बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

आतंकवाद पर अधिकृत वक्तव्य !


जनसंदेश व जनवाणी में २७/०२/२०१३ को

 

पिछले दिनों देश में हुए आतंकी हमले का हमें बेहद अफ़सोस है और गुस्सा भी।हमें अपने उन सभी लोगों के जाने का रंज-ओ-गम है जिनके रहते चुनाव में हमें और मजबूती मिलती।इस मामले पर हमेशा की तरह हम संजीदा हैं और कुछ कर गुजरने को बेताब।बस एक बार अपराधी हमारे हाथ लग जाएँ तो कानून अपना काम करने लगेगा।इस घटना पर पहले ही प्रधानमंत्री ने निंदा व्यक्त कर दी है और पार्टी हाईकमान ने दिली-अफ़सोस जाहिर कर दिया है।विपक्ष का यह आरोप निराधार है कि हम चौकस नहीं हैं।हम बराबर अपने टारगेट पर नज़रें गड़ाए हुए हैं,इसलिए हम पर ऐसे आरोप अनुचित और देशहित के विरुद्ध हैं।संकट की इस घड़ी में सबको एक साथ दिखना चाहिए,भले ही हम अंदर से ऐसे ना हों ।

हम पर देश की सुरक्षा-व्यवस्था से खिलवाड़ का आरोप हास्यास्पद है।विपक्ष कहता है कि समय रहते ऐसी घटनाओं की सूचना हम नहीं दे पाते,जो सरासर तथ्यहीन और भ्रामक है।हम आपको बता दें कि इसके लिए हमने औपचारिक रूप से एक सूचना-तंत्र खड़ा कर रखा है।यह अत्याधुनिक तकनीक से लैस ऐसी सुविधा है जो हर तीसरे दिन छः राज्यों को अपनी तरफ़ से चेतावनी भरे सन्देश भेज देती है।इससे उन सभी राज्यों के सभी शहरों में यह चेतावनी समान रूप से लागू और प्रभावी हो जाती है।इस तरह हम पूरे देश में अपनी सुरक्षा का अभेद्य-मन्त्र अल्प समय में ही प्रसारित कर देते हैं।इससे अधिक त्वरित कार्रवाई और क्या हो सकती है ?अब हमारे ऐसे गुप्त सन्देश यदि राज्य सरकारें नहीं पढ़ पातीं तो वे नाकारा हैं,हम नहीं।

आतंकी घटनाओं से निपटने के लिए हमने और भी पुख्ता इंतज़ाम किये हैं।बार-बार हो रही इस तरह की घटनाएँ यह सिद्ध करती हैं कि हमारे ख़ुफ़िया विभाग की रपट हमेशा ठीक होती है।अब उसको रोक पाने का काम स्थानीय पुलिस का है क्योंकि हम रक्षा,कोयला और स्पेक्ट्रम जैसे कई महत्वपूर्ण सौदों के निपटाने में व्यस्त रहते हैं।हालिया आतंकी घटना से हेलीकॉप्टर सौदे की चर्चा भी नेपथ्य में चली गई है,इससे साबित होता है कि उन आरोपों में भी कोई दम नहीं था।आरोप लगाने वालों को नहीं मालूम कि अपनी स्वच्छ छवि को बचाने के लिए हमें कितना श्रम करना पड़ता है ! हम आपको आश्वस्त करना चाहते हैं कि सरकार पर लगे ये आरोप पूर्ववर्ती आरोपों की तरह हवा हो जायेंगे और हम साफ़-सुथरी सरकार देने के अपने वादे पर खरे उतरेंगे।

हम पर निष्क्रियता का जो आरोप लगाया जाता है वह भी आधारहीन है।हमने हर घटना के बाद हाथ खड़े करने की बजाय कड़े कदम उठाये हैं और ये कदम अकड़ने की स्थिति तक कड़े उठते रहेंगे ।इस तरह हम आतंकवाद के समक्ष झुकेंगे नहीं,भले ही टूट जाएँ। इसलिए विपक्ष को अपने आरोपों में अड़ने के बजाय अगले चुनावों में लड़ने तक इंतज़ार करना चाहिए।हमारी समझदार जनता समय आने पर बता देगी कि हमने भ्रष्टाचार,बलात्कार और आतंकवाद पर समान भाव से काम किया है।हम बेझिझक अपना काम करते जा रहे हैं और जवाब में विपक्ष अपना बयान जारी कर देता है।वह हमारी ही नकल कर रहा है और दोषी भी हमें भी ठहरा रहा है।अब आप किस पर हँसेंगे,हम पर या विपक्ष पर ?

