बुधवार, 30 जनवरी 2013

चिंतन शिविर और चाय चिन्तन !

30/01/2013 को DLA में.....

चिंतन-शिविर को लेकर हमारे मन में बड़ी उत्सुकता थी,इसलिए इसको नजदीक से देखने के लिए हम जयपुर पहुँच गये।वहां हमारे पहुँचने से पहले ही कई वरिष्ठ पत्रकार जमे हुए थे।बैठक शुरू होने में थोडा विलम्ब था,इसलिए हम इधर-उधर टहलने लगे।देखा,एक जगह भीड़ लगी हुई थी।हमने स्वभावतः सोचा कि चिंतन-बैठक के बारे में कोई नेता अपना बयान जारी कर रहा होगा,पर पास जाने पर दूसरा ही नज़ारा मिला।लोग चाय के स्टाल पर अपना नंबर लगाये,हाथ में कुल्हड़ पकडे खड़े थे।हमने एक वरिष्ठ सज्जन से पूछा कि चाय के लिए इत्ती मारामारी ?वे लगभग दार्शनिक मुद्रा में समझाते हुए बोले,’लगता है आप पहली बार ‘चिंतन-शिविर’ में आये हैं।पिछले वाले में तो हम थोड़ा चूक गए थे और बाद में हमारे हाथ में कुल्हड़ भी नहीं सुरक्षित बचा था।’

हमने इस शिविर की गंभीरता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यहीं से देश के लिए डेढ़ साल की दिशा तय होनी है।इसलिए हम तो यहाँ खांटी-खबर ढूँढने आये हैं।हमारी बात सुनकर वो कुछ बोले नहीं ,बस मुस्कुराकर रह गए।तब तक तम्बू में थोड़ी हलचल हुई और पता चला कि मैडम जी आ गई हैं।हमने अपने को एकदम चिंतन-मूड में परिवर्तित कर लिया और मैडम के उद्बोधन की प्रतीक्षा करने लगे।मैडम फुर्ती से मंच पर चढ़ीं और उनके उत्साही कार्यकर्ताओं ने बैठने से पहले ही उन्हें मालाओं से लाद दिया।वे लगातार मुस्कुराए जा रहीं थीं। हमारी आशा के विपरीत उनके चेहरे पर चिंता के कोई लक्षण नहीं थे।स्वागत-सत्कार और कैमरों के फ्लैश के बीच आखिरकार उन्होंने माइक संभाल लिया ।

वे परचा पढ़ने लगीं,’हम अपने कार्यकर्ताओं से केवल इतना कहने आये हैं कि वे कतई चिंतित न हों,जिस तरह हम सरकार चलाकर निश्चिन्त हैं,आप भी आत्म-विश्वास बनाये रखें।आप लोगों में अतिरिक्त ऊर्जा के लिए हम बीच-बीच में प्राकृतिक-ईंधन का सहारा ले लेते हैं,इसलिए हमारे रहते आप भी निश्चिन्त रहें।इस चिंतन-शिविर का उद्देश्य है कि हम देश के हालात पर औपचारिक रूप से चिंतित हैं।हमें महिलाओं के शोषण और अत्याचार की हर दिन जानकारी मिलती रहती है,जिस पर हम लगातार चिंतित हैं।आम आदमी के बारे में सोचने का हमारा अधिकार है,इसलिए हमने अपना हाथ उसी के पास रखा हुआ है।इस बात से हमें सबसे ज्यादा फायदा यह है कि जब भी देश के विकास के लिए ज़रूरी हुआ,हम उसकी जेब साफ़ कर देते हैं।इसमें हमारा कोई निजी स्वार्थ नहीं है।हम पिछले नौ सालों की उपलब्धि से इतना प्रभावित हुए हैं कि जनता के लिए सिलेंडर की संख्या छः से नौ कर दी है।यह इस बात का भी संकेत है कि यदि चौदह में हम फिर से आये तो यह गिनती उसी अनुपात में बढ़ भी सकती है।

हम महिलाओं के अत्याचार से निपटने में पूरी तरह सक्षम हैं।जिस तरह पिछले साल हम भ्रष्टाचार से निपटे,उसी नीति से हम इससे भी निपट लेंगे।कल लोकपाल-लोकपाल चिल्लाने वाले आज पैदल घूम रहे हैं।इसी तरह महिलाओं के अत्याचार पर हम नियंत्रण पा लेंगे।इसकी शुरुआत इसके आन्दोलन को नियंत्रित करके कर दी गई है।हमने अपनी बैठक जयपुर में इसलिए भी आयोजित करी है कि हमें युवराज के लिए जय के सिवा कुछ नहीं चाहिए।’इस दौरान एक उत्साही कार्यकर्त्ता ने अपना हाथ उठाया,पर मैडम ने उसे वहीँ रोक दिया।वे कहने लगीं,’आपको चिंतन की आवश्यकता नहीं है।उसके लिए हम बैठे हैं।आप लोग बिलकुल चिंता न करें।जब तक हम चिंतन करते रहेंगे,चिंता तो आम आदमी को करनी है कि हमें छोड़कर वह किसका दामन पकड़े ? भाषण कुछ लम्बा खिंच रहा था और हमें जम्हाई आने लगी थी,सो चाय के स्टाल की तरफ हम मुड़ लिए,पर हाय हमारी किस्मत,तब तक वहां अफरा-तफरी मच गई थी।कई पत्रकार हाथ में कुल्हड़ लिए ही भाग रहे थे।हमें लगा कि पंडाल के चिंतन से चाय-चिंतन ज्यादा खतरनाक है।इसलिए फिर से पंडाल के अन्दर हो लिए।



नासमझ हैं आयकर वाले !


31/01/2013 को जनवाणी में...
 

जब से हमने यह खबर पढ़ी है कि आयकर अधिकारियों के संघ ने एक बड़ी पार्टी के निवर्तमान अध्यक्ष को उनके काबिल अधिकारियों को धमकाने के लिए नोटिस दिया है,हंसी छूट रही है.ये लोग इतना पढ़-लिख कर अधिकारी तो बन गए पर व्यावहारिक ज्ञान के मामले में अभी शून्य हैं.ये लोग जिनके विरुद्ध कार्यवाही की मांग कर रहे हैं ,ज़रा उनके बारे में ठीक से जानकारी भी रख लेते तो बेहतर होता.जब तक वे पार्टी के अध्यक्ष रहे,सिरदर्द बने रहे।अपने कार्यकाल में आये दिन कुछ तूफानी करने के चक्कर में वे ऐसा कुछ कह देते थे कि बाद में उनके प्रवक्ता को सफ़ाई देनी पड़ती थी कि दर-असल उनके बयान का मतलब वो नहीं था।जब मीडिया वाले प्रवक्ता से ही पूछ बैठते कि आखिर वही उसका मतलब बता दें तो वह बगलें झाँकने लगता था।बहरहाल,न चाहते हुए भी ऐसे उपयोगी अध्यक्ष से पार्टी को हाथ धोना पड़ा।यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि पद छोड़ने वाला छोड़ना नहीं चाह रहा था और न ही पार्टी वाले उसे छोड़ना,पर अंततः हालात ऐसे बने कि किसी का भी सोचा हुआ नहीं हुआ।

