'व्यंग्य यात्रा' के अक्टूबर -दिसम्बर २०१२ के अंक में पहली बार
भगवान राम आज कुछ प्रसन्न-मुद्रा में दिखाई दे रहे थे।सीता जी ने उनकी इस प्रसन्नता का कारण पूछा ,'प्रभु ! आज आपकी मुख-मुद्रा अलग सन्देश दे रही है,क्या बात है ?' राम बोले ,'देवि,आज नारद मुनि मिले थे और कह रहे थे कि हम जब से धरती-लोक से आये हैं,काफी बदलाव हो गया है।मुझे अरसे से यह बात याद आ रही थी पर स्वर्ग के काम-काज से फुरसत ही नहीं मिल रही थी।यदि आपकी इच्छा हो तो अपनी कर्मभूमि के दर्शन फिर से कर आयें !'सीता ने बिना देरी किए ही झट-से हाँ कर दी और फ़िर उन दोनों ने मानव-रूप में धरती में प्रवेश किया।
संयोग से वे दोनों जहाँ उतरे ,वह पंचवटी का इलाका था।जिस स्थान पर कभी वे पर्णकुटी में रहे थे,उस जगह अब आलीशान महल था।राम और सीता उस महल से आकृष्ट हुए बिना नहीं रह सके।सहसा उन्हें अत्याधुनिक वेशभूषा में एक स्त्री दिखाई दी।राम और सीता उसको देखते ही रह गए।वे दोनों कुछ बोल पाते कि उस स्त्री ने जोर से आवाज़ दी,'पहचाना मुझे ? मैं सूपनखा हूँ।'राम विस्मित होते हुए बोले,' सूपनखा !तुम यहाँ '? लक्ष्मण ने तो तुम्हारी नाक काट दी थी ,पर तुम तो बिलकुल ठीक-ठाक और सम्पूर्ण हो !'सूपनखा ने उत्तर दिया,'आप किस युग की बात कर रहे हैं ?यह आपका त्रेता नहीं है।इस युग में हमारी नाक कटने का कोई जोखिम नहीं है,अब तो स्लट-वॉक का ज़माना है ।यह नाक-वाक से स्त्री को भयभीत करना दरअसल आप की चाल थी जो अब कामयाब नहीं होगी।'इतना सुनकर तो राम सन्नाटे में आ गए,पर सीता से न रहा गया।उन्होंने कहा,'सूपनखा !तुम मत भूलो कि तुमने केवल कपड़े बदले हैं,आचरण अभी भी तुम्हारा वही है।तुम इस तरह मेरे स्वामी का अपमान नहीं कर सकती हो ।'तब तक राम ने अपने को सँभाल लिया था।उन्होंने कहा,'सीते ! इन्हें कहने दो क्योंकि कभी हमारे द्वारा इनको कष्ट पहुँचा था।’
राम ने शांत होकर सूपनखा से अगला सवाल किया,'अच्छा यह बताओ,तुम यहाँ किसके साथ रह रही हो? मेरे द्वारा विवाह-प्रस्ताव ठुकराने के बाद तुम्हें कोई मिला ?'सूपनखा तमककर बोली,'क्या समझते हो ? यह आपका समय नहीं है।मैं तब से कई युगों तक भटकती रही।अंतत इस कलियुग में आकर मुझे राहत मिली है ।यहाँ विवाह जैसा बंधन ज़रूरी नहीं है।हम दोनों 'लिवइन रिलेशन ' को मान्यता देते हैं।कोई किसी को पूजता नहीं है।हम जीवन भर एक-दूसरे को ढोने को अभिशप्त भी नहीं हैं।अब मैं फेसबुक पर चैटिंग करती हूँ और मेरा पार्टनर किचन में सब्जियाँ पकाता है।हम पूरी तरह आजाद हैं।मैं तो सीता से भी कहूँगी कि वह अपने साथ किये गए दमन को नहीं भूले और हमारे साथ आ जाये'.
