समय बड़ी तेजी से बदल रहा है या यूँ कहिए कि गुलाटी मार रहा है।और कोई हो न हो,समय हमेशा आत्मनिर्भर होता है।बड़े-बुजुर्ग पहले ही बता गए हैं कि समय होत बलवान इसलिए चतुर-सुजान उसके साथ हो लेते हैं।कलम तलवार की धार से झाड़ू की बुहार में बदल गई है और पत्रकारिता परमार्थ से ‘सेल्फी’ मोड में अवतरित हो चुकी है।नए नायक का जन्म हुआ है तो मानक भी नए बन रहे हैं।जिनके लिए कभी कुर्सी बिछती थी,वे आज स्वयं बिछ रहे हैं।समय ने दाग़-धब्बों को रेड-कारपेट में बदल दिया है और आत्माएँ नित्य नए वस्त्र ग्रहण कर रही हैं।कुल मिलाकर सबका पुनर्निर्माण हो रहा है।
अश्वमेध का रथ आगे बढ़ रहा है।रथ में पहले के ही आजमाए घोड़े जुते हुए हैं।गाँधी,नेहरु और पटेल को लगता होगा कि अभी भी देश को आगे ले जाना उनके बिना सम्भव नहीं है,सो वे पहले की ही तरह मौन हैं और बढ़े जा रहे हैं।अगर वे कुछ कह भी रहे होंगे,तो गाजे-बाजे के शोर में किसी को सुनाई नहीं दे रहा है।लोग भी मन की बात सुनने में व्यस्त हैं।
सबके अपने-अपने लक्ष्य हैं और उनको पूरा करने के लिए अलग-अलग निशाने।जब से सबका लक्ष्य विकास बना है,सबके सब प्रगति-पथ पर चलने को आतुर हैं।इसलिए मिशन से कमीशन तक की यात्रा बड़ी सुगम हो गई है।जब आपके सामने मखमली कालीन बिछी हो,उस वक्त पथरीली-ज़मीन पर पाँव रखना सादगी नहीं मूर्खता की निशानी है।सही समय पर सही निर्णय लेना बुद्धिमानों का काम है,पोंगा-पंडितों का नहीं।
अभी भी जिन्हें पार्थ के पांचजन्य का उद्घोष नहीं सुनाई दे रहा है,वे निरा ढपोरशंख हैं।कभी दूसरों को अपनी आँखों में क़ैद करने वाले आज स्वयं को ‘सेल्फी’ में समाहित करके प्रगतिशीलता का परिचय दे रहे हैं।यह मात्र सेल्फी से सेल्फिश होने तक का सफ़र नहीं है बल्कि पत्रकारिता की नई पहचान स्थापित हो रही है।पत्रकारिता में फ़िलहाल दो कैटेगरी हैं;या तो आप सेल्फी-पत्रकार हैं या नॉन-सेल्फी।यह पहचान ठीक उसी तरह की है जैसे अमेरिका वाले किसी को ग्रीनकार्ड से नवाज़ते हैं।जिनको यह कार्ड मिलता है,वे विशेषाधिकारी और अजूबे होते हैं।बगैर ग्रीनकार्ड के,अमेरिका छोड़िये, गली-मोहल्ले में ही आपकी धेले-भर की इज्ज़त नहीं रहेगी।
पत्रकारिता नए दौर में पहुँच चुकी है।मामला स्टिंग,पोल-खोल और ब्रेकिंग न्यूज़ से आगे बढ़ रहा है।दूसरे की खबर लेने वाले खुद खबर बनने को उतावले हैं।सोशल मीडिया पर सेल्फी डालने भर से यदि बड़ी खबर बन सकती है तो सत्ता और व्यवस्था की निकटता कतई बुरी नहीं है।इसलिए सेल्फी की बढ़ती उपयोगिता और इसकी माँग को देखते हुए पत्रकारों को भेजे जाने वाले निमंत्रण-पत्र में ही इसका ज़िक्र किया जा सकता है।साथ ही,सेल्फी के समय झाड़ू की जगह कलम खोंस दी जाय ताकि उन्हें सर्दी में भी गर्मी का एहसास हो सके।
© संतोष त्रिवेदी
अश्वमेध का रथ आगे बढ़ रहा है।रथ में पहले के ही आजमाए घोड़े जुते हुए हैं।गाँधी,नेहरु और पटेल को लगता होगा कि अभी भी देश को आगे ले जाना उनके बिना सम्भव नहीं है,सो वे पहले की ही तरह मौन हैं और बढ़े जा रहे हैं।अगर वे कुछ कह भी रहे होंगे,तो गाजे-बाजे के शोर में किसी को सुनाई नहीं दे रहा है।लोग भी मन की बात सुनने में व्यस्त हैं।
सबके अपने-अपने लक्ष्य हैं और उनको पूरा करने के लिए अलग-अलग निशाने।जब से सबका लक्ष्य विकास बना है,सबके सब प्रगति-पथ पर चलने को आतुर हैं।इसलिए मिशन से कमीशन तक की यात्रा बड़ी सुगम हो गई है।जब आपके सामने मखमली कालीन बिछी हो,उस वक्त पथरीली-ज़मीन पर पाँव रखना सादगी नहीं मूर्खता की निशानी है।सही समय पर सही निर्णय लेना बुद्धिमानों का काम है,पोंगा-पंडितों का नहीं।
अभी भी जिन्हें पार्थ के पांचजन्य का उद्घोष नहीं सुनाई दे रहा है,वे निरा ढपोरशंख हैं।कभी दूसरों को अपनी आँखों में क़ैद करने वाले आज स्वयं को ‘सेल्फी’ में समाहित करके प्रगतिशीलता का परिचय दे रहे हैं।यह मात्र सेल्फी से सेल्फिश होने तक का सफ़र नहीं है बल्कि पत्रकारिता की नई पहचान स्थापित हो रही है।पत्रकारिता में फ़िलहाल दो कैटेगरी हैं;या तो आप सेल्फी-पत्रकार हैं या नॉन-सेल्फी।यह पहचान ठीक उसी तरह की है जैसे अमेरिका वाले किसी को ग्रीनकार्ड से नवाज़ते हैं।जिनको यह कार्ड मिलता है,वे विशेषाधिकारी और अजूबे होते हैं।बगैर ग्रीनकार्ड के,अमेरिका छोड़िये, गली-मोहल्ले में ही आपकी धेले-भर की इज्ज़त नहीं रहेगी।
पत्रकारिता नए दौर में पहुँच चुकी है।मामला स्टिंग,पोल-खोल और ब्रेकिंग न्यूज़ से आगे बढ़ रहा है।दूसरे की खबर लेने वाले खुद खबर बनने को उतावले हैं।सोशल मीडिया पर सेल्फी डालने भर से यदि बड़ी खबर बन सकती है तो सत्ता और व्यवस्था की निकटता कतई बुरी नहीं है।इसलिए सेल्फी की बढ़ती उपयोगिता और इसकी माँग को देखते हुए पत्रकारों को भेजे जाने वाले निमंत्रण-पत्र में ही इसका ज़िक्र किया जा सकता है।साथ ही,सेल्फी के समय झाड़ू की जगह कलम खोंस दी जाय ताकि उन्हें सर्दी में भी गर्मी का एहसास हो सके।
© संतोष त्रिवेदी
1 टिप्पणी:
satik sarthak ...
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