अध्यक्ष होने की हैसियत वे बखूबी जानते थे और यह पद उनको अपनी पार्टी के कारण नहीं कुछ नामुराद आयकर अधिकारियों की वजह से गंवाना पड़ा।बारात एकदम तैयार थी और उनके सिर पर सेहरा बंधने ही वाला था कि उनकी कंपनी के यहाँ छापे डालकर सब गुड़-गोबर कर दिया गया।इसका असर यह हुआ कि घोड़ी पर किसी और को दूल्हा बनाकर बैठा दिया गया।ऐसे में किसी का भी पेंच ढीला हो सकता है।इसलिए अपने लोगों के बीच पहुँचते ही निवर्तमान अध्यक्ष ने अपनी भड़ास जमकर निकाली है ।आख़िरकार वे एक बड़ी पार्टी के अध्यक्ष रह चुके हैं और अभी भी उनकी उपयोगिता उसी तरह बरक़रार है ।

उन्होंने यह बिलकुल सही फ़रमाया है कि आयकर वाले अपनी हद में रहें।ये छापे आम आदमियों के लिए ही होते हैं और कोई नेता आम कैसे हो सकता है ?ये छापे खासकर तब ज्यादा जोर मारते हैं जब कोई सत्ता से बाहर होता है।दुर्भाग्य से वे और उनकी पार्टी पिछले काफी समय से सत्ता से बाहर हैं पर हमेशा ऐसा ही नहीं रहेगा।कई ज्योतिषियों और राजनैतिक पंडितों ने हिसाब लगाकर बताया है कि आने वाले चुनावों में उनकी सरकार बनने वाली है।ऐसे में आयकर अधिकारियों को उनका विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर उन्हें भी दंड मिलेगा।अगली सरकार उनकी आने पर ऐसे अधिकारी नापे जायेंगे और तब उनका बचाव आज के हाकिम नहीं कर पाएंगे।

निवर्तमान अध्यक्ष अपने भारी-भरकम वज़न के हिसाब से अपने रुतबे को भी जानते-समझते हैं पर ये नादान आयकर अधिकारी यह हकीकत नहीं समझते।वैसे भी उन्होंने कहा है कि अब वे पद-मुक्त हैं और कुछ भी कहने-करने को स्वतंत्र हैं।दरअसल ,उन्होंने जो कहा है ,उनकी पार्टी की मूल अवधारणा के खिलाफ़ नहीं है,बस वे इस बात को सार्वजनिक कर गए,यही चूक हो गई।अब जो भी समझना है वह सम्बंधित अधिकारियों को समझना है।छापे मारने वाले अधिकारी ज़रूर अनाड़ी रहे होंगे और उन्हें अपने कामकाज से कहीं अधिक राजनीति की समझ होनी चाहिए।वे भी अगर सीबीआई की तरह काम करेंगे,तो राजनीति करने कौन जायेगा? राजनीति में प्रवेश करने का मूल आशय यही है कि व्यक्ति आम से ख़ास हो जाता है,उसे सभी तरह का अभयदान मिल जाता है,वह कानून बनाता है,कानून उसके ऊपर लागू नहीं होता।ऐसी व्यावहारिक बातें भी न समझने वाले निरा मूढ़ ,अज्ञानी व अपराधी हैं और वे दंड के सर्वथा योग्य हैं।

हम तो यह छोटी-सी बात समझते हैं पर उन नासमझ अधिकारियों को यह कौन समझाए ?
 
जनसन्देश टाइम्स में ३०/०१/२०१३ को प्रकाशित  !

शनिवार, 26 जनवरी 2013

अध्यक्ष पद का लोकतान्त्रिक चयन !

26/01//2013 को 'नैशनल दुनिया' में.


कुछ लोग लगातार उनको ढकेलने में सक्रिय थे पर पर वे थे कि टस से मस होने का नाम नहीं ले रहे थे।वे जितना अपने भारी वज़न के कारण टिके हुए थे,उससे कहीं ज्यादा उनको पकड़ रखने वालों की वज़ह से।यही कारण था कि हर बार उन्हें ढकेलने वालों की तादाद उनको रोकने वालों से कम पड़ जाती थी।इस ढकेलने और रोकने के खेल में तब निर्णायक मोड़ आ गया जब एक सरकारी अमला भी ढकेलने वालों के साथ जुड़ गया।इससे पहले कई आरोपों को वे कागज के गोले बनाकर हवा में उड़ा चुके थे,पर इस बार का धक्का इतना तीव्र था कि वजनदार व्यक्तित्व होने के बावजूद वे अपने को लुढ़कने से नहीं बचा पाए।
उनकी पार्टी में अध्यक्ष पद का चुनाव निहायत लोकतान्त्रिक किस्म का रहा।यह अपने आप में कई मामलों में अनूठा भी रहा।जहाँ दूसरे दलों में लोग पार्टी अध्यक्ष बनने का सपना भी नहीं देख पाते,वहीँ यहाँ बिलकुल निस्पृह भाव से इस पद के लिए गज़ब की अनिच्छा रही।सही बात तो यह है कि राष्ट्रवादी पार्टी होने के नाते पहली पांत में बैठे अधिकतर नेता राष्ट्र-सेवा को पार्टी-सेवा से कहीं अधिक तरजीह देते हैं।इसलिए जब इनमें से किसी को भी लगा कि अध्यक्ष पद पर उसके आसीन होने की आशंका है तो वह अन्दर तक हिल गया।उसको लगा कि अगले साल होने वाले चुनावों में अगर कहीं बिल्ली के भाग से छींका टूटा तो उसकी राष्ट्र-सेवा की हसरत पूरी नहीं हो पायेगी।इसलिए अपनी किस्मत का दरवाज़ा कोई नहीं बंद करना चाहता था।
पहले से ही अध्यक्ष बने हुए को फिर से उसका कार्यकाल बढ़ाने का हर बार मतलब यही नहीं होता कि उसने पार्टी को प्रगति के पथ पर अग्रसर किया हुआ है।उसे बनाये रखने का सबसे आसान कारण यह है कि जो भी दाग़,आरोप लगने हैं,वह उसी के खाते में दर्ज हों,दूसरा बचा रहे।इसमें हर्ज़ भी क्या है?जिस व्यक्ति के ऊपर दस आरोप लगे हों तो ग्यारहवां भी वह आराम से झेल लेगा और पार्टी की क्षति भी नहीं होगी।उसके इस सेवाभाव की पूर्ति पार्टी एक बयान जारी कर कर सकती है कि इस बन्दे ने बिना किसी दबाव में आये,पार्टी की सेवा की है और आगे भी करता रहेगा।इसी कार्य-योजना के अनुसार यह काम निपट रहा था कि आयकर वालों ने मंसूबों में पानी फेर दिया।
कहते हैं कि किसी की निपुणता संकट के समय सबसे ज्यादा परखी जाती है।पार्टी ने यहाँ भी यही सिद्ध किया।अपना पहला और आखिरी प्लान ध्वस्त होते ही उसने देश का एक पारंपरिक खेल खेलना शुरू कर दिया।इस खेल में गोल बनाकर कई लोग बैठे होते हैं और पीछे संगीत बजता है।पहले कोई वस्तु एक आदमी की तरफ उछाली जाती है,साथ में संगीत बजने लगता है।इस खेल के नियम के अनुसार संगीत बजते रहने तक वह वस्तु एक-दूसरे की तरफ उछाली जा सकती है,पर जब भी संगीत रुकेगा,जिसके हाथ में उस समय वह वस्तु होगी,वह हारा माना जायेगा।बिलकुल इसी तर्ज़ पर अध्यक्ष का पद आखिरी समय में अलाने ने फलाने को,फलाने ने फलानी को और फलानी ने अगले फलाने की तरफ सरका दिया।हर व्यक्ति इस बात से आशंकित रहा कि कहीं उसी के गले में यह फंदा न पड़ जाय।इससे उसकी भविष्य की सारी संभावनाओं पर पानी पड़ सकता था।
इस खेल का अंत तो होना ही था।अंततः एक मुफ़ीद गला मिलते ही सबने उसे अपने गले से लगा लिया।जो लोग इसके पहले निवर्तमान अध्यक्ष को ही सबसे कुशल व योग्य बता रहे थे,वो अब चयनित उम्मीदवार के लिए तराने गाने लगे।बयान वही थे,लिफाफे में बस नाम बदल दिया गया था।इस तरह निर्विघ्न रूप से उनकी पार्टी के अध्यक्ष पद का चुनाव संपन्न हुआ और प्रसन्नता की बात रही कि यह सब सर्व सहमति से हुआ।

