‘अच्छे दिन’ ठीक एक साल पहले आए थे।कुछ लोगों को फ़िर भी
भरोसा नहीं हो रहा था।वे दूरबीन लगाये ताकते ही रह गए पर उन्हें ‘वे दिन’ दिखाई न
दिए।इस बीच साल पूरा हुआ और उसका ज़श्न शुरू हो गया।देश में चौतरफ़ा मच रहे जलसे की
मार से ‘बुरे दिन’ बड़े आहत हुए।वे अचानक उठे और चले गए।अच्छे दिनों की आमद को
नकारने वाले एकदम से सन्न रह गए हैं।अब तो सरेआम यह प्रमाणित हो चुका है कि ‘अच्छे
दिन’ हमारे साथ हैं क्योंकि ‘बुरे दिन’ हैं नहीं।दोनों एक साथ रह भी तो नहीं सकते
!
‘अच्छे दिन’ और बुरे दिन’ का फंडा एकदम सीधा है।जो लोग यह
मानने को तैयार नहीं हो रहे थे कि अच्छे दिन आ गए हैं,उनका मुँह इस बात से बंद हो
गया है कि बुरे दिन चले गए हैं।इस बात की तस्दीक सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर
भी कर दी है।’अच्छे दिनों’ की आवक के लिए विदेशों में ‘दुःख भरे दिन बीते रे भइया’
का कोरस-गान भी किया गया।और देखिए,ठीक एक साल बाद पके आम की तरह ‘अच्छे दिन’ हमारे
सामने टपक पड़े।
कहा तो यह भी जा रहा है कि ‘बुरे दिन’ भयभीत होकर भागे हैं।जैसे
कृष्ण ने मथुरा जाकर कंस का विनाश किया था,वैसे ही मथुरा में ‘बुरे दिनों’ का
खात्मा हुआ है।कुछ लोग इसे महज ऐलान मान रहे हैं पर सच्ची बात तो यह है कि जब ऐलान
करके ‘अच्छे दिन’ आ सकते हैं,तो ‘बुरे दिन’ जा क्यों नहीं सकते ?
जिस
तरह ‘काला धन’ जुमला बनकर गायब हो गया,ठीक उसी तरह विरोधियों द्वारा लगायी जा
रही ‘अच्छे दिनों’ की रट भी हमेशा के लिए
दफ़न हो गई है।सरकार ने यह भी साफ़ कर दिया है कि ‘अच्छे दिनों’ की गारंटी सबके लिए
नहीं थी,हाँ,उसके मुताबिक ‘बुरे दिन’ ज़रूर कुछ के आए हैं और इस प्रक्रिया को वह और
विस्तार देगी।
‘बुरे दिनों’ के चले जाने का सरकार का दावा
इसलिए भी मजबूत जान पड़ता है क्योंकि उसने बताया है कि जित्ते रूपये में पहले कफ़न
नहीं मिलता था,उसने बीमा करा दिया है।लोग बेफिक्र होकर मर तो सकेंगे !
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