दोपहर में कक्कू मिले तो बहुत भन्नाए हुए थे।धूप बहुत हल्की थी पर हमें देखते ही गरमा गए।कहने लगे-‘ई नहाने का खोज किसने किया है ? इहाँ ठण्ड के मारे हाथ नहीं उठ रहा और घरैतिन कहती हैं कि हम दो लोटा पानी अपने ऊपर डाल लें।ये हमसे तो ना हो सकेगा।’कक्कू की समस्या सुनकर हम भी परेशान हो गए पर उनके प्रश्न का उत्तर हमारे पास भी नहीं था।हमने बात बदलते हुए पूछा,’कक्कू,नहाने की खोज से ज्यादा अहम् लोटे की खोज है।अगर ये न होता तो इसे यूँ उठाने की नौबत ही न आती।’ हमारी बात सुनते ही कक्कू नहाने से लोटे की तरफ लौट पड़े।वे बोले-तुम बिलकुल ठीक कहत हौ लल्लू ! सारे झगड़े की जड़ यही लोटवा ही है।अब हमें नहाने से कउनो समस्या नाही है।लोटा है तो उठाना ही पड़ेगा नहीं तो मौका पाते ही ई ससुर इधर-उधर लुढ़कने भी लगता है ।’
लोटे की लुढ़कन-क्षमता को देखते हुए हमें इसमें तमाम संभावनाएँ नज़र आने लगीं।सोचने लगा कि इसकी खोज ज़रूर हमारे ही देश में हुई होगी।तभी तो जिस किसी को देखो,जहाँ देखो वहीँ लुढ़का जा रहा है या लुढ़कने पर आमादा है।आदमी अपने कर्म से,संत अपने धर्म से,नेता अपने दल से,रुपया बाज़ार से और सरकार अपने वादे से लगातार लुढ़क ही तो रही है।अब अगर लोटे की खोज करने वाले की खोज हो भी जाए तो क्या हमारी लुढ़कन-क्षमता में कोई फर्क पड़ेगा ?हम लुढ़कने का कारण सोचने लगे।
कक्कू को लगा कि उन्होंने ऐसा क्या कह दिया जो अचानक हम इस तरह की गंभीर-मुद्रा में आ गए।बोलने लगे-‘बेटा,छोड़ो नहाने-धोने की चिंता।हम तो अपने शरीर पर दो बूँद गंगाजल छिड़क लेंगे,हो जायेगा हमरा नहान।भला हो गंगा मैया की खोज करने वाले भगीरथ की,ऊ न होते तो आज इतनी ठण्ड में हम कइसे बचते ?’
‘पर कक्कू विज्ञान या इतिहास की किताबों में तो कहीं ऐसा नहीं लिखा है कि भगीरथ गंगा को स्वर्ग से लाए थे।हमने तो पढ़ा है कि गंगा हिमालय से निकलती हैं।‘ हमने कक्कू के सामने अपनी पढ़ाई खोलकर रख दी।कक्कू अब तक ठण्ड से पूरी तरह बाहर निकल आये थे।मेरे सवाल ने और गरमाहट पैदा कर दी थी।वे कहने लगे-‘मैंने तेरे बाप से कहा था कि इसे पढ़ने शहर मत भेजियो पर हमरी सुनता कौन है ! ई सब शहरी किताबों में लिखा नहीं मिलेगा और ना ही विलायती लोगन के जेहन में लल्लू ! ’ कक्कू पूरी तरह तैश में थे।वे बोले जा रहे थे-‘पुराने ग्रन्थन में जो विज्ञान भरा पड़ा है,उसे समझे के लाने वैसन ही सोच चाही।आज जहाज में बैठकर दुनिया कितना भी इतरा ले पर पुराने समय में पुष्पक विमान जैसा अजूबा हमारे ही पास था जिसमें एक सीट हमेशा खाली रहती थी।पर उस खोज की दुनिया को कोई खबर नहीं है।’इतना कहकर कक्कू अचानक रुक गए।
हमने देखा,सामने से काकी चली आ रही थीं।अब कक्कू लोटे को खोजने लग गए,जो वहीँ कहीं लुढ़क गया था।इधर लोटा उनके हाथ में आया और हम उनका नहान पक्का जानकर नए ठिकाने की खोज में निकल पड़े।
लोटे की लुढ़कन-क्षमता को देखते हुए हमें इसमें तमाम संभावनाएँ नज़र आने लगीं।सोचने लगा कि इसकी खोज ज़रूर हमारे ही देश में हुई होगी।तभी तो जिस किसी को देखो,जहाँ देखो वहीँ लुढ़का जा रहा है या लुढ़कने पर आमादा है।आदमी अपने कर्म से,संत अपने धर्म से,नेता अपने दल से,रुपया बाज़ार से और सरकार अपने वादे से लगातार लुढ़क ही तो रही है।अब अगर लोटे की खोज करने वाले की खोज हो भी जाए तो क्या हमारी लुढ़कन-क्षमता में कोई फर्क पड़ेगा ?हम लुढ़कने का कारण सोचने लगे।
कक्कू को लगा कि उन्होंने ऐसा क्या कह दिया जो अचानक हम इस तरह की गंभीर-मुद्रा में आ गए।बोलने लगे-‘बेटा,छोड़ो नहाने-धोने की चिंता।हम तो अपने शरीर पर दो बूँद गंगाजल छिड़क लेंगे,हो जायेगा हमरा नहान।भला हो गंगा मैया की खोज करने वाले भगीरथ की,ऊ न होते तो आज इतनी ठण्ड में हम कइसे बचते ?’
‘पर कक्कू विज्ञान या इतिहास की किताबों में तो कहीं ऐसा नहीं लिखा है कि भगीरथ गंगा को स्वर्ग से लाए थे।हमने तो पढ़ा है कि गंगा हिमालय से निकलती हैं।‘ हमने कक्कू के सामने अपनी पढ़ाई खोलकर रख दी।कक्कू अब तक ठण्ड से पूरी तरह बाहर निकल आये थे।मेरे सवाल ने और गरमाहट पैदा कर दी थी।वे कहने लगे-‘मैंने तेरे बाप से कहा था कि इसे पढ़ने शहर मत भेजियो पर हमरी सुनता कौन है ! ई सब शहरी किताबों में लिखा नहीं मिलेगा और ना ही विलायती लोगन के जेहन में लल्लू ! ’ कक्कू पूरी तरह तैश में थे।वे बोले जा रहे थे-‘पुराने ग्रन्थन में जो विज्ञान भरा पड़ा है,उसे समझे के लाने वैसन ही सोच चाही।आज जहाज में बैठकर दुनिया कितना भी इतरा ले पर पुराने समय में पुष्पक विमान जैसा अजूबा हमारे ही पास था जिसमें एक सीट हमेशा खाली रहती थी।पर उस खोज की दुनिया को कोई खबर नहीं है।’इतना कहकर कक्कू अचानक रुक गए।
हमने देखा,सामने से काकी चली आ रही थीं।अब कक्कू लोटे को खोजने लग गए,जो वहीँ कहीं लुढ़क गया था।इधर लोटा उनके हाथ में आया और हम उनका नहान पक्का जानकर नए ठिकाने की खोज में निकल पड़े।
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