बुधवार, 23 जनवरी 2013

हम लाए हैं तूफ़ान से..... !

जनवाणी में २३/०१/२०१३ को !
चिंतन-शिविर को लेकर हमारे मन में बड़ी उत्सुकता थी।दिल्ली से जयपुर के लिए हम निकलने ही वाले थे कि ओले पड़ने लगे और ज़मीनी-रपट लेने का हमारा मंसूबा धरा का धरा रह गया।अब हमारे पास यही विकल्प था कि जैसे ही चिंतन निपटाकर लोग राजधानी पहुंचें,हम अन्दर की खबर निकाल सकें।इसलिए हम पार्टी–कार्यालय पर पहले से ही जाकर बैठ गए थे।थोड़ी देर में ही हमने देखा,कई वरिष्ठ लोग एक युवा नेता को कन्धों पर टांग कर कार्यालय की तरफ बढ़ रहे थे।पीछे-पीछे ढोल-नगाड़े वाले भी पूरे जोश में थे।हमसे रहा न गया और उस भीड़ के पास हम भी पहुँच गए।लोग तेज़ आवाज़ में नारे बुलंद कर रहे थे।उनके नारे के मुखड़े अब साफ़ सुनाई दे रहे थे।दल के आगे-आगे चल रहा कार्यकर्त्ता,‘देश का भविष्य कैसा हो ’का स्वर निकाल रहा था और काँधे पर युवा नेता को लादे लोग,’युवराज बाबा जैसा हो’ का उद्घोष कर रहे थे।


हमने मौका ताड़कर हुजूम के किनारे-किनारे चल रहे एक बुजुर्ग नेता से इस रौनक का कारण पूछा।उन्होंने पूरी निष्ठा के साथ हमें बताया ‘असल में हमने चिंतन-शिविर में सब-कुछ हासिल कर लिया है।हमारी पार्टी के प्रति युवाओं का आक्रोश बढ़ता जा रहा था ,ऐसे में हमने अपनी पार्टी में दो-नम्बरी जगह को बिलकुल स्पष्ट कर दिया है।अब देश को किसी मुगालते में नहीं रहना है,हमने अपना अगला नेता चुन लिया है।’पर आपने यह कैसे जान लिया कि आपकी पार्टी का यही नेता देश का नेता बन सकता है ?’हमने बात स्पष्ट करने के लिहाज़ से पूछ लिया।अब वे बुजुर्ग थोडा-सा झुंझलाते हुए बोले ,’अब आपको कुछ पता ही नहीं है,उधर कोने में चलिए,हम सब समझाते है।’

कोने में हमको ले जाकर नेता जी ने दार्शनिक अंदाज़ में समझाया,’भई,चिंतन-शिविर का उद्देश्य यही तो था।वहां हम सबको एक स्वर से यही फैसला लेना था कि युवराज की ताजपोशी का समय आ गया है।सबने इन तीन दिनों के मंथन के बाद यह अमृत निकाला है और अब इस अमृत-सन्देश को पूरे देश में फैलाना है।’हमारी जिज्ञासा अभी शांत नहीं हुई थी।हमने कहा,’पर उनको तो उपाध्यक्ष बनाया गया है,जबकि इसके पहले परंपरा रही है कि पार्टी का अध्यक्ष ही देश की कमान संभालता रहा है, इसका क्या आशय है?’उन्होंने फुसफुसाते हुए अन्दर की बात बताई,’दर-असल,अभी हम युवराज को एक नंबर पर रखकर कोई जोखिम नहीं लेना चाहते हैं।उनके पिछले प्रदर्शन को देखते हुए यह सेफ-गेम खेला जा रहा है।फिलहाल तो हम चिंतन-शिविर से निकले अमृत को ही भरपूर चखने का प्रयास करेंगे।’अब हमने उनसे आखिरी सवाल किया,’पर चिंतन-शिविर में तो देश की चिंताओं पर विचार करने की योजना थी,उस पर मैडम के क्या विचार रहे ? नेता जी ने तुरंत जेब से एक प्रेस-विज्ञप्ति निकाली और हम उसे वहीँ पढने लगे।उसमें मैडम के हवाले से साफ़-साफ़ हर्फों में लिखा था:


