शुक्रवार, 22 मार्च 2013

हाथ,सीबीआई और होली !

 
22/03/2013 को नई दुनिया में

अगर आप हाथ के साथ नहीं हैं तो सीबीआई का हाथ आपके पास पहुँचाने की हमारी जिम्मेदारी है।यह हमारा राष्ट्रीय-कर्म और नैतिक-धर्म है कि हम हर हाल में आपकी सेवा अपने हाथों करें।हमारी सरकार ने शुरुआत से ही यह सुनिश्चित कर रखा है कि किसी भी आपदा से निपटने का वैकल्पिक-तंत्र तैयार रहे,ताकि बदलते समय के साथ हमारी स्थिति न बदले।ऐसी आपदा यदि सरकार के ऊपर आती है तभी हमारा आपदा-प्रबंधन तंत्र काम करता है,न कि आम आदमी के ऊपर आने पर।इतने दिनों के सेवा-काल से हमें यह अनुभव बखूबी हासिल हो गया है कि कब किस पर मुलायम होना है और किस पर कठोर !

कुछ लोगों को ग़लतफ़हमी है कि डीएमके के हाथ हटाने से सरकार का हाथ कमज़ोर हो गया है ।दरअसल ,यदि किसी का हाथ मज़बूत है तो वह हमारा ही है।इसने अतीत में कई उपलब्धियां अर्जित की हैं और इसका प्रभाव सरकार के सहयोगी दलों और आम आदमी पर समभाव से पड़ता है।सहयोगियों को सीबीआई की सेवा की इतनी आदत पड़ चुकी है कि वे इसके अलावा और किसी सेवा से मानने को तैयार ही नहीं होते।रही बात आम आदमी की, तो हमारा हाथ उसकी जेब और गर्दन पर सुविधानुसार शिफ्ट होता रहता है।चुनाव के समय वह बेचारा जाति-धर्म के मायाजाल में पड़कर सब-कुछ भूल जाता है।इसमें सभी दलों का बराबर का हाथ होता है।

अभी जैसे ही डीएमके ने अपने हाथ को सरकाया,सीबीआई ने अपने हाथ से उसकी एक फाइल सरका दी।हम यहाँ स्पष्ट कर देते हैं कि सीबीआई को हम इस बारे में कोई निर्देश नहीं देते।वह हमारे देश की बहुत चौकन्नी सुरक्षा-एजेंसी है।उसे जब भी लगता है कि सरकार की सुरक्षा के साथ कोई खिलवाड़ करने की कोशिश करता है ,वह अपने-आप सक्रिय-मोड में आ जाती है।अब उसके काम में दखल न देने के वचन से बंधे होने के कारण हम भी कुछ कर नहीं पाते।इस बात को सबसे ज्यादा हमारे चिर-सहयोगी माया और मुलायम जानते हैं।वे सरकार के हाथ को माँगे-बिना माँगे,अंदर-बाहर से,जहाँ से भी संभव होता है,पकड़े रहते हैं।

सरकार के गिरने की मनौती मनाने वालों को खुश होने की ज़रूरत नहीं है।सरकार के ममता-रहित हो जाने पर भी आम आदमी को कोई फर्क नहीं पड़ा,सो करुणा-रहित होने पर भी नहीं होगा।मुलायम के कठोर होने पर हमारा हाथ कुछ नहीं करेगा,बस,सीबीआई अपने बंधे हाथ खोल देगी।इस बात को माया से बेहतर कोई नहीं जानता।अकूत संपत्ति की रक्षा करने वाले हाथ का कमज़ोर होना ठीक नहीं है इसलिए इसकी मजबूती की चिंता हमसे ज़्यादा दूसरों को है।सरकार के प्रति कठोर होने वाले इसलिए जल्द ही मुलायम हो जाते हैं।

कुछ लोग यह अफ़वाह फैला रहे हैं कि डीएमके के अध्यक्ष ने अपनी बेटी को जेल भिजवाने का बदला हमसे लिया है,पर यह सरासर गप्प है।हम इसे महज होली की ठिठोली मानकर चलते हैं।हो सकता है ,इसी प्रकार स्टालिन के पास सीबीआई का पहुंचना भी महज़ होली का मजाक सिद्ध हो।अब यह हमारे सभी सहयोगियों पर निर्भर है कि वे होली के मूड में हमारे हाथ से अपने मुँह में कालिख पोतवाना पसंद करते हैं या सीबीआई के द्वारा रंगे-हाथ होली खेलना ?

 

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