जनवाणी में ३०/१०/२०१३ व जनसन्देश में ३१/१०//२०१३ को |
उन्होंने हमें देखते ही हुँकार भरी।हम पहले से ही लुटे,अधमरे बैठे थे,और डर गए।वे एकदम पास आकर गुर्राकर बोले,’तुम्हें अब किसी और से डरने की ज़रूरत नहीं है।हम तुम्हारी ही रक्षा के लिए अवतरित हुए हैं।साठ सालों का तुम्हारा डर हम साठ दिनों में ही छू-मंतर कर देंगे।तुम्हारे ही उद्धार के लिए हम चाय बेचने के अच्छे-खासे व्यापार को छोड़कर सियासत में वादे बेच रहे हैं।हमारे ये वादे सामान्य वादे नहीं,इरादे भी हैं।हुँकार अब हमारा ब्रांड बन चुका है,हमारी यूएसपी है।इसके फ्लेवर से बने वादे खूब चलते हैं,यह हम आजमा चुके हैं।इसे अब हम व्यापक पैमाने पर लागू करने जा रहे हैं।’
हमने ज़रा-सी हिम्मत करके उनकी हुँकार के बीच अपने लिए थोड़ा स्पेस पैदा करने की कोशिश करते हुए सांस भरी,’मगर आप बिना हुँकार के भी हमारी सेवा कर सकते हैं,फिर यह ललकार ?’ वे अपनी हुँकार पर अटल होते हुए गरजे,’यह सब हम तुम्हारे लिए ही कर रहे हैं पर तुम सुन कहाँ रहे हो ? सालों से हम तुम्हारी सेवा करने को आतुर हैं पर तुम तो एक ही परिवार को वसीयत लिखे बैठे हो।न हमें आने देते हो और न ही ठीक से मुँह मारने ।अब हम इत्ता तो समझ ही चुके हैं कि केवल राम-राम की माला जपने से कुछ नहीं होने वाला।शिकार के लिए हुँकार पहली ज़रूरत होती है,हम तुम्हें बस यही समझा रहे हैं।जंगल का शासन सियार की हुआ-हुआ से नहीं शेर के गरजने से चलता है,इसलिए यह हुँकार ज़रूरी है।’
‘पर इस हुँकार से तो हमें डर लग रहा है।ऐसे में हम अपने दड़बे से बाहर नहीं निकले,तो आपको ‘भोट’ कैसे मिलेगा ? कहीं डर गहरे बैठ गया तो गलत बटन दब सकता है,इससे आपके हुँकारत्व की रेटिंग गिर जाएगी।हम तो अपने खाली पेट और खाली जेब को भरने के लिए आपका मुँह ताक रहे हैं,पर आप तो हमें ही...?’ उन्होंने पहले से अधिक हुँकार भरी,’तुम फ़िलहाल हमें भकोसने दो,हम तुम्हारे अवशेषों को राष्ट्रीय संग्रहालय में स्थापित करने का प्रयास करेंगे।हम हुँकार भरते हैं कि खाने-खिलाने की हमारी खुली डराऊ नीति होगी।इसीलिए डर ज़रूरी है।’
‘क्या मंहगाई और भ्रष्टाचार भी इस हुँकार से डर जायेंगे ?’ हमने डरते-डरते ही पूछा।’बस,इत्ता-सा काम? ये तो हमारी फुफकार से ही दूर भाग जायेंगे।जब तुम जैसे जिंदा प्राणी हमारी हुँकार का अर्थ समझते हैं तो फिर गड़े मुर्दे और मरे मुद्दे क्या चीज़ हैं ? बस,चारों तरफ डर और सिर्फ डर होगा !’इतना सुनते ही हम फिर से बेहोश हो गए।
3 टिप्पणियां:
गूँज रहे हुंकारे, हम तो शान्त पड़े हैं।
चारों तरफ सिर्फ डर होगा।
भगवांन न करें ऐसा हो।
क्या जनवाणी और जनसंदेश के लिए नियमित लिखने लगे हैं? .
करीब-करीब।
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