‘हम देश में बढ़ते हुए बलात्कार और भ्रष्टाचार से व पूरी तरह चिंतित हैं।हमारे रहते यह चिंता किसी और को नहीं करनी है।हम हालात सुधरने तक लगातार इस बारे में चिंतन करते रहेंगे।आम आदमी केवल यह चिंता करे कि उसके पास हमारे अलावा क्या विकल्प है ?इस चिंतन-शिविर का उद्देश्य है कि हम देश की समस्याओं पर औपचारिक रूप से चिंतित हैं।हमें महिलाओं के शोषण और अत्याचार पर लगातार चिंता है ।आम आदमी के बारे में सोचने का हमारा अधिकार है,इसलिए हमने अपना हाथ उसी के पास रखा हुआ है।इस बात से हमें सबसे ज्यादा फायदा यह है कि जब भी देश के विकास के लिए ज़रूरी होगा,हम इसका प्रबंध कर लेंगे।इसके लिए कई कंपनियों को अधिकृत कर दिया गया है।

हम इस शिविर के माध्यम से देश को एक नया नेता भी दे रहे हैं।यह हमारे परिवार की ऐतिहासिक परंपरा रही है कि देश-सेवा के लिए हमने सब-कुछ दांव पर लगाया है।उसी परिपाटी को आगे बढ़ाते हुए हमने युवराज को आगे किया है,अब आप लोग संभाल लेना।’

हमने वह प्रेस-विज्ञप्ति जेब में रख ली क्योंकि तब तक काँधे पर लदे हुए युवराज को ज़मीन पर रख दिया गया था।पार्श्व में संगीत बज रहा था,'हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के...'।


जनसंदेश टाइम्स में भी २३/०१/२०१३ को प्रकशित

मंगलवार, 22 जनवरी 2013

युवराज का पहला साक्षात्कार !

नई दुनिया में २२/०१/२०१३ को !

दिल्ली में बर्फीली हवाएं चल रही थीं,पर जयपुर से चिंतन की गर्मी पाकर लौटे युवराज प्रसन्न-चित्त लग रहे थे।अमूमन वे किसी पत्रकार को सीधे मुंह नहीं लगाते क्योंकि इससे सलमान खुर्शीद बन जाने की आशंका रहती है । वैसे भी पत्रकारों की प्रेस-वार्ता बड़ी खतरनाक हो गई है,इसमें जूते-चप्पल से लेकर पानी पीने तक की गुंजाइश निकल आती है। हमारी बात और है, हम उनके मुंहलगे जो ठहरे ,सो चिंतन-शिविर की ख़ास उपलब्धियों को आम जनता तक पहुँचाने के लिए हमें बुलावा मिल गया ।

हमने उनसे पहला और सीधा सवाल यही किया कि अब आप पहले से अधिक आत्म-विश्वास महसूस कर रहे हैं ? वे चहकते हुए बोले,’यह सब हमारे कार्यकर्ताओं का किया - धरा है। हमारी पिछली नाकामियों की जानकारी के बावजूद,उनको लगता है कि हमारे अन्दर कहीं कुछ बचा हुआ है जो उन सबको बचा लेगा ।बस,यही सोचकर मेरे अन्दर भी आत्म-विश्वास लौट आया है ’। 'आपको अब पार्टी में उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंप दी गई है,इस पर आपका क्या कहना है ?'युवराज जरा सा भावुक होते हुए बोले,’मेरी माँ ने मुझे रोते हुए यह जिम्मेदारी दी है और मैं भी उनके गले लिपटकर खूब रोया हूँ । मैंने अपनी कमजोरी को ज़ाहिर न करते हुए उन्हें भरोसा दिलाया है कि सत्ता के जहर को हम पियेंगे भी और जीकर भी दिखायेंगे.इसके बाद उन्होंने कहा,बेटा,अब यह पूरा देश तुम्हारे हवाले है । तुम्हें आम आदमी से चिंता करने की कोई ज़रुरत नहीं है क्योंकि हमने पहले से ही ऐसी व्यवस्था कर दी है कि वो बस अपनी चिंता में ही डूबा रहेगा।'

इतना कहकर युवराज ने रूमाल निकालकर हमें पेश किया और हमने सूखी हुई आँखों पर ही उसे फेर लिया।थोड़ी निस्तब्धता के बाद हमने अपने कर्तव्य को तरजीह देते हुए इंटरव्यू का अगला सवाल किया,’अब आपकी प्राथमिकतायें क्या होंगी?’
युवराज ने शून्य की तरफ निहारते हुए और अपने दायें हाथ को चलायमान करते हुए कहा,’मैं अब आम आदमी के लिए काम करूंगा और इसी पर ध्यान दूंगा।विपक्ष से हमें तनिक भी डर नहीं है क्योंकि उसकी प्राथमिकताओं में देश की समस्याओं से कहीं अधिक खुद की हैं।आम आदमी पर ध्यान देना इसलिए भी आवश्यक हो गया है कि अब वह गूंगा नहीं रहा,बोलने लगा है.यहाँ तक कि पिछले दिनों एक पार्टी भी बन गई है।हम चाहेंगे कि जो सौ पैसे हम आम आदमी तक भेजते हैं,उसमें निन्यानवे पैसे वहां तक पहुंचें, इससे वह नियान्न्वे के चक्कर में ही उलझ कर रह जायेगा और हम आसानी से अपना कार्यकाल पूरा कर लेंगे ।’पर आपने एक पैसा क्यों बचा लिया?’हमने बीच में ही टोंका ।

वे हमें लगभग अन्दर की बात बताते हुए बोले,’भई !अब कम-से कम एक पैसा तो हम अपने कार्यकर्ताओं के लिए रखेंगे,नहीं तो पार्टी का काम कैसे चलेगा ?’पर एक पैसे से क्या होगा ?हमने अभी भी बात नहीं समझी थी ।वे अब फुसफुसाते हुए बोले,’वैसे तो वो निन्यानवे पैसे भी कौन-सा आम आदमी संभाल पायेगा ?वो उसके पास कागजी रूप से ही पहुंचेगा और वह इसे अपने पास रख भी नहीं पायेगा ।हमारे प्रबंधक दूसरे तरीकों से उस पैसे को अपनी अर्थ-व्यवस्था में ही खींच लायेंगे ।’
तबतक मैडम की आवाज़ सुनाई दी,’बेटा,अब सो जाओ ।बाकी बातें अगले चुनावों के बाद करना और हाँ,उस पत्रकार से अपना रूमाल ज़रूर वापस ले लेना,आगे काम आएगा ’। इतना सुनते ही हम बाहर आ गए।



बुधवार, 16 जनवरी 2013

कुम्भ-नहान और नेताजी !



राष्ट्रीयसहारा में २२/०१/२०१३ को नैशनल दुनिया में १७/०१/२०१३ को !
१६/०१/२०१३ को जनसन्देश में...


