गुरुवार, 29 जनवरी 2015

सम्मान और संन्यासी !

पद्म पुरस्कार हर बार की तरह इस बार भी खूब बंटे हैं। जिनको मिलना था मिले,जिनको नहीं मिलना था,उन्हें भी दिए गए। जिन लोगों ने इन्हें शिरोधार्य किया,माना जाता है कि वो इसके सही पात्र थे पर जिन लोगों ने इन्हें लेने से मना किया ,उन्होंने इस बहाने बताया कि वो इनसे बहुत बड़े हैं। स्वामी जी और संतश्री ने तो पद्म-पुरस्कार का तिरस्कार यह कहकर किया कि साधु-संतों को इस तरह के पुरस्कारों से कोई मतलब नहीं। वे तो निस्वार्थ भाव से बस समाज-सेवा करना चाहते हैं।
स्वामीजी और संतश्री को लगता है कि उनकी सेवा-साधना में इस तरह के सम्मान और पुरस्कार न केवल खलल डालते हैं बल्कि उनका अपने धंधे की ओर से ध्यान भी भंग करते हैं। स्वामीजी निःशंक भाव से गाय का घी बेचते रहें,इसके लिए सम्मान से अधिक जेड-प्लस सुरक्षा ज़रूरी है। बाबा को पद्म-सम्मान वह अहसास नहीं दे सकता जो दर्जनों कमांडों से घिरे होने पर मिलता है। चौतरफ़ा सुरक्षा से घिरा होना ही बताता है कि कोई समाज या देश के लिए कितनी अहमियत रखता है। पद्म-सम्मान तो एक रुक्का भर है। बाबा यूं ही नहीं पहुंचे हुए योगी हैं ! पहले कई मौकों पर वे भले ही पुरस्कार और सम्मान स्वीकार कर चुके हों पर जब सामने जब बड़ा फ़ायदा नज़र आ रहा हो तो छोटे-मोटे त्याग भी कुछ न देकर बहुत कुछ दे जाते हैं।
संतश्री की ख्याति अंतरराष्ट्रीय स्तर की है। विदेशों में बड़े-बड़े सम्मान उन्होंने अपने धवल-वस्त्र में खूब समेटे हैं। हमारी सरकार ने भी उनकी इस अर्हता को देखते हुए सम्मानित करने का फैसला किया पर उसे नहीं पता था कि ऐसा करने से उनकी रेटिंग में गिरावट आ सकती है। संतश्री को ’ग्लोबल-टच’ और ‘लोकल-टच’ वाले सम्मान के बीच का अंतर बखूबी पता था सो पद्म-सम्मान उनके लिए अचानक ‘अनटचेबल’ हो गया। कारण यही कि एक संत को सम्मान से क्या काम ! उनका नाम वैसे ही दोहरी समृद्धि लिए हुए है,इसलिए इस सम्मान को ठुकराकर भी उनको दोहरा लाभ मिल गया है। एक तो त्यागी होने को लेकर उठती नित-नई आशंकाओं को उन्होंने खारिज़ किया तो दूसरी ओर अपना अंतरर्राष्ट्रीय ब्रांड भी बरकरार रखा।
संन्यासियों को वैसे भी क्या चाहिए ! वो तो जो भी अर्जित करते हैं,सब बाँटने के लिए होता है,बशर्ते वह सुपात्र हो। सरकार को भले ही सुपात्र की परख न हो पर आजकल के बाबा और संन्यासियों को अपने पात्र की खूब फ़िक्र होती है। वे हमेशा भरे होने चाहिए। उन्हें सुख,समृद्धि और सुरक्षा से परहेज नहीं है क्योंकि ये सब होंगे तो ऐसे सम्मान उनके आगे-पीछे घूमेंगे और सरकारें सिर के बल खड़ी होंगी।

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