बुधवार, 28 नवंबर 2012

आम आदमी अब आम ही रहेगा !

३०/११/२०१२ को नैशनल दुनिया में...
'जनसंदेश टाइम्स' में २८/११/२०१२ को प्रकाशित
 

आज़ादी के समय से ही देश में आम आदमी चर्चा में रहा है। गाँधी जी ने स्वयं ज़ोर देकर कहा था कि हमारी आज़ादी तभी सार्थक होगी जब देश की हर योजना अंतिम व्यक्ति तक पहुँचेगी,उसके केन्द्र में होगी। गाँधी जी का अंतिम व्यक्ति यही आम आदमी था। आज़ादी मिलने के बाद सत्ता तो खास लोगों को मिली और आम आदमी को मिली बस एक उम्मीद। हमारे रहनुमा इसी उम्मीद को परवान चढ़ाने के  काम में तभी से लगे हैं। आज़ादी के बाद बनने वाले सभी विकास-कार्यक्रम और पंचवर्षीय योजनाएं आम आदमी के लिए थीं। हमारे नेताओं ने इस काम को देश-सेवा के चलते बखूबी निपटाया। हर योजना इसी आम आदमी के नाम पर बनने-संवरने लगी। नेता और अधिकारी दोनों पढ़े-लिखे थे सो उन्होंने यह भी पढ़ रखा था कि ‘नाम में क्या रखा है ’ इसलिए उसने हर जगह आम आदमी का नाम तो दिया पर सपने अपने पूरे कर लिए । इस तरह लगभग सभी पार्टियों ने आम आदमी का भरपूर ख्याल रखा और आम आदमी भी अपना नाम पाकर ही खुश रहने लगा।

गाँधी जी द्वारा दिये गए मंतर को राजनेताओं ने भलीभांति समझा और उसका अवमूल्यन नहीं होने दिया। पिछले पैंसठ सालों से आम आदमी का दिखावटी रोष और रहनुमाओं का कोष बढ़ता रहा। एक पार्टी ने तो बकायदा आम आदमी के गिरेबान को अपने हाथ से ही पकड़ लिया और सबको बताया कि इस पर उसी का हक बनता है। आज़ाद हिंदुस्तान में आम आदमी इतने काम का निकला कि पूछिए मत। सब कुछ उसी के नाम पर हो रहा है और इसलिए उसको शिकायत करने या रोने का हक भी नहीं है। जब सब कुछ उसी के द्वारा,उसी के लिए किया जा रहा है तो कैसी शिकायत और किससे गिला ?नेता-अफसर मिलकर ताबड़तोड़ आम आदमी के नाम पर सारा काम खुद कर लेते हैं। इतने पर भी आम आदमी को अगर कोई योजना नहीं मिल पा रही है तो सरकार सब्सिडी देकर उस तक अपनी उपस्थिति अवश्य पहुंचाती है।इस तरह आम आदमी को सब्सिडी के अनुकूल बना दिया गया है ।

आम आदमी अब महज़ नाम नहीं एक उत्तम कोटि का ब्रांड बन गया है । उस पर पूरे देश की अर्थ-व्यवस्था टिकी हुई है,वह अरबों-खरबों के बज़टवाला एक बड़ा उपक्रम हो गया है। ऐसे में दूसरी पार्टियाँ उसके लिए कुछ सोचें,करें इससे अच्छा है कि आम आदमी को ही पार्टी बना दिया जाय,इसी सोच को ध्यान में रखकर देश में एक अलग विकल्प लाया गया है। अब आम आदमी ही पार्टी होगा,वही योजनाएं बनाएगा और उसी तक सारी योजनाएं आएँगी। आम आदमी पार्टी का उद्देश्य यह भी है कि देश के लोग खास बनने का झूठा सपना देखना बंद कर दें,वे सब अधिकारिक रूप से अब आम ही बने रहेंगे। इस पार्टी के बन जाने से अब ऐसे सपनों पर भी लगाम लगेगी जो पिछले पैंसठ सालों से आम आदमी देख रहा है। अब उसे शुरू से ही यह बात स्पष्ट रहेगी कि उसे हमेशा आम ही रहना है। उसे कोई ज़हमत उठाने की ज़रूरत नहीं है,इसलिए आम आदमी ने खास बनना फ़िलहाल मुल्तवी कर दिया है ।

मंगलवार, 27 नवंबर 2012

हम नए ज़माने की पुलिस हैं !

