गुरुवार, 27 नवंबर 2014

समाजवाद बग्घी पर उतर आया है!

पूँजीवाद से टक्कर लेने के लिए समाजवाद आखिर सड़क पर आ ही गया।पिछले कुछ समय से पूँजीवाद लगातार हवाई हमले करके समाजवाद को सीधी चुनौती दे रहा था,सो उसने भी बग्घी पर उतरने की ठान ली।उत्तम प्रदेश में उत्तम साज-सज्जा के साथ समाजवाद ने ऐतिहासिक बग्घी पर सवार होकर अपनी प्रजा को कृतकृत्य कर दिया।नेता जी ने नवाब साहब के साथ मिलकर समाजवाद को प्रजा के हवाले कर दिया।अब यह प्रजा पर निर्भर है कि वह पिटे हुए मोहरे को लेकर अपना सिर पीटे या नेताजी का प्रसाद समझकर उसे कंठस्थ कर ले।उल्लेखनीय है कि पचहत्तर पार की संन्यास-गमन की अवस्था से भी नेता जी विचलित नहीं हुए।उन्होंने जनहित को देखते हुए स्वयं के बजाय समाजवाद को ही संन्यास पर भेज दिया।अब भी किसी को नेता जी की समाजवाद के प्रति गहरी आस्था पर शंका हो तो समाजवादी-केक को चट कर चुके नवाबों पर एक नज़र डाल ले,बेचारे कितने दुबले हो गए हैं !

समाजवाद के यूँ खुल्लमखुल्ला सड़क पर आने से गाँधीवाद को भी चैन मिला है।उसे लग रहा था कि लोकतंत्र की गठरी उसे अकेले ही ढोनी पड़ेगी पर अब उसे मज़बूत साथी मिल गया है।बदलते दौर में गाँधीवाद पूँजीवाद के साथ कदमताल नहीं मिला पा रहा था।अच्छा हुआ कि समय रहते समाजवाद ने अपना नैनो संस्करण ‘परिवारवाद’ लाकर नवीनीकरण कर लिया है।अब अपना परिवार ही समाज है और अपने नेता जी ही सबके नेता।बीच में कुछ समय के लिए पूँजीवाद से लोहा लेने के लिए लोहियावाद ने अपने हाथ-पाँव मारे थे,पर ‘परिवारवाद’ के लोकप्रिय संस्करण के आगे जल्द ही वह समाजवादी अखाड़े में चित्त हो गया।ऐसे में समाजवाद को धूमधाम से बग्घी पर बिठाकर उसका एहतराम किया जाना लाजमी था।

उत्तम प्रदेश में एक ही तम्बू के नीचे कम्बल और कफ़न वितरित होने लगे हैं,इससे बढ़िया समाजवाद की स्थापना और क्या हो सकती है ? इससे नेता जी खुश हैं कि उनका जलवा अभी तक कायम है;नवाब खुश हैं कि बिना ताज के ही वे वास्तविक नवाब हैं और प्रजा खुश है कि उसे मरने का उचित मुआवजा मिल रहा है।सच्चा समाजवाद यही है कि सब अपना-अपना हिस्सा लेकर खुश रहें और गाँधीवाद की तरह बात-बात पर चिल्ल-पों न मचाएं।निरा समाजवाद से न तो जेब भरती है और न ही पेट,इसलिए इसका अपडेट होना भी आवश्यक है.पूँजीवाद के बजते ढोल के बीच समाजवादी-बग्घी की सवारी निकल रही है.इससे गाँधीवाद का सपना भी पूरा होगा और समाज से विलुप्त हो रहे परिवारवाद को भी संजीवनी मिलती रहेगी ।

कोई टिप्पणी नहीं:

साहित्य-महोत्सव और नया वाला विमर्श

पिछले दिनों शहर में हो रहे एक ‘ साहित्य - महोत्सव ’ के पास से गुजरना हुआ।इस दौरान एक बड़े - से पोस्टर पर मेरी नज़र ठिठक ...