सफाई अभियान अपने चरम पर पहुँच चुका है।पहले चरण में सरकार ने अपने हाथ में डिज़ाइनर झाड़ू पकड़ कर सड़कों की सफाई की थी,वहीँ अब दूसरे चरण में वह विपक्षी नेताओं के हाथ में झाड़ू पकड़ाकर दलों की सफाई करने में जुट गई है।सड़क का कूड़ा सफाई के दिन टेलीविज़न कैमरों और अखबार के पन्नों पर चमका और अगले दिन से फिर वहीँ स्थाई रूप से जम गया।कूड़ा इसीलिए कूड़ा है क्योंकि वह विकास में यकीन नहीं करता,आगे नहीं बढ़ता पर सरकार तो गतिमान है और विकास के प्रति समर्पित भी।सो अगले दिन उसने झाड़ू का मुँह सड़कों की ओर से दलों की ओर मोड़ दिया।
विपक्ष के जिन नेताओं के हाथ में झाड़ू थमाई गई है,वे अब सफाई के दूत बन गए हैं।उन्हें अपने ही दल के साथ-साथ स्वयं के भी साफ़ हो जाने का अंदेशा था,इसलिए समय रहते उन्होंने सरकार की झाड़ू पकड़ ली ।जिनके हाथ में आज झाड़ू है,उन्हें पूरी उम्मीद है कि कल यही सरकार उन्हें कुर्सी भी पकड़ा देगी।झाड़ू से कुर्सी तक का रास्ता वैसे भी विशुद्ध गाँधीवादी है और इस पर कोई प्रगतिशील उँगली भी नहीं उठा सकता।इससे सरकार ने उन्हें शर्मसार होने से भी बचा लिया है।वैसे भी अब नाम के बचे विपक्ष में वे उसमें बचे भी रहते तो क्या कर लेते ?
सरकार ने गाँधी के सफाई-मन्त्र को बखूबी समझा है,यह आने वाले दिनों में और साफ़ हो जायेगा।उसने एक तीर से कई निशाने साधे हैं।जनता के मन में यह बात साफ़ हो गई है कि सरकार सफाई-पसंद है और विपक्ष बेवजह इसे अपनी सफाई समझ रहा है।सरकार को ऐसी ही सादगी पसंद है जिसमें उसके सद्प्रयासों से कूड़े को रि-साइकिल किया जा रहा है ।इससे सामाजिक जीवन में कूड़े की कमी तो होगी ही,सरकार के टिके रहने को और आधार मिल जायेगा।इस नाते झाड़ू जादू की छड़ी जैसा काम कर रही है।देखते ही देखते वह कूड़े-कचरे को उपयोगी बना रही है।विपक्ष घबराया हुआ है कि पता नहीं उसका कौन-सा नेता कब झाड़ू पकड़ ले ?
चुनावों में जनता की झाड़ू से साफ़ हो चुके लोग अब सरकार की झाड़ू से मार खा रहे हैं।चुके हुए और कुर्सी से चूके नेताओं के लिए यह स्वर्णिम अवसर की तरह है।वे आज सफाई के नवरत्न बन रहे हैं तो कल सत्ता के रत्न भी बनेंगे।इस लिहाज़ से सरकार का सफाई-अभियान अपने लक्ष्य को पूरा करने में कामयाब होता दिख रहा है।किसी को सफाई के उद्देश्यों पर संदेह हो तो होता रहे।सड़कें जस की तस कचरे से भरी हों तो हों,कहीं तो सफ़ाई हो रही है !
विपक्ष के जिन नेताओं के हाथ में झाड़ू थमाई गई है,वे अब सफाई के दूत बन गए हैं।उन्हें अपने ही दल के साथ-साथ स्वयं के भी साफ़ हो जाने का अंदेशा था,इसलिए समय रहते उन्होंने सरकार की झाड़ू पकड़ ली ।जिनके हाथ में आज झाड़ू है,उन्हें पूरी उम्मीद है कि कल यही सरकार उन्हें कुर्सी भी पकड़ा देगी।झाड़ू से कुर्सी तक का रास्ता वैसे भी विशुद्ध गाँधीवादी है और इस पर कोई प्रगतिशील उँगली भी नहीं उठा सकता।इससे सरकार ने उन्हें शर्मसार होने से भी बचा लिया है।वैसे भी अब नाम के बचे विपक्ष में वे उसमें बचे भी रहते तो क्या कर लेते ?
सरकार ने गाँधी के सफाई-मन्त्र को बखूबी समझा है,यह आने वाले दिनों में और साफ़ हो जायेगा।उसने एक तीर से कई निशाने साधे हैं।जनता के मन में यह बात साफ़ हो गई है कि सरकार सफाई-पसंद है और विपक्ष बेवजह इसे अपनी सफाई समझ रहा है।सरकार को ऐसी ही सादगी पसंद है जिसमें उसके सद्प्रयासों से कूड़े को रि-साइकिल किया जा रहा है ।इससे सामाजिक जीवन में कूड़े की कमी तो होगी ही,सरकार के टिके रहने को और आधार मिल जायेगा।इस नाते झाड़ू जादू की छड़ी जैसा काम कर रही है।देखते ही देखते वह कूड़े-कचरे को उपयोगी बना रही है।विपक्ष घबराया हुआ है कि पता नहीं उसका कौन-सा नेता कब झाड़ू पकड़ ले ?
चुनावों में जनता की झाड़ू से साफ़ हो चुके लोग अब सरकार की झाड़ू से मार खा रहे हैं।चुके हुए और कुर्सी से चूके नेताओं के लिए यह स्वर्णिम अवसर की तरह है।वे आज सफाई के नवरत्न बन रहे हैं तो कल सत्ता के रत्न भी बनेंगे।इस लिहाज़ से सरकार का सफाई-अभियान अपने लक्ष्य को पूरा करने में कामयाब होता दिख रहा है।किसी को सफाई के उद्देश्यों पर संदेह हो तो होता रहे।सड़कें जस की तस कचरे से भरी हों तो हों,कहीं तो सफ़ाई हो रही है !
1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - सोमवार- 20/10/2014 को
हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 37 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,
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