हम सभी की चाह अंततः मुक्ति पाने की होती है।हर समय हम किसी न किसी से मुक्ति की चाह रखते हैं।हमारी इस बुनियादी ज़रूरत को केवल सरकार समझती है।अपनी इसी दूरदर्शिता के चलते वह मुक्ति-मार्ग पर चल पड़ी है।दूसरी सरकारें जहाँ जनता का इहलोक सुधारने का टेंडर उठाती थीं,इसने परलोक को भी अपने हाथ में ले लिया है।यह काम पहले जिनके ‘हाथ’ में था,वे स्वयं मुक्त हो चुके हैं.जनता अब भी छटपटा रही है.सरकार इस जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकती.इसलिए वह बार-बार मुक्ति के गीत गा रही है.
मुक्ति पाने के लिए अब किसी साधक को घनघोर तपस्या या हठयोग करने की ज़रूरत नहीं है।सीधा-सा फंडा है-मुक्त-भाव से जीवनपर्यन्त ऐश और आखिर में गंगाजल की दो बूँदें।इससे दालरोटी के शाश्वत चिन्तन से भी मुक्ति मिलती है और मोक्ष का द्वार खुलता है सो अलग।जिनको ऐसा तिलस्मी फंडा नहीं मिलता,उन्हीं के गले फंदे संग मोहब्बत कर बैठते हैं और निर्वाण को प्राप्त होते हैं.
सरकार इस दिशा में लगातार काम कर रही है।उसकी कोशिश कई तरह के कर ईजाद कर चीजों को मूल्य-मुक्त करने की है।इस तरह वस्तु का वास्तविक मूल्य उसमें लगे कर से स्वतः कम हो जाएगा।लोगों को चीजें तो मुफ़्त मिलेंगी पर उन्हें इसके लिए सरकार को ‘सेवाकर' चुकता करना होगा।आखिर जितनी ज्यादा सेवा,उतना ज़्यादा सेवाकर।अब तो यह सब मानते हैं कि यह सरकार उसकी अधिकतम सेवा कर रही है। अख़बार ,टेलीविजन और रेडियो भी यही बता रहे हैं।इतनी व्यस्तता के बीच भी सरकार का ध्यान ‘कर- मुक्त' भारत पर है।यह परियोजना सीध-सीधे चुनावी-जंग से जुड़ी हुई है।अभी हाल ही में कई राज्य ‘करमुक्त’ हुए भी हैं।मुक्त होने वाले इसमें सरकार का हाथ मानते हैं ।विपक्ष को लगता है कि दरअसल सरकार का उद्देश्य पूरी तरह विपक्ष-मुक्त हो जाना है।यह निर्वाण की राह नहीं उनके नाश की साज़िश है।गंगाजल को घर-घर पहुँचाना इसी रणनीति का हिस्सा है।यह धरती अगर पापमुक्त हो गई तो कोई चुनाव कैसे जीता जाएगा?
तुलसी बाबा बहुत पहले मुक्ति पाने की तरकीब बता गए हैं।उनका कहना था कि मुक्ति चार प्रकार से मिल सकती है;’दरस,परस,मज्जन अरु पाना’।अर्थात दर्शन करने,छूने,नहाने और पीने से।सरकार ने इन सभी विकल्पों को हमारे लिए उपलब्ध कर रखा है।जिसे मंहगी दाल से मुक्ति पानी है तो बस एक नजर उसे देख भर ले।सूखे इलाकों में जिन्हें पानी नहीं मिल रहा,वे नल की टोंटियों को छू भर लें।इससे उनकी प्यास छू हो जाएगी और जल को ढोकर लाने से मुक्ति भी मिलेगी।नहाने से मुक्ति यूँ ही मिल जाएगी,जब बूँद भर पानी ही नहीं होगा।आखिरी और इन सबसे बढ़िया उपाय पीकर मुक्ति पाना है।जो लोग समर्थ हैं,वे आलरेडी ‘पी’ रहे हैं।बाकियों के लिए सरकार ने डाकिए का इंतजाम कर दिया है।यह मुक्ति का सबसे सरल मार्ग है।बस एक एसएमएस भेजिए और मुक्ति-प्रदायिनी गंगा आपको सभी भौतिक दुखों से मुक्त कर देंगी।
सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में भी मुक्ति-राह खोल दी है।कई महापुरुष जो आज़ादी के बाद से किताबों में बंद पड़े छटपटा रहे थे,उसने उन्हें हटाकर मुक्त कर दिया है।इससे वे तो मुक्त हुए ही हैं,पढ़ने वाले भी हो गए।आखिर हमारे शास्त्रों में कहा ही गया है,’सा विद्या या विमुक्तये’ ,अर्थात विद्या वही जो मुक्ति प्रदान करे;ज्ञान से,डिग्री से और तर्क से।सो देश राह बदल रहा है,आगे बढ़ रहा है।
मुक्ति पाने के लिए अब किसी साधक को घनघोर तपस्या या हठयोग करने की ज़रूरत नहीं है।सीधा-सा फंडा है-मुक्त-भाव से जीवनपर्यन्त ऐश और आखिर में गंगाजल की दो बूँदें।इससे दालरोटी के शाश्वत चिन्तन से भी मुक्ति मिलती है और मोक्ष का द्वार खुलता है सो अलग।जिनको ऐसा तिलस्मी फंडा नहीं मिलता,उन्हीं के गले फंदे संग मोहब्बत कर बैठते हैं और निर्वाण को प्राप्त होते हैं.