खेत-खलिहान से लेकर अख़बारों और बुद्धू बक्से में कुम्भ-नहान की चर्चा सुनकर हमारे मन में भी ललक जाग उठी।भारी संख्या में गठरी उठाए हुए लोग प्रयाग की ओर प्रस्थान कर रहे थे।बचपन में तुलसी बाबा की रची हुई चौपाई,’माघ मकरगत रवि जब होई,तीरथपतिहिं आव सब कोई’बार-बार मन में कौंध रही थी।सोचा,रहती जिन्दगी संगम-स्नान का पुण्य हम भी उठा लें।मन में यह भी विचार आया कि हो सकता है,भूल-चूक से हमसे कोई अपराध हो गया हो और हम पापी होकर ही निकल लें तो मुक्ति का आखिरी अवसर भी हाथ से चला जायेगा।यही सोचकर हम मेड़ई काका के पस पहुँच गए।

काका अपने खेत में पानी लगाये हुए थे।हम आवाज़ लगाये तो उन्होंने कहा कि बच्चा,वहीँ  रुको,एक घवा कट गया है,उसे बांधकर हम बस आ रहे हैं।थोड़ी देर में ही वे मिट्टी और पानी से लथपथ हमारे सामने थे।हमने बिना किसी भूमिका के प्रस्ताव दिया कि काका,कुम्भ-नहान के लिए हम जा रहे हैं,अगर मन हो तो अपनी गठरी भी तैयार कर लो। काका ने बड़े ही शांत-स्वर से उत्तर दिया,’बच्चा, आप हो आओ और हमारे लिए संगम का थोडा जल ले आना,हम उसी से नहाकर पुन्न कम लेंगे।यह नहर पूरे एक महीने बाद आया है,अगर सिंचाई न किये तो फसल चौपट हो जाएगी।’हम उनकी बात समझकर घर लौट आये और अपनी गठरी उठाकर रेल पकड़कर सीधे प्रयाग पहुँच गए।

हम स्टेशन से संगम-तट तक पैदल ही पहुंचे।रास्ते में इतनी भीड़ देखकर हमें थकावट का तनिक भी अहसास नहीं हुआ।हमने थोड़ी-सी जगह पाकर अपनी गठरी रख दी और संगम के ठंडे जल में बिना किसी हिचक के कूद गये।हमने घर के सदस्यों के नाम ले-लेकर डुबकी लगानी शुरू की और जब लगा कि अपन एकदम निष्पाप हो हाय हैं तो बाहर निकल आया।हम अपनी गठरी से कपडे निकाल ही रहे थे कि सामने अचानक नेता जी दिखाई दिए। वह अपने बाल-बच्चों सहित आये हुए थे।उन्होंने भी हमें देख लिया और सीधे हमारे पास ही चले आये।हमने विस्मित होते हुए पूछा कि नेता जी,आप यहाँ? यह स्नान-कर्म तो आम आदमियों के लिए है क्योंकि वे ही अपने कर्मों को लेकर इतना परेशान रहते हैं।जो भी पाप जैसा कुछ होता है,यही लोग करते हैं।आप तो सरकार हैं,पुण्यात्मा हैं,आपको ऐसी क्या ज़रुरत आ पड़ी ?

नेता जी ने तनिक धीमे सुर में बोलते हुए कहा,’देखिये हमारे अपने संचित पाप नहीं हैं और न ही हम उनसे मुक्ति के लिए आये हैं।आम आदमी गठरी लिए हुए है और हम बिना ऐसी गठरी के आये हैं ।ज़ाहिर है कि हम पापों की गठरी नहीं बनाते।ये तो विरोधी लोगों द्वारा कहे-सुने पर आधारित आरोप हैं जिनको किसी छोटी-मोटी गठरी में बांधकर यहाँ नहीं लाया जा सकता है।हम पूरे परिवार सहित यहाँ आये हैं क्योंकि ऐसे झूठे-मूठे आरोप हमारे भाई-भतीजों तक भी लोग लगा देते हैं।पिछले पांच सालों में विरोधियों ने आरोपों की ऐसी झड़ी लगा दी है कि अब तो हमको भी लगता है कि इन संचित पापों को इसी कुम्भ में निपटा दिया जाये।हम इसलिए भी ऐसा चाहते हैं ताकि अगले चुनाव में हम बिलकुल पाक-साफ़ होकर आम आदमी के पास जाएँ।’

हमने नेता जी को उनके इस सफाई-अभियान में सफल होने की कामना दी और एक छोटी-सी बोतल में मेड़ई काका के लिए पवित्र जल लेकर कुम्भ मेले से तुरत बाहर निकल आये। 


मंगलवार, 15 जनवरी 2013

सब कुछ नए साल में होगा !

अपन बिलकुल नई सोच और नए ज़माने के हैं,इसलिए नया कुछ भी हो ,अपन को खूब जंचता है।पुराने लोग,पुरानी चीज़ें किसे अच्छी लगती हैं ? नया जमाना इतनी खूबसूरती से हर जगह अपनी घुसपैठ करता जा रहा है कि पुरानों का पुरसाहाल है।अब तो पुराने लोग वृद्धाश्रम या पुरानी कोठरी में ही मिलते हैं और पुरानी चीज़ें कबाड़ी के यहाँ ।हम इसी परम्परा के नए निर्वाहक हैं और इसीलिए नए साल के आने का इंतज़ार हमें सबसे अधिक रहता है।क्या है कि जिन बातों से हम आसानी से पीछा छुटाना चाहते हैं,नए साल की सम्भावना उसे आसान बना देती है।नए साल के आने की प्रक्रिया दो-तीन महीने पहले से ही सक्रिय हो जाती है।

हमको नए साल की खुमारी ने घर के हालात से कई बार उबारा है।श्रीमती जी की सिलसिलेवार फरमाइशों को हम बड़ी चतुराई से नए साल की फेहरिस्त में जोड़ देते हैं।वे पीछे वाले कमरे में लकड़ी का काम करवाने को कहती हैं या आगरे का ताजमहल देखने की बात,हम बस इतना कह देते हैं कि थोड़ा सा रुक जाओ ,बस नया साल आने वाला है,हम सारी ख्वाहिशें पूरी कर देंगे।बच्चे पिछले कई सालों से गाड़ी लेने की माँग कर रहे हैं और हम उन्हें हर बार नए मॉडल और नए साल का झाँसा दे देते हैं।अब फ़िर से यह माँग ज़ोर पकड़ रही है और मैंने फ़िर उन्हें नए साल का झुनझुना पकड़ा दिया है।इसलिए मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि नया साल हमारे लिए कई आफतों का निदान करने वाला होता है।