जनवाणी में २९/११/२०१२ को !

२७/११/२०१२ को आई नेक्स्ट में प्रकाशित

 
 

 

हम अंग्रेजों के ज़माने की नहीं नए ज़माने की पुलिस हैं। हमारी सेवा को कई बार भाई लोगों द्वारा सराहा भी गया है। अभी हाल ही में हमने सबसे त्वरित कार्यवाही करने का कीर्तिमान बनाया है। हमने एक शिकायत पर केवल बीस मिनट के अंदर अपराधियों को हवालात में पहुँचाया पर कुछ नासमझ और अति उत्साही लोग हमारी विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहे हैं। इस सम्बन्ध में हम कई बातें स्पष्ट कर देना चाहते हैं।

हमें जब देशभक्त सैनिकों ने बताया कि फेसबुक के द्वारा देश में सांप्रदायिक सौहार्द और राष्ट्रिय एकता को खतरा पैदा होने का अंदेशा है तब हमने इसे गंभीरता से संज्ञान में लिया। वे साथ में दो लड़कियों को उठाकर लाए थे,जिनकी सूरत देखते ही हमें पता लग गया था कि वाकई आजकल आतंकवादियों ने अपने मकसद के लिए लड़कियों का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर शुरू कर दिया है। हम सैनिकों की बात पर भरोसा कर सकते हैं क्योंकि हमारी समझ से पुलिस और सेना ही इस देश की रक्षक है। इसलिए जब भी कोई सैनिक किसी तरह की शिकायत लेकर आता है तो वह अपने लिए नहीं देश के प्रति चिंतित होकर ही आता है। इस पर हमने तुरत कार्यवाही करके उन दोनों को अंदर कर दिया। हम तो कहते हैं कि भला हो उन सैनिकों का,जिन्होंने अपराधियों को हमारे हवाले कर दिया ,नहीं तो ऐसे छोटे-मोटे काम वो स्वयं निपटा देते हैं। इससे पता चलता है कि वे कितने लोकतान्त्रिक और व्यवस्था में भरोसा रखने वाले हैं।

फेसबुक से की गई शिकायत पर हम रुक भी नहीं सकते ,क्योंकि इसका मतलब ही है कि अगर पुलिस बुक करे तो उसे आपको फेस करना ही पड़ेगा। खासकर जब यह मामला आम आदमी से सम्बंधित हो। हम आम आदमी के लिए बने हुए हैं और उसकी सेवा-पानी के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। इसीलिए भ्रष्टाचार और घोटालों पर हम इतना ध्यान भी नहीं देते क्योंकि ये आम आदमी के बजाय नेताओं द्वारा किये जाते हैं। हमने तो इस देश के आम नागरिक की सुध लेने की ही शपथ ली हुई है। इस पर भी कई लोगों को एतराज़ है तो हम क्या कर सकते हैं ?

हमारा तंत्र कितना चौकस रहता है इसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। हमें बाद में पता लगा कि उन सैनिकों ने किसी अस्पताल में तोड़फोड़ की है,इसके लिए हम कुछ नहीं कर सकते थे क्योंकि यह हमारे कार्यक्षेत्र से बाहर का मामला था । इसे संज्ञान में लेने के लिए पीड़ितों को नगर निगम से संपर्क करना चाहिए था ताकि आवागमन में अस्पताल का मलबा गतिरोध न बने और ट्रैफिक सुचारू रूप से गतिमान रहे। अब फेसबुक में करोड़ों यूज़र्स हैं और हमारी संख्या हजारों में है,इसी काम में हमारे आदमी कम पड़ रहे हैं। इसके लिए हमने फौरी तौर पर प्रबंधन कर रखा है। जब भी फेसबुक या अन्य साईट पर आम आदमी कुछ लिखता है तो सैनिक हमारी मदद के लिए उसे थाने तक उठा लाते हैं। विश्वास कीजिये,इसके आगे की प्रक्रिया हमीं निपटाते हैं। इसलिए भविष्य में जब भी आप कुछ अपने दिल की लिखें,कहें तो हमें आपकी तलाश रहेगी और आप भी इस काम में हमारा पूरा सहयोग करें। सैनिकों के आने पर उत्तेजित न हों,थाने आकर अपने कहे से पलट जांय तो हम भी आपको सुरक्षित वापसी का भरोसा देते हैं।

 
 

शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

एक खुलासे से सरकार का मेक-ओवर !


