जब उन्हें सदन में ढूंढ रहे थे तब वे राज्यों में अपनी सत्ता ढूँढ रहे थे।ख़ास जगहों और मौकों से ख़ास का गायब हो जाना ही असली जादूगरी है।ठण्ड में घरवापसी भी आम की ही ज़रूरी है,ख़ास तो चलता-फिरता हीटर होता है।उसके बयान में धार और उसकी म्यान में तलवार दोनों बाय-डिफॉल्ट होते हैं।
धर्म के पुजारी मैदान में अपनी-अपनी कुदालें लेकर कूद पड़े हैं।धर्मयुद्ध करने का यही सही समय है।अब न अंग्रेजों के ज़ुल्म सहने की आशंका है और न ही नए देश को साधने की चुनौती।खाते-पीते और शांति से बढ़ते समाज में वैसे भी धर्म की पूछ-परख नहीं होती,ऐसे में उनके बाज़ार का क्या होगा ? लुटा हुआ माल दुकान पर आ जाये तो उसे मनमाने ढंग से फिर बेचकर लूटा जा सकता है।बाज़ार में इकलौती दुकान होगी तो ज़ाहिर है,टर्न-ओवर भी बढ़ेगा।बार-बार ‘अच्छे-दिन’ की माँग करने वाले अब खामोश हो गए हैं।उन्हें अब न मंहगाई दुखती है और न भ्रष्टाचार हलकान करता है।बड़े डर के आगे इस तरह भी छोटे डर दूर किये जा सकते हैं।यह तो बस ‘अच्छे दिनों’ का एक सैम्पल भर है.
पहले सफाई-अभियान को बुलंदी पर चढ़ाया गया और इसके लिए सड़कों और कार्यालयों की सफाई के बजाय सोशल मीडिया को ग्लैमरस फोटुओं से नहला दिया.इसके साथ गाँधी जी को भी जी भर के याद किया गया.अब सफाई वाली झाड़ू किसी कोने में पड़ी है और गाँधी जी फ्रेम में टांग दिए गए हैं.
फ़िलहाल मुक्ति का नया राग ईज़ाद हो गया है.सब इसे पंचम सुर में अलाप रहे हैं.मंहगाई-मुक्त,भ्रष्टाचार-मुक्त,कांग्रेस-मुक्त,परिवारवाद-मुक्त भारत अब मानवता,समानता और सौहार्द-मुक्त होने की दहलीज़ पर खड़ा है।आइए,इन अच्छे दिनों में आपका...नहीं नहीं, केवल घरवापसी करने वालों का स्वागत है !
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