अब हमारे नेताजी को ही देख लीजिए।हम लोग इलाके की समस्याएं लेकर जब भी उनके पास जाते हैं तो वे भरपूर आत्मविश्वास और अपनेपन से सारे काम नए साल में करने का वचन हमें दे देते हैं।वे नाली,सड़क,पानी,बिजली सभी पर इतना तर्कपूर्ण आश्वासन देते हैं कि उनकी बात पर भरोसा न करने का कोई कारण नहीं दिखता है।अभी ज़्यादा दिन नहीं हुए जब हम उनसे मिले थे तो उन्होंने हमें ईमानदारी से बताया कि देखो,नया साल आने आ रहा है।इस साल का सारा बजट तो ठिकाने लग गया है।हम भी इसी इंतज़ार में हैं कि वह कितनी जल्दी आए और हम खजाने से नया बजट निकाल सकें।नेताजी के लिए नया साल बहुत से वादों को आगे सरकाने के काम आता है।अव्वल तो नये साल तक मोहलत मिल जाती है,फ़िर साल के आने पर वे दो-तीन महीने तो यूँ ही टाल देते हैं कि अभी तो शुरू ही हुआ है।तब तक कई काम हिल्ले लग जाते हैं और भाई-लोग कह-सुन कर थक लेते हैं।

हम तो कहते हैं कि घर में हो या बाहर,नयेपन का कोई जोड़ ही नहीं है।हमारे पड़ोसी निगम के कार्यालय में बाबू हैं।दिवाली से पहले उनके चेहरे पे रौनक रहती है पर जैसे ही दिवाली की रोशनी बुझती है,वे भी फक्क पड़ जाते हैं।हमने उनकी उदासी का सबब पूछा तो बोले, ‘यार यह नया साल भी कितनी देर से आता है।दिवाली के बाद से ही हमारी हालत खराब है।बच्चों की कई डिमांड अभी भी अधूरी हैं।अब तो नया साल आए,तभी कुछ हो सकता है।’ हमको लगता है कि नए साल का जादू ही ऐसा है कि उसके आते ही सबकी सारी समस्याएं छू-मंतर हो जाती है।

हमने तो नए साल के दम पर कई काम छोड़ रखे हैं।नया साल आता है तो नए विचार आते हैं।सूखे ह्रदय में भी कल्पनाओं का समंदर हिलोरें मारता है।कवि गिरिजा कुमार माथुर भी कहते हैं कि ‘छाया मत छूना मन, दुःख होगा दूना’,इसलिए हम तो भविष्य और कल्पना-लोक के घोड़ों में ही सवारी करने में यकीन करते हैं।नया साल यह सब अपने आने से पहले ही ले आता है।हम हवा में उड़ने लगते हैं।नए साल में नया सूरज होगा,दिन अलग तरह से दिखेगा और हमारे आस-पास का मंज़र भी नया होगा।जिस सड़क पर चलने में ट्रेक्टर भी जंग लड़ता है,वह भी नए साल में,बकौल एक नेता,किसी अभिनेत्री के गाल जैसी चिकनी और रपटीली हो जाती है ।

नए साल के आने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि घर से लेकर बाज़ार तक,समाज से लेकर राजनीति तक ,सब जगह ढेर सारे सपने पैदा होते हैं,भले ही इनमें से अधिकांश की भ्रूण-हत्या हो जाती हो।नए साल के आगमन तक सब अच्छा-अच्छा ही दिखता है,ठीक उसी तरह जैसे सावन के अंधे को हरा-ही हरा दिखाई देता है।इसलिए साल के शुरुआत में ही सब कुछ अच्छा सोच लेने का लाभ यह है कि पूरे साल आप पर बुरी मनोवृत्तियाँ हावी नहीं होती हैं।इस बात का फायदा घर,समाज और राजनीति अर्थात हर सेक्टर में वर्ष-पर्यंत परिलक्षित होता है।यहाँ तक कि संपादक जी की भी हिदायत है कि भाई,कुछ नया लिखिए।अब हम नयेपन की इस खुमारी से उबर पायें,तभी तो कुछ लिख पाएँगे।


 'व्यंग्योदय' में जनवरी 2013 के अंक में प्रकाशित


सोमवार, 14 जनवरी 2013

भक्त बनो या भुगतो !

जनवाणी में १८/०१/२०१३ को

१४/०१/२०१३ को 'मिलाप' में


प्यारे भक्तों
आप सब लोग बड़े खुशनसीब हैं जो हमारे पंडाल के अंदर हैं।यहाँ आते ही हमारा प्रभा-मंडल आप सबकी रक्षा अपने आप करने लगता है।आप सबको दिल्ली की लड़की के साथ हुए अत्याचार से सबक लेना होगा।उसकी सबसे बड़ी कमी यही रही कि उसने समय रहते हमसे दीक्षा नहीं ली,नहीं तो ऐसा देशव्यापी हाहाकार मचता ही नहीं।हम इसीलिए तो पूजे जाते हैं कि हमारे पास आकर पुरुष ही नहीं ,महिलाएं भी निर्भया हो जाती हैं।हमारी थोड़ी-सी दक्षिणा को लेकर मीडिया और कुछ अति-बुद्धिजीवी लोग हो-हल्ला मचाते रहे हैं,पर हाल की घटना ने दिखा दिया है कि थोड़ी जेब ढीली करने पर हम कितना बड़ा अभयदान दे देते हैं।

वह नादान लड़की अगर हमारी दीक्षा लिए हुए होती तो ,जितने भी दरिंदे वहाँ शराब पिए हुए थे,उनका नशा हिरन हो जाता।अगर फ़िर भी शराब ज़ोर मारती तो बस वो एक दरिंदे का हाथ पकड़कर अपने खुले हुए मुँह से ज़रा मीठे सुर में भइया कह देती ,यकीन मानिये,वह उस लड़की के पैरों पर गिर पड़ता और बाकियों को भी उसका बाप या भाई बना देता।अगर वह हमसे गुरु-मन्त्र लिए होती तो उसके दोस्त की भी मदद की उसे ज़रूरत नहीं पड़ती।अव्वल तो वह जब उस ऑटोवाले से कहती कि भइया ,हमें हमारे घर तक छोड़ दो,तो वह मना ही नहीं कर सकता था।इसके लिए ऑटोवाले को हमसे दीक्षित होना ज़रूरी नहीं है क्योंकि यह मंतर केवल अबलाओं और असहायों पर ही काम करता है।

हम तो बहुत पहले से सरकार से यह कहते आ रहे हैं कि वह सभी लोगों को हमारे प्रवचन सुनने का प्रबंध करे,ताकि उनका हर प्रकार की समस्याओं से बचाव हो सके।नेता और अपराधी इस भोली और मूरख जनता से ज़्यादा समझदार हैं,जिन्होंने हमसे लंबी अवधि का पैकेज ले रखा है।वही नेता और अपराधी आज कष्ट भोग रहा है जो हमारी शरण में नहीं आया है।हमारे मंतर का असर है कि हर नेता व्यभिचार या भ्रष्टाचार से अब तक पूरी तरह बचा हुआ है।आप लोग रिकॉर्ड उठाकर देख लीजिए, व्यभिचारी और भ्रष्टाचारी चिल्ल-पों के बावजूद, सभी नेता और बाबा ,अपना-अपना तम्बू गाड़े हुए सुरक्षित हैं।

