रविवार, 15 मार्च 2020

शहर में अब शांति-शांति है !

होली से ठीक पहले शहर में शांति स्थापित हो गई।इसमें दंगों की ख़ास भूमिका रही।अगर ये बड़े पैमाने पर हुए होते तो शहर में शांति स्थापित करने में व्यावहारिक दिक्कतें आतीं।अब सारा माहौल अमन और भाईचारे की चपेट में है।घर भले ही खंडहर में तब्दील हो गए हों,चैनलों में दिन-रातअमन और भाईचारे की एक सौ एक कहानियाँप्रसारित हो रही हैं।इससे पीड़ितों को भरोसा हुआ है कि वे जल्द ही फिर से इसभाईचारेकाचाराबन सकते हैं।पूरे मुल्क को ये दंगे प्रेरणा देते हैं कि आपस में सांप्रदायिक सद्भाव की मज़बूती के लिए इनका होना कितना ज़रूरी है ! दंगों के बाद जो शांति पसरती है,वह बात पहले वाली सुख-शांति में कहाँ ! जो शांति मुख्य ख़बर तक बन सके,ख़ाक किसी की ज़िंदगी में सुकून लाएगी।इस सबके लिए हमें दंगाइयों का आभारी होना चाहिए।

ऐसी ही निपट शांति के बीच कल एक नवोदित दंगाई से भेंट हो गई।हमारे हाथ में लाल गुलाल था और उसके हाथ में क्रांतिकारी गुलेल।सात्विक माहौल देखते हुए मैंने गुलाल भरा हाथ आगे बढ़ाया तो उसने झट से अपनी गुलेल आगे कर दी।हमने कहा, ‘हम तो बस आपको  गुलाल लगाना चाहते हैं।शांति के पुजारी ठहरे।अभी-अभी शांति-मार्च से लौटे हैं।सोचा,आपसे भाईचारे की बोहनी कर लूँ।होली खेलने का मौसम भी है।आपको कोई हर्ज तो नहीं ?’ गुलेल सीधी करते हुए वे बोले, ‘होली तो हम भी खेलते हैं।अभी खेली भी है।पर जोएडवेंचरगुलेल से खेलने में आता है,वह गुलाल में कहाँ जी !आओ हमारे खंडहर में,वहीं खेलते हैं।

यह सुनते ही हम लहालोट हो गए।पारंपरिक तरीक़ों से तो बहुत दिनों से होली खेल रहे हैं पर अब उसमें कोई नयापन नहीं रहा।गुलाल को अपनी जेब के हवाले करते हुए हमने कहा, ‘ज़रा,इस गुलेल वाली होली के बारे में सविस्तार प्रकाश डालिए।इसके लिए क्या तैयारी करनी होती है ?’

नवोदित दंगाई ने गुलेल तानते हुए बताया, ‘दंगा करना हँसी-ठट्ठा नहीं है साहब ! दंगे यूँ ही नहीं हो जाते।बड़ी मेहनत लगती है,तब कहीं जाकर सुलगते हैं।घर की छतों से पतंग ही नहीं पत्थर और पेट्रोल-बम भी चलाए जा सकते हैं।एक हाथ से पत्थर,गोली और गुलेल तो दूसरे हाथ से अफ़वाह चलानी पड़ती है।बिना अफ़वाह के गुलेल चलाने से कुछ नहीं हासिल होगा।चैनलों में रत्ती भर की भीबाइटनहीं मिलेगी।अफ़वाह जितना फैलेगी,दंगा उतना ही समृद्ध होगा।लेकिन बिना छुरा घोंपे कोई भी दंगा प्रामाणिक नहीं होता।एक और बात,दंगे को कोई नौसिखिया नहीं संभाल सकता।इसीलिए हमारे यहाँ बकायदादंगा समितिहै।उसी की देखरेख में सारा काम होता है।टीम लीडरबयान देता है,हम अंजाम देते हैं।बस्तियों को आग लगाते हैं ताकि उनका पुनर्वास हो सके।इससे सरकार को भी उदार होने का अवसर मिलता है।इसके साथ ही राहत और मुआवजे अखबारी पन्नों पर एकदम से टूट पड़ते हैं।अब आप ही बताओ, क्या दंगे इत्ते बुरे हैं ?’