 

शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

चलो,बैठकर बात करें !

२३/०२/२०१३ को मिलाप में..!
 
हमारे प्रधानमंत्री जी ने इटालियन हेलीकॉप्टर पर मच रहे शोर के बीच एक समझदारी भरी बात की है।उन्होंने कहा है कि इस मसले पर विपक्ष बैठकर बात कर सकता है।अभी तक इस पर विपक्ष की ओर से कोई रचनात्मक प्रतिक्रिया आने की खबर नहीं है।हमारे हिसाब से तो प्रधानमंत्री जी ने बहुत बढ़िया प्रस्ताव दिया है।कुछ लोग भले ही उनकी इस बात को गंभीरता से न लें,पर यदि देखा जाए तो यह साफ़ हो जायेगा कि ऐसा उन्होंने यूँ ही नहीं कहा है।
पिछले नौ सालों से वे हाईकमान के आगे खड़े ही रहे हैं,ऐसे में यदि वह बैठने की पहल करते हैं तो विपक्ष को इसका स्वागत करना चाहिए।सबसे खास बात यह है कि कोई भी गंभीर विमर्श खड़े होकर नहीं हो सकता।खड़े होकर केवल तूतू–मैंमैं किया जा सकताहै ।लड़ाई कभी बैठकर नहीं होती,इससे स्पष्ट होता है कि प्रधानमंत्री जी लड़ना नहीं चाहते।इटली से सम्बंधित होने के कारण वैसे भी वे इसको हल्के में नहीं ले सकते हैं।इस सौदे में माल बनाने वाले भले ही उड़ गए हों पर इस पर बात तो बैठकर ही की जा सकती है।फ़िर, खड़े होकर यदि चर्चा होगी तो पड़ोसी कान भी सुनेंगे,इसलिए बैठकर बात करने का कोई विकल्प ही नहीं है।
कुछ लोगों का यह भी तर्क है कि प्रधानमंत्री जब कभी लोकसभा चुनाव में नहीं खड़े हुए तो आज उनसे खड़े रहने की उम्मीद करना अन्याय है।वे बैठने को लेकर इसलिए भी आतुर हो सकते हैं कि खड़े होकर उन्होंने केवल दूसरे की ही बात सुनी है।अब जब उनको अपनी तरफ़ से भी कुछ कहना है,तो बैठकर ही ठीक रहेगा।सभ्य और शिष्ट लोग हमेशा बैठकर बात करते हैं और हमारे प्रधानमंत्री की इस काबिलियत पर विपक्ष को भी शक नहीं है।उन्हें यह भी पता है कि बैठने के और भी रचनात्मक लाभ हैं।चुनाव में कई बार सामने वाला या तो थक-हारकर बैठ जाता है या बैठा दिया जाता है,इससे चुनाव-खर्च भी बचता है और आपसी नोंक-झोंक भी नहीं होती।
इटालियन हेलीकॉप्टर अच्छे किस्म के हैं ,उन पर वीवीआईपी लोग बैठकर सफ़र करते,इसमें किसी का क्या बिगड़ता है ?विवाद इस बात पर भी उठाया जा रहा है कि उनकी ऊँचाई को कम किया गया।अब इसमें भी दो लाभ हैं।एक तो नेता जब उड़ेंगे तो वे जनता को और नज़दीक से देख सकते हैं,दूसरे ,यदि हेलीकॉप्टर को कभी बैठने का मन हुआ तो उसे ज़मीन में बैठने में आसानी होगी।इसलिए यह पूरी परियोजना ही बैठने के सिद्धांत पर टिकी हुई है।अब इस पर भी विपक्ष बैठने को तैयार न हो तो दोष किसका है ?
हमारे प्रधानमंत्री बड़े दार्शनिक किस्म के हैं।वे हर छोटी बात पर बयान देने को बैठते भी नहीं ।यहाँ मिल-बैठकर समस्या को सुलझाने भर की बात थी,सो उन्होंने बैठकर बात करने का प्रस्ताव दिया है।विपक्ष का आरोप है कि सौदे में दलाली दी गई है।अब भला कोई रकम लेकर बैठा थोड़ी रहेगा,रफूचक्कर हो जायेगा।बैठकर तो ईमानदार लोग ही इंतज़ार करते हैं।जब देश की अर्थ-व्यवस्था का भट्ठा बैठ रहा हो,आम जनता का दिल मंहगाई और भ्रष्टाचार से बैठा जा रहा हो,ऐसे में प्रधानमंत्री के बैठकर बात करने से कौन-सा पहाड़ टूट जायेगा ?
 