आज हम आपको हम यह नुस्खा भी बता रहे हैं कि जो लोग भ्रष्टाचार से निपटने के लिए लोकपाल-लोकपाल चिल्ला रहे हैं,उनको केवल हमारा गुरुमंत्र याद रखना होगा।एक बार की थोड़ी-सी धनराशि में यह गुरुमंत्र हमारे सभी भक्तों के लिए सभी पंडालों में उपलब्ध है।इसे ग्रहणकर कोई भी भक्त जब किसी कार्यालय में जाए तो बाबू का हाथ पकड़ कर भइया कह दे,बस इत्ते से ही उसका हाथ गरम हो जायेगा और उसका काम तुरत हो जायेगा।इसी तरह जब किसी भक्त का पुलिसवाले से साबका पड़े तो बस उसको  उसे भइया कहने की ज़रूरत है।इतना कहते ही वह उसके गले पड़ जायेगा,हम इसकी गारंटी देते हैं।इस तरह हमसे दीक्षित और संस्कारित भक्त भ्रष्टाचार और व्यभिचार से मुक्त रहेगा।

हम बाबा लोग तो इस समाज की सेवा करने का संकल्प लिए हुए हैं और हम आप सबको आश्वस्त करते हैं कि इस काम में हम कोई कोताही नहीं बरतेंगे।अब इस देश को नेताओं और बाबाओं के ही संकल्पों की ज़रूरत है।जब नेताओं पर कोई मुसीबत आती है तो हम अपना मंतर पढ़ देते हैं और मीडिया हमारी ओर भागता है,इसी तरह जब हमारी मुसीबत आती है तो नेता कुछ कर देते हैं।इस तरह हमारा देशहित में हमारा आपसी मेलजोल चलता रहता है।बस,जय बोलो राम जी की ! 

 DLA में २३/०१/२०१३ को प्रकाशित 

बुधवार, 9 जनवरी 2013

संघ जी और उनकी मर्यादा-संस्कृति

०९/०१/२०१३ जनवाणी में...

 
पूरा देश कड़ाके की सरदी से दो-चार था पर नागपुर अचानक गरम हो उठा।हमने भी भीषण ठण्ड से निजात पाने के लिए वहाँ का रुख किया ताकि हमें भी कुछ गर्माहट का अहसास हो सके।वैसे तो नागपुर अपने मीठे और गोल संतरों के लिए जाना जाता है पर हाल की जो गर्माहट आई थी ,उसके केन्द्र में नागपुर का संघ-मुख्यालय था।इसलिए हम इस ठण्ड के मौसम में भी वहाँ के लिए चल दिए और स्टेशन से रिक्शा पकड़कर सीधे वहीँ पहुँच गए।
हमने देखा,मुख्यालय पर भारी भीड़ जमा थी।अंदर घुसते ही हमने अजीब-सी गर्माहट का अनुभव किया ।लोग मुख्यालय के प्रांगण में ही दरी पर बैठे हुए बिछे जा रहे थे।सामने आसन पर संघ जी विराजमान थे और भागवत-पाठ हो रहा था।संघ जी बड़े जोश में दिख रहे थे।मर्यादा जी और संस्कृति जी उनके अगल-बगल नतमस्तक-सी खड़ी हुई थीं।ऐसा लगता था कि मानो उनसे कोई बड़ा अपराध हो गया हो। हम भी वहीँ पास में,एक कोने में जाकर टिक गए और ध्यान से संघ जी की ओजपूर्ण वाणी का रसपान करने लगे।वे कहे जा रहे थे ‘बहुत कठिन समय आ गया है।हम अभी नहीं जागे ,तो हमारा अस्तित्व ही नहीं बचेगा।आज हमारी संस्कृति खतरे में है क्योंकि स्त्री ने मर्यादा का साथ छोड़ दिया है।सबको समझना होगा कि उसके मर्यादाहीन होने से पूरा परिवार और समाज नष्ट हो जायेगा।इसके बाद देश भी नहीं बचेगा ।’
तभी संस्कृति जी और मर्यादा जी ने सुबकते हुए कहा ‘प्रभु ,हम दोनों आपकी शरण में हैं,पर ये ‘इंडिया’ वाले हमारा नोटिस ही नहीं लेते।अगर ‘भारत’ पर भी यह बुखार चढ़ गया तो फ़िर हम कहाँ जायेंगे ?अब हमें आप पर और आपके कारिंदों पर ही भरोसा है,आप लोग ही हमें यहाँ बचा सकते हैं’।संघ जी ने दुगुने उत्साह से बोलना शुरू किया,’हम पश्चिमी मॉडल को अपनाने की वज़ह से ये दिन देख रहे हैं।वहाँ पर ‘लिवइन’ संबंधों को मान्यता दी हुई है,’इंडिया’ वाले उसे भी यहाँ लागू करने को उतावले हैं।’भारत’ में रहने वाले हमारे कार्यकर्त्ता,बिना किसी कानूनी बंधन के,अपना मनोरंजन करते रहे हैं और इस पर कोई चिल्ल-पों भी नहीं सुनाई देती।यह सब मर्यादा के चलते होता है जिससे कभी कोई बात बाहर नहीं आती ।इस वज़ह से वहाँ कोई मोमबत्ती-मार्च भी नहीं होता ,जबकि ‘इंडिया’ में लोग थोड़ी-सी छेड़छाड़ पर तख्ती-बैनर उठाकर हाय-हाय करने लगते हैं।यह अच्छी बात नहीं है।इससे हमारी संस्कृति की प्रतिष्ठा गिर रही है।’
तभी हमें थोड़ा मौका मिला और हमने संघ जी से अनुरोध किया कि वे हमारे कुछ सवालों का जवाब दे दें तो मीडिया में उनकी धूमिल की जा रही छवि को चमकाया जा सके।वे इसके लिए सहर्ष तैयार हो गए।हमने पहला सवाल किया,’आप इंडिया में ऐसे अपराध ज़्यादा होने की बात कर रहे हैं,जबकि यहीं पर ज़्यादा पढ़े-लिखे लोग रहते हैं।राजधानी में तो नेता और संसद भवन भी है तो इसके अपराधी कौन हैं ?’उन्होंने बिना किसी लाग-लपेट के ज़वाब दिया ,देखिए आप यह क्यों भूल रहे हैं कि इण्डिया में ही ‘कैंडिल मार्च’ होता है।राजधानी में जंतर-मंतर और इंडिया-गेट भी हैं,जहाँ ऐसे अपराधों के विरोध को व्यक्त किया जा सकता है।क्या गाँव में ऐसे विरोध-स्थल बनाये गए हैं ? ज़ाहिर है कि सरकार भी जानती है कि वहाँ के लोग निर्दोष हैं,कुछ नहीं करते।
अब हमने दूसरा सवाल किया कि आपने स्त्रियों को ‘लक्ष्मण-रेखा’ न लाँघने व मर्यादा में रहने का जो फरमान दिया है,उसकी वास्तविक वज़ह क्या है ? वे भड़ककर बोले,’हमारी निगरानी में शासित भारत में देख लीजिए,स्त्री क्या,दूसरे धर्म के लोग भी मर्यादा में रहते हैं।अगर ऐसे लोगों को छुट्टा छोड़ दिया जाये तो समाज और संस्कृति नष्ट हो जायेगी।हमने मर्यादा और संस्कृति को लागू करने के लिए बकायदा नियम बना रखे हैं,जो हमारे स्वयंसेवकों के अलावा सब पर लागू होते हैं।एक हम ही हैं जो देशभक्ति का प्रमाण पत्र वितरित करते हैं।’उसी बीच हमने देखा कि उनके दरबार में कोई मुख्यमंत्री आ गए और संघ जी उनके स्वागत में लग गए।मर्यादा जी व संस्कृति जी वहीँ कोने में दुबक कर खड़ी हो गईं और हम भी बाहर निकल आए।


