डीबी स्टार ,भास्कर में 18/07/2014 को प्रकाशित |
हमारे यहाँ कला,खेल,शिक्षा हर जगह नम्बर एक बनने की होड़ लगी रहती है।लोग अव्वल नम्बर के लिए दिन-रात एक कर देते हैं,मगर राजनीति का क्षेत्र सबसे अलहदा है।दिन-प्रतिदिन यहाँ नए प्रयोग होते रहते हैं।सत्ता के समीप वाली राजनीति अजब-गजब खबरों से हमारा मनोरंजन करती रहती है।जहाँ सब जगह नम्बर एक होने की मारामारी है,वहीँ सरकार में नम्बर दो कौन है,इस पर भीषण विमर्श चल रहा है।कोई भी आम आदमी ‘नम्बर-दो’ नहीं बनना चाहता क्योंकि ‘दो-नम्बरी’ को सभ्य समाज में भली नजरों से नहीं देखा जाता।चूंकि मामला,सत्ता और उसकी हनक का है,इसलिए लोग दो-नम्बरी बनने के लिए लहालोट हो जाते हैं।
ऐसा नहीं है कि सरकार में एक नम्बर के पद की डिमांड नहीं होती लेकिन
इसकी दौड़ में शामिल होने के लिए विशेष अर्हता होनी चाहिए।कई बार इसके लिए ख़ास कुल
का होना ज़रूरी होता है तो कई बार वर्षों से ज़बरिया जमे-जमाये बुजुर्ग को धकेलना।नम्बर
एक बनने का काम इतना तकनीकी,कूटनीतिक और जनतांत्रिक होता है कि ‘ड्राइंग-रूम’
पॉलिटिक्स करने वाले इसमें अपना सर खपाते ही नहीं।उनको आशंका होती है कि ऐसी कोशिश
करने पर कहीं पूरा पत्ता ही न साफ़ हो जाय ! इसलिए बेचारे नम्बर-दो की दौड़ में खुद
को आगे ले आते हैं।इसमें वे अनुभवी लोग बाजी मार ले जाते हैं जो अख़बारों के माध्यम
से अपने नम्बर-दो होने की खबरों को योजनाबद्ध ढंग से प्लांट करवाते हैं।इससे भी
काम नहीं बनता तो पिछले दरवाजे से खूब सिफारिश लगवाई जाती है,गोया ‘दो-नम्बरी’ बनते
ही उनकी कार्य-क्षमता खुद-ब-खुद बढ़ जाती हो !
‘दो-नम्बरी’ और ‘दस-नम्बरी’ का लेबल किसी के लिए अच्छा नहीं माना जाता
पर सत्ता की बात हो,तो ‘दो-नम्बरी’ किसी मायने में अव्वल नम्बर से कम नहीं होता।’दो-नम्बरी’
हमेशा मनाया करता है कि पहले नम्बर वाला अपना अधिकतर समय देश के बाहर ही गुजारे
ताकि वह भी देश और समाज की सेवा अधिकृत ढंग से कर सके।ऐसा मौका आने पर नौकरशाहों
और मीडिया से उसकी अच्छी-खासी पहचान हो जाती है।इससे भविष्य में उसके नम्बर एक
बनने का दावा अपने आप पुख्ता हो जाता है।ख़ास बात है कि नम्बर-दो के बाद की स्थिति
के लिए कोई मारामारी नहीं है,सो यहाँ दस-नम्बरी को पूछने वाला कोई नहीं होता।
उम्मीद की जाती है कि सरकार में ‘नम्बर-दो’ का मसला जल्द ही तय हो
जायेगा।यह जितनी जल्दी हो सके उतना देश के लिए हितकर होगा क्योंकि इसके बाद चीन और
पाकिस्तान के साथ मसले सुलझाने हैं,मंहगाई और भ्रष्टाचार पर लगाम लगानी है और पूरे
पाँच साल सरकार भी चलानी है।
3 टिप्पणियां:
बधाई संतोष जी! दैनिक भास्कर में तो नहीं पढ़ा था हाँ, अब पढ़ लिया.
खेल में जरूर दस नम्बरी के अलग जलवे हैं!!
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, गाँधी + बोस = मंडेला - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
आभार आपका।
एक टिप्पणी भेजें