 

बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

मोहे लालकिला पहुँचा दो !



 
 
 
२०/०२/२०१३ को जनसंदेश में !
 
प्यारे कार्यकर्ताओं !
प्रदेश की गद्दी हाथ से जाने के बाद से ही मेरे दिल में अजीब-सी छटपटाहट महसूस हो रही है,पर आप सबको नाहक परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। बस,सही समय का इंतज़ार है। अभी प्रदेश में सत्ता पाने का समय बहुत दूर है,यहाँ तक कि अभी इसका स्वप्न भी नहीं आ रहा है। हमने पिछले साल संसद में कोशिश की थी कि पदोन्नति में आरक्षण दिया जाए पर कुछ बहुजन-विरोधी ताकतों ने एक षड्यंत्र के तहत उसे कानून नहीं बनने दिया। उन सभी को आशंका थी कि इससे कहीं उनके अपने हित न प्रभावित हों। अगर ऐसा हो जाता तो एक मुख्यमंत्री की पदोन्नति आसानी से प्रधानमंत्री पद पर हो सकती थी,पर अब हमें इसे पाने के लिए सीधे मैदान में उतरना होगा।
अबकी बार आनेवाले लोकसभा चुनावों में हमें प्रधानमंत्री पद हथिया लेने की भीषण सम्भावना प्रतीत हो रही है। जहाँ हमारे मुख्य विरोधी पुत्र को प्रदेश का राज थमाकर अपने लिए देश के प्रधानमंत्री पद का ख्वाब देख रहे हैं,वहीँ हमारे सभी सहयोगी बिलकुल बेरोजगार हो गए हैं। इन लोगों को ऐसा करते हुए तनिक भी लिहाज़ नहीं है। अगर एक दलित, ख़ासकर महिला, इस देश की प्रधानमंत्री बन जाए,तो मान्यवर का सपना पूरा हो जायेगा,पर विरोधी शक्तियाँ इस नेक काम को रोकने के लिए एक हो गई हैं। हम ऐसा हरगिज़ नहीं होने देंगे कि कोई प्रदेश और देश दोनों जगह अपनी दावेदारी ठोंके और हम यूँ ही हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें। हाथ के साथ रहने से जो मिलना था,वह भी तो नहीं मिल पाया क्योंकि न्यायालय ने फ़िर से हमारे मामलों को खोलने का फरमान जारी कर दिया है।
हम लालकिले की प्राचीर पर चढ़ना चाहते हैं और यह सब अब हाथ के सहारे नहीं,हाथी पर सवार होकर ही संभव होगा। इसलिए आप सब अगर समाज की भलाई और हमारे लिए मलाई चाहते हो तो लोगों के बहकावे में नहीं आयें। हमारे प्रतिपक्षी चुनावों तक खूब सक्रिय रहेंगे। इसके लिए वे डायरेक्ट कैश या लैपटॉप का लॉलीपॉप देने की कोशिशें कर रहे हैं,पर आप सब इनके बहकावे में न आइयेगा। आप तो जानते ही हैं कि हम सत्ता से बाहर रहते हुए वैसे ही खस्ताहाल हैं। ऐसे में हम अपनी गठरी को थैली बनाने का जोखिम नहीं ले सकते हैं। इसलिए आपसे अपील है कि अगले चुनाव में हमारे सिवा किसी अन्य के झांसे में न आयें। हम बहुजन हितों के लिए लालकिले को नीला करना चाहते हैं और यह हम आपके दम पर करके दिखायेंगे।
इस बार प्रधानमंत्री पद मिल जाना असंभव नहीं है। हमें इसके लिए बहुमत की भी चिंता नहीं करनी है। जहाँ हाथ वाले युवराज इस पद को लेकर अनमने हैं वहीँ दूसरे लोग मोदी और गैर-मोदी राग अलाप रहे हैं। हमने अगर लोकसभा में पचास सीटें भी हथिया लीं तो पांच सौ पैंतालीस के सदन में हमारी लॉटरी लग सकती है। इसलिए आप सब मिलकर जुट जाएँ और हमारी अंतिम मनोकामना पूरी करने में सक्रिय सहयोग करें। सच मानिये,मैं जब लालकिले की प्राचीर से ,बुलट-प्रूफ शीशे से अपना वक्तव्य दूँगी,हर शोषित और दलित खुशहाल हो जायेगा। मैं मंत्रिमंडल में अपने पुराने सहयोगियों की पहले की सेवाओं को देखते हुए,उनका भी पुनर्वास करूँगी। रही बात जनता की,तो जो पैंसठ सालों से अब तक सही-सलामत है,कौन-सा मेरे कार्यकाल में मर-खप जायेगी ??


