रविवार, 28 फ़रवरी 2021

आत्मा का उन्नत संस्करण !

एक होती है आत्मा और दूसरी अंतरात्मा।हम जैसे साधारण लोगों के पास सिर्फ़ आत्मा होती है।जो थोड़ा पहुँचे हुए होते हैं,उनके पासअंतरात्माहोती है।यह आम-जन के लिए क़तई सुलभ नहीं है।इसकी पहचान भी सबको नहीं होती।जैसे हिरन को अपनी कस्तूरी का पता नहीं होता,वो उसकी खोज में भटकता रहता है,वैसे हीअंतरात्माको धारण करने वाला इससे बिलकुल अनजान रहता है।सदियों से सोई आत्मा अचानकअंतरात्माबन जाती है।जिस प्रकार हर साँप में मणि पैदा करने की कूबत नहीं होती,उसी तरह हर मनुष्य मेंअंतरात्मानहीं होती।जब यह कहीं प्रकट होती है तो चीख-चीखकरअलार्मबजाने लगती है।प्राणी बेचारा बेबस होकर उसकी आवाज़ सुनने को मजबूर हो जाता है।गौर करने वाली बात तो यह है कि उसके आवाज़ सुनने का समय बिलकुल सटीक होता है।इससेअंतरात्मा-जीवीको अपना लक्ष्य साधने में कोई मुश्किल नहीं होती।


ऐसी आत्माएँ दूरदर्शी तो होती ही हैं,इनकी घ्राण-शक्ति भी बहुत तीव्र होती है।आते हुए ख़तरे को ये ऐन मौक़े पर पहचान लेती हैं।इससे सिर्फ़ ये हमेशा सुरक्षित रहती हैं बल्कि लोकतंत्र भी ख़तरे से बाहर हो जाता है।ये कबीरदास के दर्शनसार-सार को गहि रहे,थोथा देइ उड़ायसे प्रेरित होकर केवल फ़ायदा ग्रहण करती हैं।नुक़सान तो इनके पास भी नहीं फटकता।साथ ही ये किसी नैतिकता-फैतिकता के अपराध-बोध से एकदम परे होती हैं।ये इतनी सिद्धांत-प्रूफ़ होती हैं कि कोई भी निष्ठा इनकीविकास-यात्रामें अड़ंगी नहीं डाल सकती।


ऐसी ही एक दुर्लभ अंतरात्मा से कल शाम टकरा गया।वह बड़ी तेज़ी सेराजपथकी ओर भागी जा रही थी।हमने केवल इतना भर कहा कि ज़रा देख कर चला करिए।बीच में सरकार भी खड़ी है।आजकल बड़ी सतर्क है।कहीं कोईटूलकिटबिखर गई तो बाहरी छोड़िए,अंदरूनी तार भी स्थायी रूप से हिल जाएँगे।मेरी बात सुनते ही वह पास की बेंच पर जीडीपी की तरह धम्म से बैठ गई।


पहले तो उसने मुझे भर नज़र देखा फिर मुझे भी बैठने का इशारा किया।छूटते ही बोली,‘दरअसल इन दिनों बंगाल की खाड़ी में ज़बर्दस्त दबाव बना हुआ है।तिनकों और घास-फूस की बात छोड़िए,बड़े-बड़े महल धराशायी हो रहे हैं।भयंकर तूफ़ान की आशंका है।इसलिए मैंने सोचा मिटने से बेहतर है,थोड़ा-सा गिर लिया जाए।और मेरागिरनाकोई आम गिरना नहीं है।सही बात तो यह है कि गिरने का कभी रत्ती भर ख़ौफ़ नहीं रहा मुझे।और आप जिसे अपनी नादानी सेगिरावटसमझ रहे हैं,दरअसल वो मेरी सहजगतिहै।मुझे जब भी अंदर की आवाज़ सुनाई देती है,रहा नहीं जाता।मैं हरदम यात्रा में रहती हूँ।सच बताऊँ,मैं केवल स्नेह की भूखी हूँ।जहाँ भी मिलता है,छककर खाती हूँ और आगे बढ़ जाती हूँ।ज़िंदगी में मुझे कभी किसी से मोह नहीं रहा।आपने मुझे टोककर ठीक नहीं किया।अंतरात्माएँ किसी के प्रति जवाबदेह नहीं होतीं।यह काम सामान्य जीवधारियों का है !’


उस अंतरात्मा का इतना आत्म-विश्वास देखकर मेरा हिल गया।पहली बार लगा कि कितनी नकारा आत्मा है मेरे पास ! फिर तनिक सकुचाते हुए अपनी आत्मा पर पड़े बोझ को थोड़ा दूर किया और पूछ बैठा, ‘आत्मा से अंतरात्माहोने तक का आपका यह सफ़र कैसा रहा ? कभीरिपेयर सेंटरजाने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई ?’