नई दुनिया 23 नवम्‍बर 2012


देश में आए दिन हो रहे खुलासों से प्रेरित होकर सरकार ने सोचा कि उसके द्वारा भी ऐसा कुछ धमाका किया जाए जो माहौल को बदल दे.कई सालों से टू जी,कोयला,निष्क्रियता आदि पारंपरिक आरोपों से  आजिज होकर आखिरकार उसने अपना मन मज़बूत किया और उसे एक हिट-खुलासे की तरह अंजाम दियाअपनी समझ से सरकार ने कसाब को अचानक फाँसी देकर मास्टर-स्ट्रोक मारा है इस तरह छब्बीस ग्यारह के कसाब का हिसाब भी पूरा हो गया । उसके मारे जाने की खबर से जहाँ सब लोग पहली बार इस सरकार से खुश हैं वहीँ कसाब को काटने वाला डेंगू मच्छर बहुत दुखी है ।उसे लगता है कि उसके साथ सरासर धोखा हुआ है।उसे अफ़सोस है कि सरकार ने उसको भी विश्वास में नहीं लिया और उसे  इस बात की जानकारी नहीं दी गई.मच्छर को पूरा यकीन है कि उसके काटे जाने से कसाब बचने की हालत में नहीं रहा होगा और यह जानकर सरकार ने अपनी रणनीति बना ली । इसके लिए पहले  कई तरह की ख़बरें उड़ा दी गईं कि उसे महज़ हल्का बुखार था जिसे ठीक कर दिया गया था।यह सब लोगों को मुख्य मुद्दे से ध्यान भटकाना भर था.डेंगू मच्छर को अपने डंक पर और अतीत के अचूक परफोर्मेंस पर पूरा भरोसा है। उसका मानना है कि कसाब उसके काटे से मरने ही वाला था कि सरकार ने उसे फांसी देकर बैठे-ठाले फ़ोकट का क्रेडिट ले लिया है।

रही सरकार की बात,तो कसाब के बहाने उसको अपना मेक-ओवर करने का अच्छा मौका हाथ आया है।संसद के शीत-सत्र में वह उछल-उछलकर अपनी उपलब्धि बता सकती है।विपक्ष के कई बयानों की बौछार में सरकार कसाब की छतरी लेकर उतर सकती है।ऐसे समय में जब उसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने पर चर्चा हो रही हो तो कसाब को फांसी पर लटकाकर वह जनता को विश्वास दिलाना चाहती है कि वह उस पर अभी भी उम्मीद कायम रखे। उसने यह काम करके यूपीए सरकार की घपलों और घोटालों के बीच ज़ोरदार इकलौती उपलब्धि हासिल की है।इससे संसद के शीतकालीन-सत्र से निपटने में उसे मदद मिलेगी और कुछ राज्यों में होने वाले चुनावों में भी उसे अतिरिक्त ऊर्जा का लाभ मिलेगा।

अब सरकार को मच्छर और आम आदमी के सरोकार से क्या मतलब? इस मामले में आम आदमी की तरह मच्छर भी नासमझ है । जब सालों से चिल्ला रहे आम आदमी की आवाज़ वह नहीं सुन पा रही है तो एक निरे मच्छर की परवाह वह क्यों करेगी ?आम आदमी तो वोट देता है,मच्छर के पास तो वो भी नहीं है ।हाँ,अगर सरकार के मेक-ओवर में किसी का भी योगदान ज़रूरी हुआ तो वह देश-सेवा के नाम पर ज़बरिया ले लेती है और क्रेडिट भी अपने पास रखती है ।अब यह आम आदमी को सोचना है कि वह ऐसी-वैसी कोई हरकत न करे जिससे सरकार की छवि धूमिल हो।अगर सरकार भ्रष्टाचार,घोटाला और अकर्मण्यता के आरोप अपने सर पर लेने को सहर्ष तैयार है तो कसाब की फांसी पर क्रेडिट लेने का हक भी तो उसी का बनता है।

