बुधवार, 6 मई 2015

आदमी और 'बादल' का बरसना !

पहले बादल बरसे,बेमौसम बरसे।कहा गया कि यह तो ईश्वर की लीला है।इस पर न किसी का ज़ोर है न वश।फ़िर भूडोल आया,जबरदस्त आया।कहा गया कि शेषनाग ने बस जरा सी करवट बदली है।इस पर भी किसी का वश नहीं।इसके बाद चलती बस से शैतानियत बरसी,इंसानियत मरी।फ़िर से कहा गया,’रब दी मर्जी है हम कुछ नहीं कर सकते ।आदमी बड़ा हलकान है।वह सरकार से लड़ सकता है।जंतर-मंतर जा सकता है पर भगवान से कहाँ जाकर लड़े ? उसका कोई एक ठिकाना भी तो नहीं।मंदिर में जाए तो पुजारी अड़ जाता है।मस्जिद में जाए तो मुल्ला भिड़ जाता है।चर्च में पादरी तो गुरूद्वारे में ग्रंथी उसकी राह रोक लेता है।

सरकार से बेबस आदमी बरसना चाहता है पर किस पर बरसे ? उसके बरसने के सारे रास्ते बंद हैं।बात जब ईश्वर की आ जाती है,सरकार भी बे-बस हो जाती है।बस पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है पर जनता पूरी तरह उसके वश में है।सुरक्षा-व्यवस्था चाक-चौबंद है।अपराधी सरपट भाग रहे हैं।सरकार के पास बस तो है पर वह बेबस है।ईश्वर की मर्ज़ी के आगे बड़े-बड़े बे-बस हो जाते हैं।शायद ऐसे ही लोगों को मौक़ा मिलने पर जनता पैदल कर देती है।पर अभी वह खुद पैदल है और सरकार के पास बस है।मगर सरकार भी क्या करे ? उसने साफ़ कर दिया है कि बस की स्टेयरिंग ईश्वर के हाथ में है और वह नामुराद इन दिनों जरा कुपित है।

आदमी बसमें है,सरकार को यह जानकारी है।यही उसके अख्तियार में है।उसके बे-बस होने की न तो उसके पास पुख्ता खबर है और न ही उस पर उसका ज़ोर है।बस की मालिक सरकार भले है पर उसमें सफ़र करते सामानका मालिक ऊपरवाला है।बस में लिखा भी होता है,’सवारी अपने सामान की रक्षा स्वयं करे।ऐसी स्पष्ट उद्घोषणा के बाद भी यदि कोई बादलपर बरसता है तो यह सर्वथा अनुचित है।बादल पर न कोई गरज सकता है न ही बरस।यह काम बादल का ही है।संकट के बादल दूसरों पर ही छाते हैं,इसलिए उन्हें डरना चाहिए जिनके पास अपने छाते नहीं है।सरकार के पास उसका बना-बनाया छाता है:ईश्वर की मर्ज़ी,इसीलिए सब उसके वश में हैं।

प्रतिकूल मौसम में बादल बरसना दुखदायी होता है।इसमें सरकार या उसके कारिंदों का दोष नहीं है।ईश्वर की मर्ज़ी से जब एक पत्ता तक न हिलता हो,इतने बहुमत से आई सरकार भला कैसे हिल सकती है ? मगर नादान परिंदों को क्या पता ! वे तपती दोपहर में काले बादल से एक बूँद की उम्मीद लगा बैठे हैं।उन्हें घाघ की कहावत नहीं याद कि काला बादल जी डरवावे,भूरा बादल पानी लावे।उन्हें तो यह भी नहीं पता कि सरकारी-बादल के पास जीवित प्राणियों के लिए केवल कहर है।हाँ अगर कोई मर-मरा गया तो मुआवजे की एक बूँद टपकाने में रत्ती-भर की देरी नहीं होती।फ़िर भी आप बादल से उम्मीद लगाये बैठे हैं तो गलती किसकी है ?
 

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