लड्डू दुखी हैं।उनका घोर अपमान हुआ है।पेट में उतरने से पहले ही हलक में फँस गए।जीभ ने मिठास का पूरा स्वाद लिया भी न था कि कसैलापन हावी हो गया।नेता जी को जमानत मिलते-मिलते रह गई।यह वही बात हुई कि सामने छप्पन व्यंजनों की थाली रखी हो और उस पर अचानक छिपकली गिर जाय।भक्तों के दुःख से लड्डुओं का दुःख कहीं बड़ा है।वे बड़ी शान और आन से तुला पर तौलकर आये थे पर मुँह और पेट के रास्ते में ही कहीं अटक गए।उन्हें इस पर भी संतोष नहीं हो रहा है कि वे बिक कर भी बचे रह गए।अब उनके सुख की जमानत कौन लेगा ?
नेता कोई हल्का-फुल्का नहीं है,अपने हल्के का मुखिया रहा है।जनसेवा के नाम उसका पूरा जीवन समर्पित है,इस बात की गवाही उसके पास हजारों जोड़ी जूते-चप्पल देते हैं।वे लिए इसीलिए गए हैं कि समाजसेवा में घिस सकें,पर उन्हें इस पुनीत कार्य के लिए भी रोक दिया गया ।कपड़ों से ठंसी अलमारियां उदास हैं।उन्हें हवा-पानी के लिए भी खोलना गुनाह है इस वक्त।कपड़ों का हाल उससे भी बुरा है।वे अपने मालिक की तरह कारागार में बंद हैं।लगता यही है कि अगर कपड़ों को जल्द ही पैरोल पर नहीं छोड़ा गया तो वे पहने जाने का अपना गुण ही छोड़ देंगे।
सबसे बुरा हाल भक्तों का है।वे तो ठीक से जी भी नहीं पा रहे हैं।वे अपने बाल-बच्चों की सुध भुलाकर नेता जी के प्यार में अपनी जिंदगी हार रहे हैं।बड़ी मुश्किल से पेट में कुछ जाने की सम्भावना बनी थी पर वो भी नसीब नहीं हुआ।नेता जी के कारागार को पवित्र करने के बाद उस पवित्र-आत्मा से मिलने का दुर्लभ संयोग भी हाथ से छिटक गया।भक्त दिशाहीन और बहके हुए हैं। वे नेता-नशा के चंगुल में फंसकर भी आनंदित हैं।उनका सुख गिरवी पड़ा है।उसे कौन छुड़ाएगा ?
नेता जी भले ही कारागार में हैं पर उनका मन अपने सिंहासन के ही इर्द-गिर्द मंडरा रहा है।वे गिद्धों से उसको बचाना चाह रहे हैं।उनके रहते कोई और सिंहासन पर मंडराए,यह कैसे हो सकता है ? कारागार जाकर भी नेता जी सौ-टंच सोने के बने रहते हैं,यह उनको ईश्वरीय देन है।कोई भी दाग़ उनसे लिपटने को तैयार नहीं है।नेता जी पर धब्बा लगने के बजाय वह खुद को ही दागी बना लेता है।इत्ते कम का दाग़ होने पर वह स्वयं शर्मसार है।आइन्दा किसी नेता के पल्ले नहीं पड़ेगा।दाग़-धब्बे छोट-मोटे चोरों और उठाईगीरों के लिए ही मुफ़ीद होते हैं।इसकी गारंटी आम आदमी लेता है।
© संतोष त्रिवेदी
डेली न्यूज, जयपुर में।
नेता कोई हल्का-फुल्का नहीं है,अपने हल्के का मुखिया रहा है।जनसेवा के नाम उसका पूरा जीवन समर्पित है,इस बात की गवाही उसके पास हजारों जोड़ी जूते-चप्पल देते हैं।वे लिए इसीलिए गए हैं कि समाजसेवा में घिस सकें,पर उन्हें इस पुनीत कार्य के लिए भी रोक दिया गया ।कपड़ों से ठंसी अलमारियां उदास हैं।उन्हें हवा-पानी के लिए भी खोलना गुनाह है इस वक्त।कपड़ों का हाल उससे भी बुरा है।वे अपने मालिक की तरह कारागार में बंद हैं।लगता यही है कि अगर कपड़ों को जल्द ही पैरोल पर नहीं छोड़ा गया तो वे पहने जाने का अपना गुण ही छोड़ देंगे।
सबसे बुरा हाल भक्तों का है।वे तो ठीक से जी भी नहीं पा रहे हैं।वे अपने बाल-बच्चों की सुध भुलाकर नेता जी के प्यार में अपनी जिंदगी हार रहे हैं।बड़ी मुश्किल से पेट में कुछ जाने की सम्भावना बनी थी पर वो भी नसीब नहीं हुआ।नेता जी के कारागार को पवित्र करने के बाद उस पवित्र-आत्मा से मिलने का दुर्लभ संयोग भी हाथ से छिटक गया।भक्त दिशाहीन और बहके हुए हैं। वे नेता-नशा के चंगुल में फंसकर भी आनंदित हैं।उनका सुख गिरवी पड़ा है।उसे कौन छुड़ाएगा ?
नेता जी भले ही कारागार में हैं पर उनका मन अपने सिंहासन के ही इर्द-गिर्द मंडरा रहा है।वे गिद्धों से उसको बचाना चाह रहे हैं।उनके रहते कोई और सिंहासन पर मंडराए,यह कैसे हो सकता है ? कारागार जाकर भी नेता जी सौ-टंच सोने के बने रहते हैं,यह उनको ईश्वरीय देन है।कोई भी दाग़ उनसे लिपटने को तैयार नहीं है।नेता जी पर धब्बा लगने के बजाय वह खुद को ही दागी बना लेता है।इत्ते कम का दाग़ होने पर वह स्वयं शर्मसार है।आइन्दा किसी नेता के पल्ले नहीं पड़ेगा।दाग़-धब्बे छोट-मोटे चोरों और उठाईगीरों के लिए ही मुफ़ीद होते हैं।इसकी गारंटी आम आदमी लेता है।
© संतोष त्रिवेदी
डेली न्यूज, जयपुर में।
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