हम तो यूपीए सरकार की इस पाँच-साला उपलब्धि पर लहालोट हैं। मच्छर को भी धीरे-धीरे अपनी औकात पता चल जायेगी।हमें अपनी औकात जानने का रिस्क नहीं लेना है,सो हम तो फिलहाल मुदित हो लेते हैं।



बुधवार, 21 नवंबर 2012

लो जी,हम तो पाक-पाक निकले !

मिलाप हिंदी 23 नवम्‍बर 2012
नैशनल दुनिया में २२/११/२०१२ को !


















२३/११/२०१२ को हरिभूमि में...व २६/११/२०१२ को डीएलए में






21/11/2012 को जनसंदेश में...





सरकार के प्रवक्ता जी बड़े तैश में बयान बाँट रहे थे।सारे पत्रकार पंक्तिबद्ध होकर अपने-अपने हिस्से का बयान उठा रहे थे।बहुत दिनों बाद प्रवक्ता जी के मुर्दनी छाये हुए चेहरे पर रौनक लहक रही थी।पूछने पर पता चला कि जिन ख़बरों के चलते, वे पहले की प्रेस-वार्ताओं में शर्मसार हो चुके थे,अचानक एक खबर से उनके चेहरे की रवानगी लौट आई थी।इसी वज़ह से उनकी मुद्रा अपेक्षाकृत अधिक आक्रामक हो उठी थी।हमें भी उनके अगले वक्तव्य का इंतज़ार था,जिसे पाकर पाठक धन्य-धन्य हो सकें ! प्रवक्ता जी माइक को ही विरोधी दल का समझकर टूटे पड़ रहे थे।जो हमारे पल्ले पड़ा,वो कुछ इस तरह रहा।

'अब सब कुछ देश के सामने साफ़ हो चुका है।इस सफ़ाई में हमारी सरकार पर लगे भ्रष्टाचार और अनाचार के सारे दाग हवा हो गए हैं।विपक्षी दल और विरोधी मुँह दिखाने लायक नहीं बचे हैं।जिस छोटी बात को बड़ी बात कहकर हमारे कई विख्यात माननीयों का अपमान किया गया ,उसकी जवाबदेही इन्हीं पर है ।सरकार के ही रहमोकरम पर चलने वाले कैग ने कितना खराब हिसाब लगाया है,यह बहुत आपत्तिजनक है।उसने घोटाले की जो रकम बीस पैसे की बताई थी,महज़ बारह पैसे की ही निकली।इस आंकड़े से घोटाला जी भी व्यथित हैं।उन्होंने दिन-प्रतिदिन हो रहे अपने अवमूल्यन को लेकर नाराज़गी और असंतोष व्यक्त किया है।सरकार तो हमें ही चलाना आता है और आगे भी हमीं चलाएंगे,पर हमें इस बात की आशंका है कि ऐसी स्थिति में घोटाला जी के नाराज़ होने का असर देश के विकास की संभावनाओं पर पड़ सकता है।

हमने अपनी सरकार के रहते कभी कोई चीज़ छुपकर नहीं की।हम भ्रष्टाचार और घोटालों के मामले में पूरी पारदर्शिता बरतते रहे हैं।इसका जीता-जागता उदाहरण टूजी और कोयला-आवंटन का रहा जिसमें हमारे घटक-दलों की भी सक्रिय हिस्सेदारी रही।अब जब टूजी को लेकर उठ रहे सवालों पर हालिया हुई नीलामी ने सबका मुँह बंद कर दिया है,सरकार आगे के कार्यक्रमों को लेकर बेहद उत्साहित है।हमें बहुत खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि विपक्ष ने बिना कुछ सोचे-समझे घोटाले को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है।इन लोगों को कोई भी काम ढंग से करना नहीं आता है।हमने तो घोटाले में इतनी फिगर दिखा दी है,इनके बस का तो वो भी नहीं है।

