मंगलवार, 13 अगस्त 2013

अपनी-अपनी गंध !



१३ /०८/२०१३ को नई दुनिया में !
 

चुनाव सिर पर सवार थे और नेता जी गाड़ी पर। वे अपने क्षेत्र का ताबड़तोड़ दौरा करने में जुटे थे ।दिन शुरू होते ही उनकी गाड़ी सरपट भागने लगी ।गाँव में गाड़ी के इर्द-गिर्द वोटर कम बच्चे ज़्यादा दिखे तो नेता जी ने विश्वस्त कारिंदे से इसका कारण पूछा उसने बताया कि अधिकतर बड़े-बूढ़े ‘मनरेगा’ में लगे हैं पर वोट देने ज़रूर आएँगे।नेता जी की हार्दिक इच्छा थी कि वे अपने मतदाताओं से जी भरकर मिल लें ,पता नहीं दुबारा कब भेंट हो ? कारिंदे ने ज्ञानवृद्धि की ,’आपके पिछले जन्मदिन पर सरपंच जी ने जो थैली चढ़ाई थी,वह ‘मनरेगा’ द्वारा ही प्रायोजित थी।इस वक्त सरपंच जी अपने खेत में धान की बेढ़ लगवाकर उसी की क्षतिपूर्ति कर रहे हैं।‘ नेता जी समझदार थे,उन्होंने गाड़ी को दूसरी तरफ मोड़ने के लिए कह दिया।

गाड़ी अब कच्चे रस्ते की ओर चल पड़ी।थोड़ी दूर ही चली होगी कि ड्राईवर ने फरमान सुना दिया कि अब यह आगे नहीं जा सकती।नेता जी ने जैसे ही वातानुकूलित गाड़ी का दरवाजा खोलकर अपने चरण धरती पर धरे,नथुनों ने साँस लेने से इंकार कर दिया।यह क्या ?सामने कूड़े का बजबजाता हुआ ढेर था,जिसमें  कुत्ते खाने का सामान तलाश रहे थे।नेता जी ने कारिंदे की ओर निहारा, ’यह कहाँ ले आए हमें ? अगर दो मिनट भी यहाँ रुके तो बेहोशी आ जायेगी। चलो यहाँ से,दम घुट रहा है।’

उसने नेताजी के कान में मंतर फूँका,’यह यहाँ की मशहूर दलित बस्ती है।पिछली बार आप यहीं से मिले वोटों से जीते थे।अगर यहाँ न गए तो चुनाव फँस जायेगा।मेरी माने तो थोड़ी देर के लिए यह गंध सहन कर लें,पूरे पाँच साल तक सुवासित रहेंगे ।’

‘मगर पिछली बार के वादे के बारे में क्या कहूँगा ? हमें याद आ रहा है कि तब हमने यहाँ एक स्कूल की बात की थी।’नेताजी तनिक सकुचाते हुए बोले।

‘आप उसे भूल जाइए।ये लोग उसे कब का भूल गए ।इस कूड़े के ढेर को हटाने का वादा अबकी बार कर लें,यह बिलकुल सामयिक है।’ कारिंदे ने चमचत्व की प्रखर प्रतिभा का परिचय देते हुए समाधान सुझाया।नेताजी को उसकी बात में दम दिखा और वे उसके साथ आगे बढ़ गए।

दलित-बस्ती में अचानक शोर मच गया।सभी मतदाता अपने दड़बेनुमा आश्रय-स्थल से निकल आए।सबके इकठ्ठा हो जाने पर कारिंदे ने ऐलान किया कि नेताजी उनके लिए खुशखबरी लाये हैं।इससे पहले कि कोई कुछ पूछता,नेताजी ने माइक अपने हाथ में लिया और शुरू हो गए,’हमारे पास इस कूड़ेदान को हटाने की बड़ी योजना है।हम यहाँ एक बैंक खोलने जा रहे हैं जिसमें ’मनरेगा’ सहित अन्य योजनाओं का पैसा हमारे हाथ से सीधे अब आपके खाते में आएगा।‘ तभी एक बुजुर्ग बोल पड़ा ,’मगर सरकार ! हमें ताज़ी हवा और पीने का साफ़ पानी मिल जाता तो...!’ बात को बीच में ही काटकर नेताजी ने कहा,’पहले खातों में पैसा आने दें,हमारी सरकार फ़िर से बनने दें, हवा और पानी भी मिल जायेगा ।‘ बुजुर्ग ने इतना सुनते ही ‘नेताजी जिंदाबाद’ का नारा लगाया और सारा माहौल नेतामय हो गया।कूड़ाघर वाली सड़ांध कहीं गुम-सी हो गई थी। यह एक नई प्रकार की गंध थी,जिसे महसूसकर नेताजी बिना फूले ही कुप्पा हुए जा रहे थे।

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धुंध भरे दिन

इस बार ठंड ठीक से शुरू भी नहीं हुई थी कि राजधानी ने काला कंबल ओढ़ लिया।वह पहले कूड़े के पहाड़ों के लिए जानी जाती थी...