देश में नई सरकार बने हुए एक साल हो
रहा है।इस बीच कई ऐसी बातें हुई हैं,जो पहली बार ही हुई हैं।सब
देखने-सुनने के बाद तो यही लगता है कि सरकार केवल ‘पहली बार’ करने के लिए
ही बनी है।हाल ही में ‘काले चश्मे’ को लेकर पहली बार कलेक्टर
को फटकार लगी है।उसकी गुस्ताखी यह थी कि एक साल में आए ‘अच्छे दिनों’ को वह काले
चश्मे की आड़ से देखना चाहता था।यह बात सरकारी चश्मे को नागवार गुजरी।उसने तुरंत अपने
कार्यालय में काले चश्मे को तलब किया।हमारे खुरपेंची पत्रकार ने वह संवाद दूंढ निकाला
है जो अविकल रूप से यहाँ प्रस्तुत है :
सरकारी चश्मा :तुमने काला
चश्मा और रंगीन शर्ट क्यों पहन रखी थी ? क्या पता नहीं कि इससे
सामने वाला ‘रंगहीन’ हो जाता है और साफ़ चीज़ें धुंधली दिखती हैं।ऐसा परिधान डिप्रेशन
को भी बढ़ावा देता है।इसने पूरी आचार-संहिता को अचार के डब्बे
में डालने का काम किया है।तुम ने ऐसा भीषण कृत्य आखिर किया क्यों ?
काला चश्मा:हुज़ूर,यह तो हमारा
मौलिक रंग है।हमारा रंग भले काला है,पर इससे सब कुछ साफ़-साफ़ दिखता है
है।इसकी सबसे बड़ी क्वालिटी है कि यह एंटी-चौंध है,जिससे हमारी
आँखें चुंधियाती नहीं हैं।वैसे भी चकाचौंध तो जनता को दिखाने के लिए होती है,हम तो आपके
ही अंग हैं।
सरकारी चश्मा :तुम हमारे अंग
हो तो हमारी नज़र से देखो ना ! खुद को दूसरों की नज़र से देखना हमें कतई पसंद नहीं है।हम काली
चीजों को इसलिए भी पब्लिकली पसंद नहीं करते क्योंकि जनता काले रंग को लेकर बड़ी संवेदनशील
है।उसे तुरत ही काले-धन व काली करतूतों की याद सताने लगती है।यह प्रोटोकॉल का सरासर
उल्लंघन है।
काला चश्मा : पर सरकार,इससे प्रोटोकॉल
का किस तरह उल्लंघन होता है,समझ नहीं पा रहा हूँ।
सरकारी चश्मा : हमने यह चश्मा
ही नहीं,बाल भी धूप में सफ़ेद नहीं किए हैं।जिस समय पब्लिक को सब कुछ निखरा-निखरा,साफ़-सुथरा दिखना
चाहिए,उस वक़्त तुम सरेआम उसे काले और सफ़ेद में भेद करना सिखाते हो।तुम ‘काला-काला’ दिखाकर उसका
ध्यान डायवर्ट करना चाहते हो ?
काला चश्मा : साहेब,हमें काले-सफ़ेद के बारे
में इतना नहीं पता था।हम केवल आपके लेवल तक आकर आपसे सामंजस्य बिठाने की कोशिश भर कर
रहे थे।इस नाते हम तो आप का ही विस्तार कर रहे थे,हुज़ूर !
सरकारी चश्मा: देखिए,हमारे विस्तार
की चिन्ता मत करिये।इसके लिए हमारी ‘सेल्फी-डिप्लोमेसी’ बखूबी काम कर
रही है।हमने आते ही जनता को रंगीन चश्मे बाँट दिए थे।फ्रेम जनता का है और लेंस हमारा।अब
जो हम दिखायेंगे,जनता वही देखेगी।जो हम सुनायेंगे,जनता वही सुनेगी।यह
हमारी सरकार में पहली बार हुआ है कि जनता नियमित रूप से देख-सुन रही है।उसे
किसी आपदा से कोई परेशानी न हो,इसके लिए ‘मन की बात’ का भी ख़ूब स्टॉक भर लिया गया है।पब्लिक के नैन-सुख के लिए
हम बार-बार विदेश-यात्रा पर जा रहे हैं और सेल्फी पोस्ट कर रहे हैं।
काला चश्मा:हाँ,हुज़ूर ! सुना है कि
चाइना में ली गई सेल्फी को जुकरबर्ग साहब ने भी लाइक किया था ! क्या यह ‘मेक इन इण्डिया’ का ही कोई उपक्रम
है ?
सरकारी चश्मा:नहीं,यह ‘ग्लोबल फ्रेंडशिप’ का बड़ा प्रोजेक्ट
है।इससे सारी दुनिया इसी पर चर्चारत हो जाती है और हम अपना टूर आसानी से पूरा कर लेते
हैं।पहली बार किसी सरकार को विदेश में घोड़ा गिफ़्ट में मिला है,अब अगली सेल्फी
उसी पर चढ़कर पोस्ट की जायेगी।अब तुम सामने से हटो क्योंकि हमें अगले टूर को ओके करना
है।
2 टिप्पणियां:
चश्मा बदल कर देखिए न, दुनियां फ़िर से ठीक ठाक दिखेगी ;)
आज की ब्लॉग बुलेटिन अप्रवासी की नज़र से मोदी365 :- ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
:) :) :)
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