रविवार, 7 जनवरी 2024

..और संकल्प टूट गए !

नए साल से बड़ी उम्मीदें थीं।एक साथ कई संकल्प उठा रखे थे।अभी तीन दिन भी नहीं बीते थे कि एक-एक कर सारे संकल्प खेत हो गए।पहला संकल्प टूटने के बाद आधे घंटे तक अफ़सोस मनाया था।तब जाकर नैतिकता को संतोष हुआ था।आख़िरी वाला जब टूटा तो बसदो मिनटका मौन रख लिया।इससे अंतरात्मा को शांति मिली।यह तो अच्छा है कि इस दुःख से सँभलने के लिए अभी पूरा साल पड़ा है।पता नहीं,हमारेभागमें संकल्पों का टूटना ही बदा है


पिछला साल उससे पिछले की तरह ही अच्छा नहीं रहा।इसलिए नए साल की आहट पाते ही हमने उसका चाक-चौबंद इंतज़ाम करने की ठान ली थी।साल का आख़िरी दिन था।फ़ोन पर पिताजी से बात हुई।उन्होंने नए साल की शुभकामनाएँ देने के साथ पहला संकल्प हाथ में थमा दिया।रोज़ सुबह नहा-धोकर शंख बजाया करो।इससे फेफड़े खुलते हैं।ताजी हवा अंदर आती है।तुम्हें आत्मिक शांति मिलेगी।वातावरण भी शुद्ध रहेगा।मैंने उन्हें मना नहीं किया।उनका मान रखते हुए संकल्प-सूची में इसे पहले स्थान पर रख लिया।उन्हें केवल शंख बजाने से फेफड़े खुलने की बात पता थी।यहाँ आए दिन कोरोना-प्रभाव के कारण खुल गए फेफड़ों से कई प्राणियों के बैकुंठ में बसने की ख़बर आती रहती है।हमने उन्हें यह नहीं बताया।बिला वजह एकाध संकल्प और बढ़ता और ख़ामख़ा शंख के ऊपर गाज गिरती।साल की शुरुआत ऐसे हो,नहीं चाहता था।


श्रीमती जी को जब इस संकल्प के बारे में बताया तो वे तमक उठीं।पिताजी का कहना तो मान लिया,अब कान खोलकर मेरी भी सुन लो।शंख बजाने से फेफड़े खुलते हैं यह तो ठीक है पर इससे अधिक तुम्हारा दिमाग़ खुलने की ज़रूरत है।उसके लिए भी सोचा है ? सुबह दौड़ लगाने से तुम्हारे शरीर और तुम्हारी दोनों की चर्बी कम होगी।तब जाकर बंद दिमाग़ खुलेगा।’ ‘यह ज़्यादा हो गया।अगर दिमाग़ नहीं होता तो बड़ा अफ़सर कैसे बन जाता ?’ मैंने अफ़सरी रौब को घर में रिचार्ज करने की कोशिश की।श्रीमती जी यूँ ही नहींवाद-विवादप्रतियोगिता में कॉलेज में टॉप आई थीं।उसी प्रतिभा का दर्शन फिर से हुआ, ‘अफ़सरी करते हो पर नौकरी के अलावा ठीक से एकरीलतक नहीं झाड़ पाते।दूसरे अफ़सरों को देखिए,छापा मारने जाते हैं तो भी उसकी रील बना लेते हैं।नौकरी से ज़्यादा उससे कमाते हैं।तुम्हारे स्टेट-टॉपर होने का क्या फ़ायदा ? ‘बारहवीं फेलहोते तो तुम पर क़ायदे की एकपिच्चरतो बन जाती ! तुम्हारे साथ मैं भी हिट होती।अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है।नौकरी में दिन भर भाग-दौड़ करते ही हो,सुबह पाँच किमी की दौड़ भी लगा लिया करो।दिमाग़ खुल जाएगा।उनका यह संकल्प मेरे लिये अध्यादेश जैसा था।


मैं इन संकल्पों की योजना बना ही रहा था कि साहित्यकार-मित्र का फ़ोन गया।कहने लगे, ‘अफ़सरी बहुत कर ली।समाज का भला भी हो गया।अब अपना भी कर लो।नए साल में साहित्य में घुसने का संकल्प उठा लो।यहाँ अफ़सरों का बड़ा स्कोप है।आजकल वे ही अगुआई कर रहे हैं।दोनों मिलकर साहित्य का भला करेंगे।शुभकामनाओं के सिलसिले में मैं कोई ख़लल नहीं डालना  चाहता था इसलिए यह संकल्प भी सिर-माथे ले लिया।नए साल का रोमांच अब डर में बदलने लगा था।


नववर्ष की सुबह उठते ही सैर पर निकल गया।मौसम के सिवा सब कुछ खुला था।दिमाग़ का तो पता नहीं पर धुँध में नाक पूरी तरह खुल गई थी।श्रीमती जी ने हौसला बढ़ाया कि योजना सही काम कर रही है।आज नाक खुली है,कल दिमाग़ भी खुलेगा।बस संकल्पबद्ध रहो।


मैं नहा-धोकर शंख बजाने को उतावला था।सात बजे से पहले ही पूरी सोसायटी मेरे शंखनाद से दहल गई।गॉर्ड दौड़ कर मेरे पास आया।उसके पीछे-पीछे वर्माजी थे।नए साल का भी लिहाज़ नहीं किया।बिगड़ उठे, ‘भाई,बच्चे नौ बजे तक सोते हैं।आपने उन्हें सात बजे ही उठा दिया।यह नहीं चलेगा।उन्हें संकल्प के बारे में बताना चाह रहा था पर श्रीमती जी ने बात सँभाल ली।पूर्ण आश्वस्त करके उन्हें भेज दिया।मेरा पहला संकल्प ढेर हो चुका था।


साल का दूसरा दिन था।अलार्म बजने के बाद भी जब मैं बिस्तर से नहीं हिला,श्रीमती जी को थोड़ी चिंता हुई।मैं सुन्न पड़ा था।उन्होंने डॉक्टर को बुला लिया।उसने आते ही सलाह दी, ‘इन्हें सर्दी लगी है।ठंड भर सुबह की सैर करने का संकल्प लें।इस तरह यह संकल्प मौसम की भेंट चढ़ गया।अपने संकल्पों के इस तरह शहीद होने पर मित्र को फ़ोन करके बताया कि साहित्यिक-संकल्प का भी परित्याग कर रहा हूँ।मुझसे नहीं होगा।


उन्होंने बड़ी सहजता से सँभाला, ‘काहे चिंता करते हो।तुम इकलौते नहीं हो जिनके संकल्प टूटे हैं।यह साल कइयों के संकल्प टूटने का है।विपक्ष ने सरकार बदलने का संकल्प लिया है तो सरकार ने साल की शुरुआत में ही ड्राइवरों के सामने अपना संकल्प तोड़ दिया है।चुनाव बीतने के साथ नेताओं के संकल्प पहले ही टूट चुके हैं।अभी देखो,आगे क्या-क्या टूटता है ! तुम नहीं भी लिखोगे,तो भी मैं तुम्हें लेखक बनवा दूँगा।यह मेरा संकल्प है।


यह सुनते ही मैं फिर से सिहर उठा।


संतोष त्रिवेदी

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