सरकार इस दिशा में लगातार काम कर रही है।उसकी कोशिश कई तरह के कर ईजाद कर चीजों को मूल्य-मुक्त करने की है।इस तरह वस्तु का वास्तविक मूल्य उसमें लगे कर से स्वतः कम हो जाएगा।लोगों को चीजें तो मुफ़्त मिलेंगी पर उन्हें इसके लिए सरकार को ‘सेवाकर' चुकता करना होगा।आखिर जितनी ज्यादा सेवा,उतना ज़्यादा सेवाकर।अब तो यह सब मानते हैं कि यह सरकार उसकी अधिकतम सेवा कर रही है। अख़बार ,टेलीविजन और रेडियो भी यही बता रहे हैं।इतनी व्यस्तता के बीच भी सरकार का ध्यान ‘कर- मुक्त' भारत पर है।यह परियोजना सीध-सीधे चुनावी-जंग से जुड़ी हुई है।अभी हाल ही में कई राज्य ‘करमुक्त’ हुए भी हैं।मुक्त होने वाले इसमें सरकार का हाथ मानते हैं ।विपक्ष को लगता है कि दरअसल सरकार का उद्देश्य पूरी तरह विपक्ष-मुक्त हो जाना है।यह निर्वाण की राह नहीं उनके नाश की साज़िश है।गंगाजल को घर-घर पहुँचाना इसी रणनीति का हिस्सा है।यह धरती अगर पापमुक्त हो गई तो कोई चुनाव कैसे जीता जाएगा?
तुलसी बाबा बहुत पहले मुक्ति पाने की तरकीब बता गए हैं।उनका कहना था कि मुक्ति चार प्रकार से मिल सकती है;’दरस,परस,मज्जन अरु पाना’।अर्थात दर्शन करने,छूने,नहाने और पीने से।सरकार ने इन सभी विकल्पों को हमारे लिए उपलब्ध कर रखा है।जिसे मंहगी दाल से मुक्ति पानी है तो बस एक नजर उसे देख भर ले।सूखे इलाकों में जिन्हें पानी नहीं मिल रहा,वे नल की टोंटियों को छू भर लें।इससे उनकी प्यास छू हो जाएगी और जल को ढोकर लाने से मुक्ति भी मिलेगी।नहाने से मुक्ति यूँ ही मिल जाएगी,जब बूँद भर पानी ही नहीं होगा।आखिरी और इन सबसे बढ़िया उपाय पीकर मुक्ति पाना है।जो लोग समर्थ हैं,वे आलरेडी ‘पी’ रहे हैं।बाकियों के लिए सरकार ने डाकिए का इंतजाम कर दिया है।यह मुक्ति का सबसे सरल मार्ग है।बस एक एसएमएस भेजिए और मुक्ति-प्रदायिनी गंगा आपको सभी भौतिक दुखों से मुक्त कर देंगी।
सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में भी मुक्ति-राह खोल दी है।कई महापुरुष जो आज़ादी के बाद से किताबों में बंद पड़े छटपटा रहे थे,उसने उन्हें हटाकर मुक्त कर दिया है।इससे वे तो मुक्त हुए ही हैं,पढ़ने वाले भी हो गए।आखिर हमारे शास्त्रों में कहा ही गया है,’सा विद्या या विमुक्तये’ ,अर्थात विद्या वही जो मुक्ति प्रदान करे;ज्ञान से,डिग्री से और तर्क से।सो देश राह बदल रहा है,आगे बढ़ रहा है।
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