बुधवार, 13 मई 2015

भूकम्प से गुजरते हुए !

लो जी,फिर आ गया भूकम्प।बड़ी मुश्किल से फिर अपनी जान बचा पाए ! लगता है यह किसी दिन हमारी इकलौती जान लेकर ही रहेगा।जिस तरह से हर दूसरे-तीसरे दिन यह आ धमकता है,उससे तो लगता है कि इसके पास भी और कोई काम नहीं है।हम तो आराम से तीसरी मंजिल पर बैठे दोस्तों के संग गप्प मार रहे थे,तभी नीचे से ‘भूकम्प,भूकम्प’ की आवाज सुनाई दी।तस्दीक करने के लिए हमने तुरंत फेसबुक खोला,तो सबके स्टेटस हिलते हुए नज़र आये।पक्का हो गया कि भूकम्प आया है।हम कमरे से बाहर जल्दी से निकलने लगे तो एक साथी ने कहा ,’भाई ज्यादा परेशान न हो।तुम सीढ़ियों से नीचे देर में पहुँचोगे,भूकम्प उससे पहले तुम्हें नीचे पहुँचा देगा।’इतना सुनते ही हम वहीँ ठिठक गये।

हमारे दिल की धडकन को उस समय मापा जाता तो बिलकुल वही रीडिंग आती,जो रिक्टर-स्केल मापता है।जो दिल पहले सामान्य-सा होता है,कई बार तो केवल भूकम्प की तीव्रता जानकर ही कांपने लगता है।इसलिए भूकम्प की खबरें सुनने से मैं बचता हूँ।धरती भूकम्प से जितना नहीं थर्राती,उतना तो चैनल वाले भूकम्प की पिछली तस्वीरें दिखाकर हिला डालते हैं।इससे भी अधिक डराने का काम फेसबुक करता है।झुमरीतलैया से लेकर अंडमान निकोबार तक सारी धरती डोलती नज़र आती है और हर आदमी भूकम्प का चश्मदीद।भूकम्प से बचने का तरीका तो सब बताते हैं पर इनसे कैसे बचा जाए,कोई नहीं बताता।

पहले सलमान को बेल मिलने से हिन्दुस्तान की मीडिया में भूकम्प आया,फिर अम्मा की रिहाई पर पूरे दिन आता रहा।कोई इसे न्याय-व्यवस्था पर भूकम्प बता रहा था तो कोई पॉवर और पैसे के डेडली-कॉम्बिनेशन को।इसके बाद आज फिर असल भूकम्प आ गया।अब इस पर परिचर्चा होगी।ग्लोबल-वार्मिंग पर चिंता जताई जाएगी और फिर सब कुछ पहले जैसा हो जायेगा।

भूकम्प के इस तरह हमारी जिंदगी में आये दिन दखल देने से खुद भूकम्प की महत्ता घट रही है।पहले कभी दस-बीस साल में ऐसी खबरें आती थीं,अब दस-बीस मिनट में।शायद खबरों को भी बने रहने के लिए ऐसे भूकम्प आने ज़रूरी हैं।हमारे दिल की धड़कन सामान्य रहने से न चैनल वालों का भला है और न ही सरकार का।हम तो सरकार से आग्रह करते हैं कि दाऊद को चाहे पकड़े या न पकड़े,पर इस भूकम्प का ज़रूर कुछ करे।

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