हम तो आज विपक्ष से यही सवाल कर रहे हैं कि उन्होंने घोटाले की रकम को लेकर संसद के बाहर और अंदर जीना मुहाल कर दिया था,अब जब मौके पर रकम कम पाई गई है तो इसकी भरपाई कौन करेगा ? इसकी वजह से कई निर्दोष जेल चले गए,उनकी सेवाओं से यह देश वंचित हुआ,उनके परिवारीजनों को सुखोपभोग से दूर रहना पड़ा,इस सबका हिसाब और मुआवजा कौन देगा ? अगर समय रहते विपक्ष ने अपने में सुधार नहीं किया तो फ़िर देश की जनता ही यह मुआवजा भरेगी।अब मीडिया,जनता और आम आदमी की टोपी लगाने वालों को समझ जाना चाहिए कि हमारी सरकार बिलकुल गंगाजल की तरह शुद्ध और पवित्र है।जिन लोगों ने इस पर उँगली उठाई है ,उन्हें अब वह उँगली ही काटकर बहा देनी चाहिए।'

वातावरण में ठण्ड बढ़ रही थी।कोहरे ने भी अपनी चादर पूरी तरह से ओढ़ ली थी,हम समझदारी दिखाते हुए अधूरे बयान के साथ ही वहाँ से विदा हो लिए ! 




बुधवार, 14 नवंबर 2012

महारैली से निकला दीवाली संदेश !

29/11/2012 को डी एल ए में प्रकाशित
जनसंदेश में 14/11/2012 को प्रकाशित

 

उनकी महारैली हो चुकी थी।टीवी और अख़बारों में उनके पर्चा बांचने पर खूब बहस-मुबाहिसे हो रहे थे।कुल मिलाकर लग रहा था कि वे बहुत दिनों से भरे बैठे थे कि कब मौका मिले और वे इस देश को नई दिशा दे सकें ।रैली की खुमारी उतर न जाए इसलिए तुरत-फुरत सारे भक्तों को इकट्ठा कर संवाद-बैठक का आयोजन किया गया ।पहले महारैली और फ़िर अपनी बैठकी में उन्होंने अपने उद्बोधन से बता दिया कि उनका वाचिक-अस्तित्व भी है।महारैली में मैं भी जाने का इच्छुक था पर बाहर से ही बड़ी तादाद में दर्शनार्थियों के आ जाने से सड़क के ट्रैफिक ने हमें आगे बढ़ने ही नहीं दिया।इसलिए संवाद-बैठक में ही उनसे मिलना तय किया ।यह एक ऐतिहासिक बैठक थी,जिसके माध्यम से देश को नई दिशा मिलने वाली थी ।

व्यक्तिगत रूप से मैं उनके महारैली–चिंतन से बहुत प्रभावित हुआ था और देश पर इसके गंभीर प्रभाव और उनके आविर्भाव को खुल के समझना चाहता था।इसलिए बिना समय गँवाए उनके गोपनीय-स्थल की ओर हम रवाना हो गए । जल्द ही हम उनके ठिकाने के प्रवेश-द्वार पर थे।हमने सुरक्षाकर्मी को एक पर्ची थमा दी जिसमें लिख दिया था कि ताज़ा हालात पर हम उनसे बात करना चाहते हैं।हमें उनसे संवाद करने का हमें जल्द ही मौका मिल गया।

वे लॉन में ही मिल गये। कृत्रिम-प्रकाश से घिरे हुए अपने कम्प्यूटर में महारैली व संवाद-बैठक के कवरेज से सम्बंधित ख़बरें स्टोर कर रहे थे।हमें वहाँ पाकर कम्प्यूटर छोड़कर हमसे मुखातिब हुए।हमने देखा,उनका चेहरा सम्पूर्ण आत्मविश्वास से दमक रहा था।बिना मौका गँवाए हमने उन्हें हालिया आयोजनों की ऐतिहासिक सफलता की बधाई दी और उन्होंने इसे बड़े ही नम्र भाव से उसे ग्रहण किया।हमारा पहला सवाल था,’आप महारैली से पहले और बाद में क्या फर्क देख पाते हैं ?’ उन्होंने दिमाग और शरीर की अधिकतम ऊर्जा का इस्तेमाल करते हुए जवाब दिया,’सबसे पहले तो हमने उन विरोधियों को करारा जवाब दिया है जो कह रहे थे कि हम कुछ बोलते नहीं हैं।हम वहाँ बोले और ज़ोर से बोले।हमारे बन्दों ने महारैली में भीड़ इकट्ठी करके सिद्ध कर दिया है कि विरोधियों ने हमारी सरकार पर जितने भी घोटालों के आरोप लगाये थे,सब मिथ्या हैं।जो सही हैं,उनकी जाँच चल रही है और उनमें भी सरकार बेदाग निकल आएगी।इसी सब पर संवाद-बैठक में आम-सहमति भी बन गई। ’इतना कहकर वो कम्प्यूटर में फीड महारैली व बैठक के चित्र दिखाने लगे।