 DLA में २८/०२/२०१३ को !

बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

संत,बसंत और महंत !


14/02/2013 को जनवाणी में !

 
13/02/2013  को जनसन्देश में...!


लो जी,बसंत आ गया और हम इसका स्वागत भी कर सकने की हालत में नहीं हैं। अपन औपचारिक रूप से बसंतोत्सव मनाने की अवस्था को पार कर चुके हैं,इसलिए हम दूसरे  पाले में हैं। हमारे विरोध को जानने के लिए इसके गुण-धर्म को भी जानना ज़रूरी है। इस मौसम के आते ही मानव जाति तो छोडिये,प्रकृति तक लाज-शरम छोड़ देती है। अरसे से अपनी उम्मीदों और अरमानों को दिल में दबाए युवा जोड़े सार्वजनिक रूप से अपनी उपस्थिति दर्ज़ कर देते हैं। पूरे वर्ष भर कुछ कह न पाने का दर्द बसंत के दिनों में हवा हो जाता है। युवा-युवतियाँ चिड़ा-चिड़ों की तरह आज़ादी से विचरण करने लगते हैं।

इस बसंत के मौसम का सबसे पवित्र दिन चौदह फरवरी को आता है। कहते हैं एक संत ने इस दिन को प्रेम-दिवस के लिए आरक्षित कर दिया था इसलिए उस संत के बहाने कई दीन-दुखियारों का बसंत मन जाता है। जहाँ एक तरफ़ नए जोड़े इस दिन अपनी-अपनी किस्मत आजमाते हैं,वहीँ हम जैसे महंत लोग जल-भुनकर राख होते हैं। हमें अपना बीता हुआ पिछला ज़माना याद आता है जिसमें किसी ने प्रेम के इस विशेष पर्व की जानकारी ही नहीं दी थी। इसलिए जैसे ही हम किसी को गुलाब देते हुए देखते हैं,उसका कांटा सीधे हमारी छाती पर गड़ता महसूस होता है।

