01/03/2013 को मिलाप में ! |
लो जी,रेल बजट आ गया और
बड़े कमाल का रहा। सरकार के ऊपर बार-बार यह आरोप लगते रहे हैं कि वह आम जनता के लिए
कुछ नहीं करती पर इतना तो तय है कि उसके मंत्रिमंडल में मंत्री कम जादूगर ज्यादा
हैं। रेल बजट में मंत्री ने ऐसी जादूगरी दिखाई कि किराया भी नहीं बढ़ा और अपनी झोली
भी भरने का इंतज़ाम कर लिया। सीधे-सीधे किराये में बढोत्तरी न करके सर्विस चार्ज और
अन्य तकनीकी मदों के जरिये जनता को लूट लिया गया । यह सब ठीक वैसे ही हुआ,जैसे
सामने की जेब से पैसे न निकालकर पीछे वाली पाकेट को नोंच लिया जाय।
मंत्री जी अपने नाम के
अनुरूप बजट-बयार लेकर आए और सबको बता दिया कि इसे बसंत-बहार समझने की भूल न करें। वे
बजट पेश करने के लिए बकायदा तैयार होकर आए थे। सबसे मजेदार बात तो यह रही कि उन्होंने
ऐसी लूट-पाट करते हुए शेरो-शायरी सुनाने का पुराना नुस्खा भी आजमाया। इसका सीधा
सन्देश यही है कि बजट को जिन्हें भुगतना है ,वे भुगतें मगर इससे उनको तो सत्ता की
महक मिल रही है और सरकार को फुल कांफिडेंस है। उन्होंने अपने छुपे इरादों को इस शेर
के बहाने ज़ाहिर भी कर दिया ;‘न बहारों से बात करनी है,न सितारों से बात करनी है,जब
दरिया को पार करना है तो किनारों से बात करनी है’। अब उनके कहे का सामान्य अर्थ
यही है कि वे कोई बहार लुटाने नहीं आए थे,बल्कि दरिया यानी चुनाव को पार करने के
लिए किनारे यानी आम आदमी को और किनारे लगाना है।
विपक्ष इस रेल बजट से
कुछ नहीं निकाल पा रहा है। वह इसे रेल-बजट के बजाय ‘रायबरेली-बजट’ कहकर केवल हल्की
तुकबंदी और हास्य पैदा करने की कोशिश में लगा है। मंत्री जी ने बजट से एक महीने
पहले ही जो निकालना था,निकाल लिया। अब इससे जो भी निकल के आएगा वह बोनस में होगा। रेलगाड़ियों
की बढ़ी हुई संख्या यात्री कम मंहगाई अधिक ढोएगी। आगे चुनाव आने वाले हैं और इस
सरकार का हाथ आम आदमी के साथ है इसलिए वह कभी भी उसकी जेब में प्रवेश कर सकता है। मंत्री
जी यहाँ पूरी तरह व्यावहारिक हैं।
रेल-बजट को आम आदमी के
अलावा युवाओं के लिए भी क्रान्तिकारी बताया जा रहा है। अब यात्रा करते समय वे
वाई-फाई के माध्यम से निःशुल्क चैटिंग और स्टेट्स अपडेट करते रहेंगे। इससे कोच के
अंदर का माहौल भी अति सुरक्षित रहेगा। उनके इस तरह मोबाइल या लैपटॉप में व्यस्त
रहने से महिलाओं से छेड़खानी की आशंका भी कम हों जायेगी और खिड़की के बाहर की
तांक-झाँक भी रुक जायेगी। अगले चुनावों में सोशल मीडिया का उपयोग कर रही यह युवा
पीढ़ी बड़े काम आ सकती है।
इस बजट की बाजीगरी के
बाद आम बजट भी आ रहा है। उसको पेश करने वाले मंत्री जी खासे अनुभवी हैं और सरकार निश्चिन्त है कि रेल के बाद
इसमें भी मंत्री जी कोई खेल दिखा देंगे। मतलब साफ़ है कि अपना हिस्सा पूरा वसूल हो
जाए और वसूली की उँगली भी उसकी ओर न उठे। जिस तरह किराया न बढ़ने के बाद भी सफ़र
मंहगा हो गया है,वैसे ही अगर अगले चुनावों में वोट बढ़ने के बावजूद सीटें न बढ़ें तो
कैसा रहेगा ? सरकार का इस पर अभी जवाब नहीं आया है।
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