हम दंगों से बिलकुल अनजान तो नहीं थे।यूँ कहिए ,कई बार उनसे प्रभावित भी हुए हैं पर इतने नज़दीक से कभी दंगा-दर्शन का लाभ नहीं मिला था।दंगे होने के फ़ायदों के बारे में अभी सोच ही रहा था कि सामने से वरिष्ठ दंगाकार आते दिखाई दिए।वेअंतर्राष्ट्रीय दंगा समितिके अध्यक्ष हैं।उन्हीं की देखरेख में दंगे का सर्वत्र प्रसार होता है।उनके बारे में यहाँ तक कहा जाता है कि वे जहाँ भी जाते हैं,दंगा उनसे  पहले पहुँच जाता है।नवोदित दंगाई उनसे हमारा परिचय कराते हुए बोला, ‘ जनाब,ये उभरते हुए दंगाई हैं।गुलाल से दंगा करने की कोशिश कर रहे थे।मुझे अभी से इनमें काफ़ी संभावना दिख रही है।आप इनका थोड़ा दंगा-निर्देशन करें तो हम व्यापक परिणाम पा सकते हैं।’ 

वरिष्ठ दंगाकार ने ऊपर से नीचे तक हमारा मुआयना किया।फ़िट केस पाते ही कहने लगे, ‘हम अभी राजघाट से शांतिपाठ करके लौटे हैं।दंगों से गाँधीजी के बंदर तक दुःखी थे।हमने उन्हें सांत्वना दी है कि अगली बार दंगों में कोई चूक नहीं होगी।हम चार के बजाय तीन दिन में ही शांति स्थापित कर देंगे।तुम नए हो इसलिए कुछ टिप्स देता हूँ।दंगे की सफलता के लिएइधरऔरउधरदो पक्ष होने चाहिए।दोनों पढ़े-लिखें हों तो दंगा तेज़ी से फैलता है।किसी वजह से दूसरा पक्ष तैयार हो पा रहा हो तो अपने में से ही कुछ कोउधरकर देना चाहिए।इससे माहौल बनता है।अनुभवी लोग जहां गुलेल से पत्थर फेंकते हैं,पढ़े-लिखे सोशल मीडिया संभालते हैं।और हाँ,एक बात याद रखो।दंगा करने से ज़्यादा भड़काने का हुनर काम आता है।जब शहर में पर्याप्त मात्रा में अशांति फैल जाए,शांतिमार्च का माहौल तैयार हो जाए,तभी दंगा सफल मानो।दंगे हमारी राजनैतिक,सामाजिक और धार्मिक ज़रूरतें पूरी करते हैं।इनसे ग़रीबों को मोक्ष तो मिलता ही है, धर्म की रक्षा भी होती है।यहाँ तक कि सरकार बन जाती है।दंगों से साहित्य भी खूब समृद्ध होता है।भाईचारे के स्लोगन बनते हैं और फ़िल्में हिट होती हैं।दंगाहित में मैं तो यही कहूँगा कि दंगे नियमित रूप से होते रहने चाहिए ताकि अमन और भाईचारा हमेशा स्थापित रहे।

दंगागुरू को प्रणाम कर जैसे ही घर पहुँचे,पत्नी ने बताया कि शहर में कोरोना चुका है।जान से हाथ धोओ,इससे पहले हाथ धो लो।हमें फिर से भाईचारे पर संकट दिखने लगा है।

संतोष त्रिवेदी



धुंध भरे दिन

इस बार ठंड ठीक से शुरू भी नहीं हुई थी कि राजधानी ने काला कंबल ओढ़ लिया।वह पहले कूड़े के पहाड़ों के लिए जानी जाती थी...