जहाँ एक तरफ नई पीढ़ी इस मौसम में बौराई हुई घूमती है,वहीँ आमों में लगे बौर भी प्रेम की महक से सराबोर हो उठते हैं। खेतों में नज़र डालते ही पीली सरसों बसंत की मादकता को बढ़ा देती है। प्रेम-दिवस आते-आते सरसों इतनी सयानी हो जाती है कि उसके सामने गेहूँ अपना प्रणय-निवेदन प्रस्तुत कर देता है। ऐसे में ठिगने चने को देखकर हमें अपनी दशा का गुमान होता है। वह बेचारा चाहकर भी सरसों तक अपनी बात नहीं पहुँचा पाता। दूसरी तरफ़ गेहूँ बासंती-हवा के झोंके से लहराती हुई सरसों को अपने आलिंगन में भर लेने को आतुर दिखता है। प्रकृति के ऐसे दृश्यों को देखकर हमारा झुर्रीदार शरीर और सूख जाता है।

बसंत आता है तो पूरी तैयारी के साथ आता है। खास बात है कि इसकी तैयारी घर के बजाय बाज़ार में ज़्यादा होती है। नए प्रेमियों को लुभाने के लिए कार्ड और फूल देना अब पुराना चलन हो गया है। बाज़ार वैलेंटाइन-डे के आने से पहले ही इतनी हवा भर देता है कि छोटे-मोटे गुब्बारे तो पहले ही पिचक जाते हैं। महंगे-से-महंगे उपहार प्रेम की गहराई तय करते हैं,ऐसे में छुटभैये प्रेमी इससे निपटने के लिए खास रणनीति बनाते हैं। वे साल भर पहले से ही अपने जेबखर्च से इस दिन का खर्च निकालना शुरू कर देते हैं। कई तो बेचारे यह काम एहतियातन शुरू कर देते हैं ताकि उनका साथी मिले तो किसी प्रकार के वित्तीय-संकट की आशंका से वह हाथ से ही न निकल जाए।

अब इस तरह के खतरे उठाने की न अपनी उमर रही और न हड्डियों में जान ही बची है कि रामसेना और शिवसेना का मुकाबला कर सकें। इसलिए हर तरफ से बसंत और खासकर यह प्रेम-दिवस हमें दुश्मन दिखता है। इस बात को हम अपनी संस्कृति से जोड़कर अपना मान-मर्दन नहीं होने देते। हर बार ‘संस्कृति बचाओ संघ’ वाले हमारी विचारधारा को सम्मान देते हुए प्रेम-दिवस के विरोध में आख्यान देने के लिए बुला लेते हैं। इसलिए हम हर तरह से इस मदनोत्सव और प्रेम-दिवस के विरोध में है। आप चाहें तो हमें संत के बजाय महंत कह सकते हैं।

सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

सत्ताधारी दल के प्रवक्ता का ताज़ा बयान !



11/02/2013 को नई दुनिया में !