हमने उन्हें बताया कि वाकई हम पहले ही उनकी सफलता से लहालोट हैं,इसलिए बस हमें चंद सवालों का जवाब दे दें।उनकी सहमति पाते ही मैंने अगला सवाल किया ‘आपने आम आदमी के लिए बंद दरवाजे खोलने की बात की है,इसका आशय क्या है ?’ उन्होंने कहा कि देखिए, हमें बताया गया कि उस दिन रैली में जो भी लोग आए थे,सब आम आदमी थे।उनके आने के लिए हमारी सभी राज्य सरकारों ने सारे नाके-दरवाजे खोल दिए थे।हमसे मिलने के लिए किसी को कोई टोल-टैक्स नहीं देना पड़ा और इस वज़ह से हमारी रैली ने भीड़ के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए।इसलिए मैं सोचता हूँ कि आम आदमी के लिए बंद दरवाजे खोलना कितना उपयोगी हो सकता है ,हालाँकि इस बात की पूरी कोशिश बरती गई है कि हमारी बैठकी में कोई आम आदमी न घुस पाए !’

हमने अब आखिरी सवाल दागा,’आप देशवासियों को इस अपनी तरफ से क्या सन्देश देना चाहते हैं ?’उन्होंने माथे में आए हुए तनाव को थोड़ा कम किया और कहा,’लोग भ्रामक प्रचार से दूर रहें।हम पर देश में अंधेर करने का इलज़ाम लगाया जा रहा है जो सरासर गलत है।मैं देख रहा हूँ,चारों ओर रोशनी फैली हुई है।पिछले आठ सालों से मुझे थोड़ी समझ आई है।अगले कुछ सालों में हम पूर्ण समझदार होने की कोशिश करेंगे।किसी भी उद्योगपति का दिवाला न निकले ,हम इसका ध्यान रखेंगे।आम आदमी को हर साल की तरह इस साल भी लालीपॉप मुबारक !ज़रूरत हुई तो हम शीघ्र एक और बैठक करेंगे ’ हम उनका यह सन्देश देश के बाकी लोगों तक पहुँचाने के लिए सुरक्षित बाहर लौट आए ।

बुधवार, 7 नवंबर 2012

खुलासों की साप्ताहिक मंडी !



DLA 19 Nov 2012

दैनिक ट्रिब्यून में १५/११ /२०१२ को !

श्रीटाइम्स में १६/११/२०१२ को !

खुलासा जी ने अपने प्रकट होने का समय बता दिया था, इस वज़ह से सबके दिल की धुकधुकी बढ़ती जा रही थी।शुरू में तो ऐसे खुलासों से आनंद आ रहा था पर जब आये दिन ऐसे आयोजन होने लगे तो कई लोग आतंकित हो उठे कि किसी रोज़ उनका पुराना हिसाब न खुल जाय ! हमें भी रोज़-रोज़ कई जगह से बयान उठाने पड़ते थे । इस कारण प्रेस-वार्ता के नज़दीक आने पर हमारा भी हलक सूखने लगा था।बहरहाल, जब हम वहाँ पहुँचे तो देखा कि खुलासा जी पूरे मूड में थे।वे अपनी पूरी टीम के साथ आए थे।नियत समय पर खुलासा जी कैमरों से मुखातिब हुए।

