मंगलवार, 28 जून 2016

मँहगाई कहाँ है,कहाँ है मँहगाई !

सरकार ने दो टूक कह दिया है कि मँहगाई नहीं है तो नहीं है।वह कभी भी गलतबयानी नहीं कर सकती।उसका कहा आधिकारिक वक्तव्य होता है।विपक्ष मान नहीं रहा।उसको लगता है कि मँहगाई उसकी छाती पर सवार है।इसमें उसकी गलती नहीं है।इसका अहसास उन्हें ही होता है,जो विपक्ष में होते हैं।कुर्सी से दूर रहना कितना मँहगा पड़ता है,वे ही जानते हैं।


सच यह है कि मँहगाई सबको अपने दर्शन नहीं देती।जो खुद को उसके भरोसे छोड़ देते हैं,उन्हें साफ़-साफ़ दिखती है।पिछले चुनावों के समय वह अपने यौवन पर थी।तत्कालीन सरकार को तब भी नहीं दिख रही थी।उस समय विपक्ष को धुन सवार थी,’अबकी बार, मँहगाई पर वार’।चुनाव हुए,वार सही पड़ा और वह चित्त हो गई।इसीलिए आज वह नज़र नहीं आ रही।सरकार जोर-जोर से पुकार रही है,’कहाँ है मँहगाई’ पर कहीं हो तो दिखे !

दाल,आलू और टमाटर में तो इत्ती हिम्मत नहीं है कि ऐसी बोल-बहादुर सरकार को हिला सकें।देश-विदेश में जिस सरकार के नगाड़े बज रहे हों,वहाँ नक्कारखाने में तूती की आवाज़ कौन सुनेगा ?सरकार समझदार है,सब जानती है।वैसे भी मँहगाई चुनावों से पहले कहीं नहीं आने वाली।तब तक ऐसे मुद्दों का पलायन इतनी तेजी से हो लेगा कि लोगों को सिर्फ़ ‘पलायन’ याद रह जाएगा।

देश बदल रहा है।उसके विकास की गाड़ी दादरी,जेएनयू से होते हुए कैराना के ब्रॉडगेज तक पहुँच चुकी है।विपक्ष उसे मँहगाई के मीटरगेज पर उतारना चाहता है।यह केवल सरकार को पता है कि उसने ऐसी कोई पटरी बिछाई ही नहीं।इसलिए वह उसके झाँसे में नहीं आ रही।उसे दुर्घटनाग्रस्त होने का कतई शौक़ नहीं।

मँहगाई को दाल-टमाटर से तौलने वाले नासमझ हैं।जब दाल को पतली करने का हुनर मौजूद है तो इसके लिए शीर्षासन करने की क्या ज़रूरत ? बस एक लोटे पानी में दाल के दो दाने पीसकर ठीक से मिला लें और एक साँस में पी जाएँ।इससे भूख तो भूख,दाल खाने की ‘हुड़क’ भी गायब हो जाएगी।गर्मियों में टमाटर खाने से पथरी की शिकायत हो सकती है,इसलिए इससे तो परहेज ही करें।बस खाली पेट योगा करें,इस जुगत से तन,मन और धन तीनों में जमकर बरकत बरसेगी ।


सरकार लगातार मँहगाई को ढूँढ़ रही है।पर लगता है कि वह सीमा पार कर चुकी है।इसलिए उस पर वह आक्रमण भी नहीं कर सकती।उसकी हिम्मत हो तो लुटियन ज़ोन में दाखिल होकर दिखाए।सरकार उसी दम प्राणायाम करा के उसके प्राण हर लेगी।

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