लो जी,हमने वह कर दिखाया जिसके लिए लोग तरस रहे थे। हम पर लगातार इलज़ाम लग रहे थे कि हम जनता का ख्याल नहीं रखते,उसकी भावनाओं का आदर नहीं करते,पर आप गौर करेंगे तो पाएँगे कि आम जनता हमारे एजेंडे में सबसे ऊपर है। आप लोग इसी बात से अंदाज़ा लगा लीजिए कि हमारे लिए जनता हमसे भी ऊपर है। हमने सबसे पहले कसाब को फांसी पर लटकाया क्योंकि उसने सीधे जनता पर हमला करने की जुर्रत की थी। नेताओं पर हमला करने वाले अफज़ल गुरु को हमने उसके बाद ही लटकाया। विपक्षी लोग न जाने क्या-क्या आरोप लगा रहे थे,पर हम अपने से अधिक जनता का ध्यान रखते हैं,यह अब साबित हो चुका है।
ऐसा नहीं है कि आतंकवाद के क्षेत्र में ऐसी उल्लेखनीय प्रगति रातों-रात हुई है। इसमें हम लगातार पिछले कई सालों से प्रयासरत थे। फाइलों को इधर से उधर करने में हमने पर्याप्त समय लिया ताकि हम पर कोई उँगली न उठा सके। जब हमें अपने लिए,युवराज के लिए  ज़रूरी लगा ,हमने फाइलों पर धड़ाधड़  दस्तखत करने शुरू कर दिए । इस तरह के काम को कुछ लोग कुम्भ-स्नान या मोदी-डर से जोड़कर देख रहे हैं,पर हम काम करने में विश्वास रखते हैं,बहसबाजी में नहीं।  अभी भी कई लोग निराधार आरोप लगाने में सक्रिय हैं। वे कहते हैं कि  कसाब डेंगू से मरने ही वाला था तो उसे फांसी दी गई और इधर जब स्वाइन-फ्लू की तरह मोदी का प्रकोप बढ़ा तो अफज़ल गुरु को निपटा दिया। वास्तव में इन बातों का कोई आधार नहीं है।
विपक्षी दल भाजपा पहले तो अपने अध्यक्ष के चुनाव के लिए जूझती रही और अब प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी पर उसमें मारामारी है। मोदी जी गुजरात दंगों को उसी तरह दुर्भाग्यपूर्ण बता रहे हैं जैसे कभी वाजपेई जी ने अयोध्या के विवादित ढांचे के ढहने पर बताया था। अब यह जनता को सोचना है कि वे ऐसे लोगों को सत्ता में लाते हैं जो ‘दुर्भाग्यपूर्ण काम’ करने में कुशल हैं या हम जैसे सब कुछ पाक-साफ़ करने वालों को। हमारे लिए अब ज़्यादा समय नहीं बचा है इसलिए हम वह सब कर जाना चाहते हैं जिससे युवराज के लिए रास्ता साफ़ हो सके।चुनावी तैयारियों से इसका कुछ लेना-देना नहीं है ।
आतंकवाद के अतिरिक्त हमने भ्रष्टाचार और बलात्कार पर विशेष ध्यान दिया है। कसाब और अफज़ल को लटकाने से पहले हम अन्ना हजारे के लोकपाल को लटका चुके हैं। हमारे बेहतर प्रयासों से अन्ना के सभी लोग अलग-अलग दिशाओं में जाकर अपने-अपने रोज़गार में लग गए हैं। इस बीच युवराज ने भ्रष्टाचार में भी सब्सिडी के भीषण संकेत दे दिए हैं। पहले सौ पैसे में पचासी पैसे ही जनता तक पहुँचते थे,अब निन्यानवे पहुंचेंगे। इस तरह भ्रष्टाचार कोई मुद्दा ही नहीं बचा। बलात्कार पर भी हमने कठोर कानून बनाने की सिफारिश कर दी है। अब यदि कोई ऐसा कृत्य करता है और पीड़िता की शारीरिक-मौत हो जाती है तो उसे भी हम लटका देंगे,समय चाहे जितना लगे।
हमारे वर्तमान कार्यकलाप यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि हम अगले चुनावों से पहले अपने सभी काम पूरा कर लेंगे। जनता के जो भी काम हैं,वे हमारी लटकाने वाली प्रक्रिया का ही विस्तार हैं।  जिस तरह हमने दुर्दांत आतंकवादियों को लटकाया है,वैसे ही मंहगाई,भ्रष्टाचार और बलात्कार के मुद्दों को एक-एक करके निपटा देंगे। फ़िलहाल,चुनावी साल में अभी तक हमारी उपलब्धियां हैं;दो फाँसी,बीस बलात्कार, एक पैसे का भ्रष्टाचार और विपक्ष बेरोजगार ।   
 

बुधवार, 6 फ़रवरी 2013

लोकपाल यहाँ मिलते हैं !


६ फरवरी २०१३ को जनसंदेश मे
DLA में १२/०२/२०१३ को


बहुत दिनों बाद नुक्कड़ की तरफ जाना हुआ तो वहां की रंगत काफ़ी बदली-बदली नज़र आ रही थी। सारी दुकानों में रंग-रोगन हो रहा था,नाम-पट्टिकाएं बदली जा रही थीं। वहां जो दो मुख्य दुकानें थीं,सबसे ज़्यादा बदलाव इन्हीं पर तारी था। जहाँ एक दुकान के बोर्ड से नए मालिक के आने का संकेत मिल रहा था,वहीँ दूसरी दुकान ने अचानक अपना मालिक बदल दिया था। दुकानों के अन्दर ख़ास तबदीली तो नहीं दिख रही थी पर बाहर काफी रौनक थी। जिस दुकान के मालिक बदल गए थे,हम सबसे पहले वहीँ पहुँच गए।