खुलासा जी ने विस्फोटक मुद्रा को अख्तियार करते हुए देश के एक बड़े व्यापारी और उसके घराने को लपेटे में ले लिया।उनके द्वारा किया गया अविकल खुलासा इस तरह रहा ;’देश को वे चला रहे हैं।उनकी मुख्य जेब में देश की दोनों पार्टियाँ पहुँच चुकी हैं।अन्य छोटी पार्टियाँ उनकी आस्तीन के नीचे छिपी हुई हैं।उनके चौड़े और लंबे कोट के नीचे कइयों के पेट पल रहे हैं।उनका जब मन होता है तो वे अपनी जेबों को बाहर निकालकर किसी बड़ी दुकान का शोरूम बना देते हैं।इस तरह वे देश को सेल में लगाकर अपनी गैस और अपना तेल इन्हीं दुकानों से हम सबको बेच रहे हैं।’हम अपने मनमाफिक खबर पाकर,उनके द्वारा चिन्हित की गई दोनों जेबों की पुष्टि के लिए उनके गोदामों की तरफ बढ़ चले।

पहले हम दायीं जेब के पास पहुँचे तो उन्होंने हमसे निपटने की पूरी तैयारी कर रखी थी।हमारे कुछ पूछने  से पहले ही वे बिलबिला उठे,’अजी,खुलासा जी ने साप्ताहिक मंडी लगा रखी है।कई बार तो हफ्ता भी नहीं होता और वे टोपी लगाकर बैठ जाते हैं।यह तो सरकार जी को देखना चाहिए कि उनको इस तरह की साप्ताहिक हाट लगाने का लाइसेंस कैसे दे दिया ? रही बात ज़वाब देने की ,सो हम केवल पाँच साल बाद ही जवाब देते हैं और जिनको देते हैं उनके पास भी दो विकल्प हैं ;या तो हमारा ज़वाब सही माने या हमारे ही सहोदर बायें जी का।’इतना कहकर वे बिना हमारी प्रतिक्रिया लिए चल दिए।

बाएं जी के गोदाम में कुछ ज़्यादा ही गहमागहमी थी।कुछ लोग अंदर का माल बाहर कर रहे थे तो कुछ को टोकन बाँटकर प्रतीक्षा में खड़ा किया गया था।पता चला कि व्यापारी जी के कोट की ऊपरी बटन टूट गई थी सो उसके लगवाने के लिए टेंडर भरा जाना था ।बमुश्किल से बाएं जी से मुलाक़ात हुई तो उन्होंने उवाचा,’देखिए,हम इत्ते सालों से काम पर हैं,घोटालों के शतक तक लगा चुके हैं ,ऐसे में इन टुच्चे खुलासों पर कब तक जूझते रहेंगे ?हमारे लिए यह अब रूटीन वर्क बन गया है और हम अब इनकी परवाह भी नहीं करते।आप हमारे नए सेल्समैनों की भर्ती और उनकी पदोन्नति से यह बात समझ सकते हैं।’

उनकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि व्यापारी जी का एक प्रतिनिधि हमारी ओर लपका।वह ज़बरन अपना बयान देने पर उतारू था।हमने भी उसकी ओर ताका तो उसने ये ब्रह्मवाक्य कहे,’देश को चलाने का जो इलज़ाम हमारे ऊपर लगाकर हमारी थू-थू की जा रही है,इसमें हमारी क्या गलती है ? जब इसे चलाने का ईंधन हमारे ही पास है तो और कौन चलाएगा? भाई साहब ! शुक्र मनाइए कि यह काम हम कर रहे हैं नहीं तो देश को कोई अदना-सा आदमी उसे गड्ढे में लिए पड़ा होता।आज जो भी आर्थिक रफ़्तार है,हमारी वजह से है।’हमें इस बयान में तनिक भी सच्चाई नज़र नहीं आई और हमने अगले खुलासे तक अपना पैक-अप कर लिया ।

 जनसंदेश में ०७/११/२०१२ को प्रकाशित

धुंध भरे दिन

इस बार ठंड ठीक से शुरू भी नहीं हुई थी कि राजधानी ने काला कंबल ओढ़ लिया।वह पहले कूड़े के पहाड़ों के लिए जानी जाती थी...