सीता ने उसकी किसी बात पर ध्यान नहीं दिया और राम से कहा,'प्रभु ! यहाँ से जल्दी चलो,मेरा दम घुट रहा है।' राम और सीता आगे बढ़ने को तैयार ही थे कि अचानक उन्हें ताड़का नज़र आई।उनके पीछे-पीछे खर-दूषण भी आ गए।उन लोगों ने आते ही सूपनखा से सवालों की बौछार कर दी,'बहन ! ये तपस्वी इतने दिनों बाद यहाँ कैसे ? सूपनखा ने कहा,'ये हमें देखने आये थे कि हमारा सर्वनाश हो गया कि नहीं।मैं तो सीता को लेकर दुखी हूँ कि यह इनके चंगुल से कैसे छूटे ?'अब उत्तर देने की बारी सीता की थी।उन्होंने ज़रा कड़ककर कहा,'सब लोग इस तरह हमें घेरकर क्यों खड़े हो गए हैं ? मैं अपने स्वामी के साथ बहुत खुश हूँ।मुझे त्रेता में भी उनमें कोई बुराई नज़र नहीं आई थी । मैं एक राजा के परिवार में ब्याह कर आई थी,उस समय इनके साथ वनवास जाने का निर्णय मेरा था। मैं कागजी रिश्तों में विश्वास नहीं करती ।ऐसे समय में मेरे पति ने मेरा साथ दिया और मैं जंगल में इनके साथ रही।अगर मुझे इनसे कोई शिकायत होगी भी तो हमारे रिश्तों में इतनी गर्मी बची है कि आपस में बातकर समझा जा सकता है ।और हाँ,ताड़का व खर-दूषण !तुम सब यहाँ कैसे आ गए ?किसने बुलाया तुम्हें ?' उत्तर सूपनखा ने दिया, 'ताड़का को मैंने ईमेल किया था और खर-दूषण को हमारे फेसबुक-स्टेटस से पता चला।’
अब तक चुप रहे राम बोल उठे,'सीते !तुम इनसे बहस न करो.आओ यहाँ से चलते हैं।'खर-दूषण ने तड़ से जवाब दिया,'हाँ ,इसी में भलाई भी है अब आपके पास न तो दैवीय शक्ति है और न ही वानर-सेना।हमने अगर एक भी स्टेटस और लगाया तो हमारे सभी सदस्य सक्रिय हो उठेंगे।'राम ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए वहाँ से चले जाना ही उचित समझा।सूपनखा ,ताड़का और खर-दूषण ने पहली बार राम को हरा दिया था।
राम और सीता अभी कुछ ही दूर पहुँचे थे कि एक कुटिया देखकर रुक गए।वहां एक बुढ़िया चारपाई पर बैठी दाल-चावल में पड़े कंकड़ बीन रही थी।राम को देखते ही पहचान गई और उठकर बोली,'प्रभु ! इतने दिनों बाद आपको पाकर धन्य हो गई। आपने मेरे जूठे बेर खाकर बहुत पहले मुझे कृतार्थ किया था।'राम इस जंगल में अचानक शबरी को पाकर प्रफुल्लित हो गए और गले लगा लिया।सीता भी शबरी से मिलकर बहुत खुश हुईं।शबरी ने कहा,'अभी मैंने खिचड़ी पकाई है,यदि आप बुरा न मानें...' ,राम ने बात बीच में ही काटकर कहा,'हम दोनों खाकर ही जायेंगे।'
खिचड़ी खाकर जैसे ही राम जाने को तैयार हुए,एक बुजुर्ग उनके पैरों पर गिर पड़े।शबरी ने बताया ,'प्रभु ! ये तुलसी हैं।इन्होंने आप पर कथा लिखकर बड़ा कष्ट भोगा है।कई लोग इनकी जान के पीछे पड़े हैं,सो मैंने इन्हें शरण दे रखी है।‘राम ने तुलसी को उठाकर गले से लगाया और कहा,'अब आप नए सिरे से राम-कथा लिखें।पिछली कथा अब इस युग में प्रासंगिक नहीं रह गई है।'तुलसी ने भाव-विह्वल होते हुए उत्तर दिया ,'भगवन ! मैंने जो भी लिखा था,भक्तिभाव से लिखा था।मुझे क्या पता था कि कालांतर में लोग मानस में भी जाति ,धर्म और लिंग का चश्मा लगाकर देखेंगे।अब मैं कोई कथा नहीं लिख सकूँगा।'
इसके बाद राम और सीता ने धरती पर ठहरना उचित नहीं समझा और बिना अतिरिक्त क्षण गँवाए वे दोनों स्वर्गलोक लौट गए !
व्यंग्य यात्रा के अक्टूबर-दिसम्बर २०१२ के अंक में प्रकशित
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