नए मालिक कागज में कुछ लिख-लिखकर फाड़ रहे थे। हमने उनके बिलकुल पास पहुंचकर इस उलझन का रहस्य जानना चाहा। वे बोले,अगले साल इस इलाके का टेंडर उठना है और हमारी समस्या है कि हमारे पास इसमें बोली लगाने वाले कई लोग हैं। एक बोली तो लगातार ऊँची होती जा रही है,पर दूसरे लोग भी बीच में अपनी बोली प्रस्तुत कर देते हैं। हमें टेंडर मिलने का अभी पुख्ता भरोसा नहीं है,फिर भी इतनी भारी संख्या में आवेदक आ रहे हैं,इससे हमारी दुकान के टूट जाने का अंदेशा है। हमने कहा,क्यों नहीं आप खुल्लम-खुल्ला एक सर्कुलर जारी कर देते ताकि स्थिति स्पष्ट हो जाय। उन्होंने कहा ,यही तो असल समस्या है। ऐसा करने पर बाकी आवेदक अज्ञातवास में चले जायेंगे और फिर हम किसके नाम लिखेंगे और किसके फाड़ेंगे ?

तब तक हमने देखा कि पहली दुकान के आगे अचानक चहल-पहल बढ़ चुकी थी। हम उधर की ओर ही चल दिए। दुकान के मालिक ने पास में पड़े कबाड़ से एक पुतला निकाला और अपने कर्मचारियों को हिदायत दी कि इसे ठीक से झाड़-पोंछकर खड़ा करने लायक बना दिया जाय। हमारे देखते-ही देखते कई लोग उसको ठोंकने-पीटने लगे। किसी ने कीलें ठोंकी तो किसी ने कपड़ा बदला। थोड़ी देर में ही वे उसे टांगकर मालिक के पास लाए और उसे सौंपते हुए कहा,लीजिये,बस इसमें बैटरी लगा दीजिये और बाकी काम यह खुद कर लेगा। हमने इसे इस लायक तो बना ही दिया है कि अगले साल भी इस इलाके का टेंडर फिर से हमारे पास आ जाये।

हमने उनकी इस महत्वाकांक्षी परियोजना को नजदीक से देखने का प्रयास किया। इस पर झाड़-पोंछकर लाया गया पुतला स्वयं बोल पड़ा,’मैं अब असमर्थ नहीं हूँ,मुझमें कई तरह की खपीचें लगाकर खड़ा किया गया है। मुझे केवल दुकान के ग्राहकों की जांच-पड़ताल करनी है क्योंकि बेईमानी होने की गुंजाइश यहीं होती है। मैं किसी दुकानदार की देखरेख नहीं  करूंगा,क्योंकि यही मेरे जन्म-दाता हैं।यह सबको राशन देते हैं और मुझे भी तो इन्हीं से ऊर्जा मिलेगी। मैं वादा करता हूँ कि चाहे मैं किसी के काम आऊँ या न आऊं पर अगला टेंडर तो मेरे ही नाम से मिलेगा। मैं यह भी साफ़ कर रहा हूँ कि मेरी बैटरी मेरे मालिक के ही पास रहेगी,वह चाहे मुझे अपने दुकान के आगे पुतले की तरह खड़ा करे या उसके संभावित मालिक झुनझुना बनाकर खेलें।’

इसके बाद मालिक ने दुकान के आगे नया बोर्ड टांग दिया,जिस पर लिखा था,’यहाँ टीनोपाल और लोकपाल की विशेष व्यवस्था है।एक बार सेवा का अवसर अवश्य प्रदान करें !’


अनुभवी अंतरात्मा का रहस्योद्घाटन

एक बड़े मैदान में बड़ा - सा तंबू तना था।लोग क़तार लगाए खड़े थे।कुछ बड़ा हो रहा है , यह सोचकर हमने तंबू में घुसने की को...