समर्थन प्रसाद बहुत गुस्से में हैं।उन्होंने आख़िरी से पहली वाली धमकी दी है कि असली राष्ट्रवादी को छोड़कर अगर वे नये-नवेले राष्ट्रवादी की शरण में गए तो वे विपक्ष की कुर्सी पकड़ लेंगे।वे सुबह समर्थन देते हैं,दोपहर में वापस लेते हैं और शाम को पुनर्विचार करते हैं।एक बंदे को वे जहाज में बिठाकर राजधानी रवाना करते हैं पर उसको एयरपोर्ट पर ही टहलाते रहते हैं।इस तरह एक उत्साही बंदे को देश-सेवा करने से रोक दिया जाता है।समर्थन प्रसाद को यह नहीं पता कि उन्होंने देश के साथ कित्ता बड़ा गुनाह किया है।दूसरे सज्जन थोड़ा समझदार निकले।वह सुबह सत्ता-पार्टी में ऑनलाइन दाख़िला लेते हैं और दोपहर बाद शपथ-ग्रहण कर लेते हैं।काश,शपथ-ग्रहण भी ऑनलाइन होता तो देश को एक सेवक से वंचित न होना पड़ता।
उनका समर्थन खूँटी पर टंगा हुआ तौलिया है।यह उन पर निर्भर है कि तौलिये को कब और कैसे उपयोग में लाना है।जिसको अपना सम्मान ढांपना हो,वह इनके तौलिये को ओढ़ ले।ऐसे तौलिये के अपने साइड इफेक्ट हैं पर ओढ़ने वालों को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता।इधर समर्थन प्रसाद तब तक चुप नहीं बैठने वाले जब तक उनको समुचित प्रसाद नहीं मिल जाता।ऐसे ही समर्थन लेने-देने की बैठक में वो मिल गए तो हमने पूछ ही लिया-फाइनली आपका क्या निर्णय है ?
‘देखिए,राजनीति में फ़ाइनली कुछ नहीं होता।हम इसे बिलकुल सिनेमाई तरीके से डील करते हैं।जैसा सीन होता है,वैसा मसाला डाल देते हैं।स्टोरी में बदलाव अंतिम समय तक के लिए सुरक्षित रखा जाता है,इससे गज़ब सस्पेंस क्रिएट होता है।फिल्म में कितने कट करने हैं,कहाँ पर आइटम-सॉंग डालना है,यह विकट विमर्श का विषय है।एक्टर को कितने टेक-रीटेक करने है,यह हमारा विशेषाधिकार है।अगर हमारी शर्तों पर शूटिंग न हुई तो हम फिल्म ही रिलीज़ नहीं होने देंगे।’ समर्थन प्रसाद कहते-कहते उखड़ लिए।
‘यानी अब आप विपक्ष में ही बैठेंगे ? यह जनता के साथ अन्याय नहीं होगा ?’हमने आख़िरी तीर मारा।वे अब फफक पड़े-‘जनता ने कौन-सा हमारे साथ न्याय किया है ? हमने उसके लिए इतनी पिचें खोदीं,राज्य से बाहरी लोगों की सफ़ाई की,पर जानबूझकर सफ़ाई-अभियान का अग्रदूत हमें ही बना दिया गया। अब अजीब मुसीबत है।वो हमीं को साफ़ कर रहे हैं और हमीं से इसका अनुमोदन चाहते हैं।’
तभी खबर आई कि समर्थन प्रसाद का तौलिया खूँटी से कोई उड़ा ले गया है।वे अब उसी को खोजने में लगे हैं।
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