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नेशनल दुनिया में २८/०७/२०१२ को
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जनसंदेश में २६/०७/२०१२ को ! |
हमारी सरकार बड़ी समझदार है.अब जब मानसून ने मौसम
विभाग की बार-बार बढती तारीखों के बाद भी आने से साफ़ मना कर दिया है तो
सरकार-बहादुर ने भी मान लिया है कि इस साल सूखा ही रहेगा.आम लोग वैसे भी मौसम
विभाग के उलट सोचते हैं.जब वह यह कहता है कि बारिश होगी,समझो पक्का नहीं होगी और
जब वह कहता है कि बारिश का अभी समय नहीं है तो ज़रूर बारिश होती है.ऐसा आम आदमी तो
सोच और मान सकता है पर सरकार नहीं.मौसम-विभाग आखिर उसका अपना ही अंग है.
मानसून के इस रवैये ने
बहुतों को निराश किया है.आम आदमी जहाँ उमस भरी गर्मी से निज़ात पाने की उम्मीद कर
रहा है, वहीँ सरकारी-अमला बारिश के बाद मिलने वाले काम की जुगत में लगा है.बारिश
के बाद बाढ़-राहत कार्यक्रम से पीडितों को भले ही न राहत पहुँचे,पर हमारे अफ़सर ज़रूर
तर हो जायेंगे.वैसे अभी भी वो अपने लिए मौका तलाश रहे हैं कि सरकार बारिश का
इंतज़ार खत्म करके पूरी तरह से देश को सूखा-ग्रस्त घोषित कर दे.ऐसा होने पर भी उनके
लिए धन की बारिश तो हो ही जायेगी.सरकार भी काम करती हुई दिखेगी.अभी न वो सूखे से
निपट पा रही है न बारिश का मोह छोड़ रही है.
अगर बारिश हो जाती तो
लेखक,कवि भी अपने में नयापन ला पाते,जबकि अभी उनके लिखने में भी सूखा पड़ा है.बारिश
के न होने पर सबसे ज़्यादा व्यंग्यकार दुखी हैं.ज़्यादा बारिश के होने से जो
अव्यवस्था फैलती,उनके लिए उसमें मीन-मेख निकालना उतना ही आसान होता.अभी सरकार को
मानसून से निपटने का सही समय भी नहीं मिल पाया है.पहले वह राष्ट्रपति के चुनाव में
व्यस्त थी,फ़िर उसमें दो-नंबर की लड़ाई से उसे इस ओर सोचने का वक्त ही नहीं
मिला.यहाँ तक कि कृषि मंत्री दो नम्बरी बनने के लिए सरकार से अलग होने की बात कर
रहे हैं.हमें तो लगता है कि इस मुद्दे पर मानसून अपने विभागीय मंत्री के साथ
है,तभी उसने वह सरकार से नाराज़ होकर खुद का बरसना मुल्तवी कर रखा है.उसके बदले
मंत्रीजी ही बरस रहे हैं.यह बात अब सरकार को भी समझ आ रही है.
वैसे शुरू से देखा जाय तो
हमारा मौसम विभाग हमारा नहीं मौसम का वफादार रहा है.जैसे-जैसे दिन गुजरते जा रहे
हैं,विभाग भी मानसून के आने की तारीख बढ़ा रहा है.इस तरह मानसून को मौसमी-राहत मिल
रही है कि वह अपने आने की तारीख को अपने हिसाब से तय करे. मुझे तो लगता है कि
हमारे हवाई-मंत्री की बादलों से इस सम्बन्ध में बात भी हो गई है कि जब तक सरकार के
अंदर दो-नंबर का मुद्दा हल नहीं हो जाता है तब तक वे उमड़ते-घुमड़ते रहें पर बरसने
की कतई ज़रूरत नहीं है.अगर ऐसा हुआ तो उन बादलों को मुंम्बई में भी घुसने नहीं
दिया जायेगा.
अब ताज़ा हाल है कि सरकार ने
सूखे को आने की हरी झंडी दे दी है.हो सकता है कि कृषि-मंत्रालय की खाली हुई सीट भी
उसे दे दी जाय.इस तरह पवार और पावर की कमी को आसानी से दूर किया जा सकता है,भले ही
इसके लिए सूखा-राहत का अलग से एक विशेष प्रकोष्ठ बनाकर सूखे और भूखे लोगों का
पुनर्वास कर दिया जाय !
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