जनवाणी में १४/०८/२०१३ को ! |
१४/०८/२०१३ को जनसंदेश में. |
प्याज का भाव बढ़ाने में सरकार विशेष ध्यान रखती है। खासकर
चुनावों के समय उसे पता होता है कि जनता पिछले पाँच साल से रो रही है और उसके पास
और कुछ हो न हो,आँसुओं का असीमित भंडारण होता है। यही जनता अगर चुनावों के समय
रोती रहेगी तो फिर सरकार को रोना आ जायेगा। सरकार के अनुसार जनता की आँखों में
आँसू लाने का जिम्मेदार यह प्याज है,इसलिए ऐसे मौके पर इसकी कीमत इतनी बढ़ जाती है
कि कोई रो भी न सके। प्याज के अलावा सरकार की इस योजना का किसी को नहीं पता रहता
है।
आखिर प्याज पर ही मँहगाई क्यों मेहरबान रहती है,इसका
भी सीधा-सादा हिसाब है। दूसरी सब्जियाँ भले ही सरकार को बिना माँगे अपना समर्थन देती
हों,पर जब बारिश जैसी आपदा आती है,उस वक्त केवल प्याज ही अपना छिलका उतारकर
सुरक्षित रखता है और मँहगाई से रोती जनता को अपना कंधा देता है। प्याज ने कई बार
अपनी उपयोगिता सिद्ध की है। इसकी उछल-कूद से सरकार तक बदल जाती है। इसलिए टमाटर का
रोना सरकार के लिए सिरदर्द नहीं है। जनता द्वारा नेताओं,मंत्रियों पर वार करने के
लिए इससे नरम हथियार अभी तक मिल नहीं पाया है। सोचिये,अगर चुनावी-मौसम में प्याज
सस्ता हो जाए तो कितनों के सर फूटेंगे ?
प्याज से टमाटर का कोई जोड़ नहीं है। प्याज के मँहगे
होने पर सीधी-सादी जनता इसे खाने से ही परहेज शुरू कर देती है। नवरात्र के दिनों
में वैसे भी प्याज नहीं खाया जाता,सो बाकी दिनों को भी देवी के नाम पर कुर्बान
करने में क्या हर्ज है ?प्याज न खाने के फायदे और भी हैं। इससे मुँह की दुर्गन्ध
से मुक्ति मिलती है और जेब के हल्के होने की आशंका भी नहीं रहती। इसलिए प्याज अगर
मँहगा होता है तो सरकार को जनता के आँसुओं से राहत मिलती है और जनता की कमाई सलामत
रहती है। इसलिए प्याज के कीमती होने पर जनता के लिए जश्न का मौका है। सरकार भी इस
बहाने अपने ठेलों से प्याज बेचती नज़र आएगी ताकि सबको यह लगे कि सरकार हाथ पर हाथ
धरे नहीं बैठी है,वह काम भी करती है।
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