उसने मुझे ऐसे देखा,मानो बरसों बाद कोई बुद्धिजीवी देख लिया हो ! कहने लगी, ‘आपने शायद किताबों से ज़्यादावाट्स-अपकी लीक हुई कोई चैट पढ़ ली है।आधुनिक अंतरात्माएँ पूरी तरह अपग्रेड हो चुकी हैं।ये आम आत्माओं की तरह भूखी मरती हैं और ही बेरोज़गार रहती हैं।जिन आत्माओं केअजर-अमरहोने की बात गीता में कही गई है,वो दरअसल हम जैसीसुपर आत्माओंके बारे में ही है।इन्हें ऐसी दिव्य शक्तियाँ प्राप्त हैं कि ये आत्म-जीवी और परजीवी में भेद नहीं मानतीं।इनकी उपस्थिति दल और व्यक्ति-निष्ठा जैसे पारंपरिक बंधनों से मुक्त होती है।ये निर्बाध रूप से यत्र-तत्र-सर्वत्र विचरण करती हैं।जब कोई अंतरात्मा अपनी आवाज़ सुनती है,उस वक्त ख़ुद की भी नहीं सुनती।इन्हें किसी भी प्रकार की शारीरिक,मानसिक या नैतिक चोट नहीं लगती।इसलिए हमें किसीरिपेयर सेंटरमें जाने की ज़रूरत नहीं होती।


तो क्यागतिके मामले में आप तेल को भी मात करने वाली हैं ?’ मैंने एक बेहद मासूम सवाल पूछ डाला।अबकी बारअंतरात्माने ज़ोर का ठहाका लगाया।विमर्श का निचोड़ बताते हुए बोली, ‘आप किस नश्वर संसार की बातें करते हैं ? तेल आज है,कल नहीं रहेगा।नसीब से मिलने वाली वस्तु जितनी जल्दी चली जाए,ठीक रहता है।मनुष्य तभी आत्म-निर्भर बनेगा।मैं कब की हो चुकी हूँ।इसीलिए कभी चूकती नहीं।आप केवल तेल मत देखो,उसकी धार देखो ! अंतरराष्ट्रीय समस्याएँ ड्रॉइंग रूम की बहसों,सोशल मीडिया की दीवारों पर थूकने से हल नहीं होतीं।हमें देश की छवि सही रखनी है तो सत्ता-पक्ष की नज़र से चीजों को देखना चाहिए।देश में इस समय दो ही समस्याएँ हैं।पहली विपक्ष,दूसरी बुद्धिजीवी।मुश्किल ये है कि इनके पासअंतरात्माभी नहीं है।इतना कहकर वह अचानक अदृश्य हो गई।


संतोष त्रिवेदी


शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2021

बस ‘कील’ भर की दूरी है !

किसान घणे बावले हो रहे हैं।एक तो कोई मसला है ही नहीं फिर भी कोई बनता है तो आपसदारी से हम सुलटा लेंगे।वे बिला वजह इसेइंटरनेशनलबनाने लग रहे हैं।हमारी सरकार शुरू से चाह रही है कि वो बात करें।बारह बार कर भी चुकी है।चौबीस बार और कर लेगी।बात करने से सरकार पीछे ना हट रही।वह तो किसानों की असल हमदर्द है।किसान जब चाहें,सरकार की बात रेडियो में सुन लें।वह हमेशा तैयार है।बसकीलभर की दूरी है।इसे लेकर कुछ लोग अफ़वाहें फैला रहे हैं।किसानों के स्वागत में सरकार ने रास्ते में जोफूलबिछाए हैं,उन्हेंशूलबताया जा रहा है।जिनको मोतियाबिंद की बीमारी है,उन्हें उसमेंकीलदिखाई दे रही है।यह सोची-समझी और विदेशी साज़िश है।बाहर के लोग हमें आपस में भिड़ाना चाहते हैं।कुछ दिनों पहले किसानों से भिड़ने की जो खबरें आईं थीं,उसमें सरकार के आदमी नहीं,भोले-भाले स्थानीय लोग थे।लोकतंत्र की वजह से पुलिस उनको रोक नहीं सकी।वहलोकतंत्रकी रक्षा कर रही थी।लालक़िले की घटना में भी उसने आँख-मूँदकर लोकतंत्र बचा लिया।इत्ता अच्छा लोकतंत्र और कहाँ मिलेगा ? इसे ख़तरा तो उन पत्रकारों से है जोलोकतंत्र की रक्षाका सजीव प्रसारण करने लगते हैं।इससे सरकारी काम में बाधा पड़ती है।इससे बचना चाहिए।



एक और ज़रूरी बात।हमें आंतरिक मामलों में बाहरी हस्तक्षेप बिलकुल पसंद नहीं।दूसरे देश के चुनावों में जाकर हम नारेबाज़ी भी नहीं करते।अबकी बार,ट्रंप सरकारका नारा हमने केवल आपसी सौहार्द और विश्व-बंधुत्व की भावना को बल देने के लिए लगाया था।इस नारे के बाद ही अमेरिका और दुनिया का भला हुआ।वहाँ लोकतंत्र का मंदिर बच गया।हम लोकतंत्र की रक्षा के लिए शुरू से ही प्रतिबद्ध हैं।नया मंदिरभी बना रहे हैं।किसानों को भी यह बात समझनी चाहिए। लोकतंत्र की वजह से ही सरकार सड़कों पर कील ठोंक रही है वर्ना छातियों पर ठोंकती।ऐसी अतिरिक्त उदारता लोकतंत्र के चलते है।इस बात पर सरकार को शाबाशी मिलनी चाहिए कि उसने ज़रूरत से ज़्यादा लोकतंत्र दिया है।किसानों के पास ट्रैक्टर है तो सरकार के पास टैंक हैं।उन्हें यह समझना चाहिए।


संतोष त्रिवेदी 

             


धुंध भरे दिन

इस बार ठंड ठीक से शुरू भी नहीं हुई थी कि राजधानी ने काला कंबल ओढ़ लिया।वह पहले कूड़े के पहाड़ों के लिए जानी जाती थी...