०९/०१/२०१३ को जन संदेश टाइम्स में....
 

बुधवार, 2 जनवरी 2013

भागो भाई,मोदी आया,मोदी आया !

डीएलए में १४/०१/२०१३ को

 
क़यामत की रात थी वह।बहुत दिनों से पढ़ते-सुनते आ रहे थे कि बड़ी सटीक भविष्यवाणी है,कभी खाली  नहीं गई है,इस वज़ह से दिल में बड़ी बेचैनी थी।इस बीच बुरा यह हुआ कि गुजरात और हिमाचल के चुनाव भी निपट चुके थे और उनके संभावित परिणामों से डर-सा फील कर रहा था।गुजरात को लेकर चुनावी-पंडित ढोल बजा-बजाकर चिल्ला रहे थे कि मोदी फ़िर से आ रहे हैं।बहुतों की चिंता थी कि अगर वाकई में आ गए तो क्या होगा ? इस देश का सेकुलर ढांचा कैसे बचेगा ?इस तरह से क़यामत के डर से ज़्यादा मीडिया में मोदी-डर हावी हो रहा था।इस कारण हमारी खुद की हालत खस्ता थी।

इधर जैसे ही यह किलियर हो गया कि गुजरात फ़िर से मोदी के पास आ गया है,हम अंदर तक हिल गये ।क़यामत से भी बड़े डर से निपटने का हमें एक उपाय सूझा।खयाल आया कि अगर मायावी कलेंडर की भविष्यवाणी सही निकली तो कम से कम मोदी-डर से तो छुटकारा मिल जायेगा।प्रलय में तो हम सब एक साथ इस दुनिया से उठ जायेंगे,पर यदि ऐसा न हुआ तो पूरी ज़िंदगी तिल-तिलकर मरेंगे।इस उहापोह में बिस्तर में पड़ने के बजाय हम चुनाव बाद के हालात जानने भाजपा और कांग्रेस के दफ्तरों की ओर निकल लिए।अंदर की खबर मिल सके, इसलिए ठण्ड के बहाने हमने अपने को तकरीबन ढक लिया था।

हमने सोचा कि मोदी के बारे में सबसे सटीक आकलन भाजपा मुख्यालय से ही मिलेगा।आख़िरकार संगठन के  लोग चुनाव जीत पाते हों या नहीं पर उनकी सरकार का चेहरा कौन बनेगा,इसका निर्धारण यही लोग करते हैं।हम जैसे ही दफ्तर के पास पहुँचे ,खटका-सा लगा।ऐसा लग ही नहीं रहा था कि गुजरात से जीतने वाले मोदी इसी पार्टी से ताल्लुक रखते हैं।बस तीन-चार लोग सोफे पर औंधे पड़े थे।हमने थोड़ा दूर खड़े होकर उन सबकी फुसफुसाहट महसूस की।उनमें से एक आकृति कह रही थी कि इसने हमारा सारा प्लान चौपट कर दिया है।अरे ,कोई तीन बार भी चुनाव जीतता है भला ?मेरे लिए प्रधानमंत्री बनने का आखिरी मौका था,पर अब वो भी ध्वस्त हो गया।केशूभाई और कांग्रेस से हमें ऐसी उम्मीद नहीं थी।अब अपने ही बनाये चेले को अपना गुरु बनाना मेरे लिए कितना असहज होगा।तभी दूसरी आकृति बोली,’वैसे अभी आप नाउम्मीद न हों।हमारे पास अंतिम हथियार के लिए एनडीए का मंच है।हमें नितीश कुमार से बहुत उम्मीदें हैं।वे मोदी के लिए सबसे बड़े अडंगेबाज सिद्ध होंगे।हम खुलकर मोदी के खिलाफ नहीं बोलेंगे क्योंकि बाद में वही हमें राज्यसभा में पहुँचा सकते हैं।’

उनकी बातें सुनकर हमें लगा कि ये तो हमसे भी ज़्यादा डरे हुए हैं और ऐसे में हमें बेफिक्र रहना चाहिए।आगे की पड़ताल के लिए अब हम कांग्रेस मुख्यालय की तरफ़ बढ़ गए।वहाँ उम्मीद के विपरीत जश्न-सा माहौल था।हम एक खम्भे के किनारे खड़े हो गए और कान में बंधे मफलर को थोड़ा ढीला कर दिया।एक प्रवक्ता जोश में कह रहे थे कि हमने हिमाचल तो जीता ही,गुजरात में भी परिणाम हमारे मुताबिक रहा।हम चाहते तो वहाँ जीत जाते पर अगले लोकसभा के चुनाव में हमारे लिए मुश्किल हो जाती।अब दूसरे प्रवक्ता ने इसका राज जानना चाहा तो उसने जोश में अंदर की बात बाहर उगल दी।वह कहे जा रहा था, ‘भई अगला चुनाव हम इसी मोदी-डर से जीतेंगे।सोचिये,अगर मोदी हार जाते तो हम मतदाताओं को क्या कहकर अपने पाले में लाते ? इसलिए हमारे लिए यह क़यामत की नहीं जश्न की रात है।अब कार्यकर्ताओं से कहिये कि वे बाकी बचे समय में मोदी-डर को खूब परवान चढ़ायें।इतना सुनते ही हमें उस भीषण ठण्ड में पसीना आ गया और हम दबे पाँव घर लौट आए !

 
०२/०१/२०१३ को 'जनसंदेश' में....

अनुभवी अंतरात्मा का रहस्योद्घाटन

एक बड़े मैदान में बड़ा - सा तंबू तना था।लोग क़तार लगाए खड़े थे।कुछ बड़ा हो रहा है , यह सोचकर हमने तंबू में घुसने की को...