गुरुवार, 23 अक्तूबर 2014

उल्लू-पूजन का संकल्प !

दीवाली है और मुझे उल्लुओं की बहुत याद आ रही है।सुनते हैं कि इस समय लोग लक्ष्मी जी को खूब याद करते हैं।उनका सबसे बड़ा भगत वही माना जाता है जो दीवाली पर बड़ी खरीदारी करता है।इससे लक्ष्मी बहुत प्रसन्न होती हैं।दो दिन पहले धनतेरस पर भी लोग बाज़ारों में टूट पड़े थे।उस दिन बर्तन लेना शुभ माना गया है पर जो लोग सोना लेते हैं,उन पर पूरे बरस धन बरसता है।इस तरह लक्ष्मी का असली पूजन वही कर पाता है जिस पर उनकी अकूत कृपा हो।

लक्ष्मी जी कभी भी मेरे काबू में नहीं आईं।जिस काम में हाथ डालता हूँ,नुकसान ही उठाता हूँ।श्रीमती जी के कहने पर कई ज्योतिषियों को भी अपना हाथ दिखाया पर सबकी मिली-जुली राय यही रही कि पैसा टिकने का संयोग मेरी हथेली में नहीं है।इसका प्रत्यक्ष उदाहरण मुझे  देखने को तब मिला,जब मेरी जेब में बचा दस रूपये का आखिरी नोट तोते के द्वारा भविष्य बताने वाले सर्वज्ञ ने धरा लिया।इसलिए लक्ष्मी जी को अपने प्रतिकूल पाकर मैं उनकी सवारी उल्लू को साधने में जुट गया हूँ।सोचता हूँ कि यदि मुझ पर एक बार लक्ष्मी जी के वाहन से किरपा आनी शुरू हो गई तो देर-सबेर लक्ष्मी जी भी बड़े अफसर की तरह मुझ पर निहाल हो जाएँगी।मेरे लिए उल्लू जी का पूजन कहीं अधिक सुगम होगा क्योंकि अभी इस सेक्टर में कम्पटीशन ज़्यादा नहीं है।
जिस समय मैं उल्लू-पूजन का मंसूबा बना रहा हूँ,ठीक तभी टीवी पर विज्ञापन प्रकट होता है,’नो उल्लू बनाविंग’।ऐसे में वह विज्ञापन मेरा मन फिर से भरमाने लगता है।उल्लुओं के खिलाफ़ यह कैसी साज़िश हो रही है और कौन कर रहा है ? ले-देकर उल्लू बनने का एक संयोग बनता दिख रहा था,वह भी अधर में लटकता दीखता है,वैसे ही जैसे उल्लू लटका रहता है।कहते हैं कि उल्लू को दिन में नहीं रात में दिखाई देता है।शायद इसीलिए रात की कालिमा के बीच अधिकतर घरों में लक्ष्मी-प्रवेश होता है।कुछ नादान इस कथा पर पूर्ण आस्था के साथ भरोसा करते हैं और दीवाली की रात अपने घरों के दरवाजे बंद नहीं करते।ऐसे में खुले दरवाज़े पाकर लक्ष्मी जी के बजाय लक्ष्मी-सेवक घर की सफाई कर जाते हैं पर लक्ष्मी जी को पाने के लिए इतना जोखिम तो बनता है।
दुनिया भले ही लक्ष्मी-पूजन में व्यस्त हो पर मुझ जैसे की पहुँच सीधे लक्ष्मी जी तक नहीं है।इसलिए अपन उल्लू-पूजन की विधि ढूँढने में लगे हुए हैं।मुझे पूरा विश्वास है कि यदि पूरे विधि-विधान से उल्लू-पूजन किया जाय तो बड़ी संख्या में घूम रहे उल्लुओं को भी इस दीवाली में उनका असली भगत मिल जाय।

कोई टिप्पणी नहीं:

साहित्य-महोत्सव और नया वाला विमर्श

पिछले दिनों शहर में हो रहे एक ‘ साहित्य - महोत्सव ’ के पास से गुजरना हुआ।इस दौरान एक बड़े - से पोस्टर पर मेरी नज़र ठिठक ...