गुरुवार, 17 अक्तूबर 2013

लालटेन से बढ़ती लौ !

जनसंदेश में १७/१०/२०१३ को !
 

जो लोग यह समझ रहे थे कि नेताजी के जेल जाने के बाद लालटेन भकभकाकर बुझ जायेगी,वे गलत साबित हुए हैं। अब ऐसा इंतज़ाम हो गया है कि लालटेन कभी बुझेगी ही नहीं। पहले उसको बाहर से ही जलाया जाता था पर अब अंदर से भी रोशनी दी जा सकेगी। नेताजी जब तक बाहर थे,अकेले ही लालटेन में तेल डालते थे,माचिस लगाते थे;अब वो अंदर हैं तो तेल-कुप्पी लिए ‘भरे’ बैठे हैं,वहीँ से आग लगाएंगे। पत्नी,बेटा,बेटी आदि लालटेन की सुरक्षा बाहर से करेंगे और नेता जी अंदर से। हवा के थपेड़ों से लालटेन बुझने का डर भी नहीं है क्योंकि चारा-सानी खाए नेताजी ने उसको कसके घेर रखा है।

नेताजी की लालटेन कोई सामान्य नहीं है। उसमें पड़ने वाला तेल उच्च कोटि का है इसीलिए उसके बुझने की आशंका भी न्यूनतम है। एक लालटेन हमें भी मिली थी स्कूल में,जब हम दसवीं में फर्स्ट क्लास पास हुए थे। पर उसको जलाने के लाले पड़ते थे। लालटेन में पड़ने वाला तेल कई बार खत्म हो जाता था तो उसे खूँटी में यूँ ही टांग दिया करते थे। वह भले ही जलकर रोशनी न देती थी,पर उसे देखकर ख़ूब पढ़ने की प्रेरणा मिलती थी। नेताजी वाली लालटेन पढ़ने नहीं आगे बढ़ने के लिए है। इसमें ईंधन की कमी का भी कोई डर नहीं है। उसे समुचित मात्रा में पेट में ही स्टोर कर लिया गया है। इसीलिए यह जलते-जलते न भकभकाती है और न ही शीशे को काला करती है।

नेताजी भले अंदर चले गए हों,कारागार के अंधकार में हों,पर उन्होंने बाहर बैठी जनता के लिए रोशनी का भरपूर इंतजाम कर दिया है। उनका कुनबा लालटेन को न छोड़ने के लिए प्रतिबद्ध है। यही वजह है कि जनसेवा के खातिर ही नेताजी ने अपने कुनबे को पहले से ही ख़ूब विस्तार दे रखा है। कभी कोई अंदर-बाहर हो जाये और जनता उनकी सेवाओं से महरूम न हो जाये ,इसलिए उनके पास विकल्पों की लंबी फेहरिस्त है। लालटेन को भी आत्म-विश्वास है कि वह कभी अनाथ नहीं होगी,उसे कोई न कोई हाथ ज़रूर उठाये रहेगा।

लालटेन खुश है कि उसकी रोशनी सलामत रहेगी। गंगा-जमना में पानी बचे या न बचे,सूरज और चाँद रहें या न रहें,नेताजी की लालटेन उनके कुनबे को रोशन करती रहेगी। इसकी रोशनी कोई अध्यादेश भी नहीं है कि जिसे कोई फाड़ सके। लालटेन की सलामती से गाय-भैंसों को भी फख्र है कि आखिर उनके चारे से ईंधन ही तो बन रहा है,चाहे वह उनके द्वारा खाकर बने या नेताजी द्वारा। चारे का इससे उत्तम प्रबंध और क्या हो सकता है ?चारे और गोबर को इस मुकाम तक पहुँचाने वाले नेताजी को भला जनता भी कैसे बिसरा देगी ? लगता है इसीलिए आत्म-विश्वास से भरी लालटेन की लौ और तेज हो गई है।

 

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कारागृह सौभाग्य लायेगा।

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