गुरुवार, 30 अगस्त 2012

मंहगाई डायन की पदोन्नति !


 
नवंबर-२०१२
 



आज कई दिन बाद बाज़ार पहुँचा तो मंहगाई जी के तेवर बिलकुल अलग थे | वे हमें देखते ही खिलखिला उठीं और लपककर बोलीं,’हम आपको बहुत मिस कर रहे थे | इत्ते दिन बाद आपको देखकर कलेजे में ठण्ड पड़ गई कि अभी भी हमारे असल कद्रदान जिंदा हैं “ | मैंने अपनी भावनाओं को काबू में रखते हुए कहा,’आपके इस तरह हुमकने का राज क्या है ? क्या कोई बड़ा ठेका मिल गया है जो ठुमक रही हो ? मंहगाई जी ने उसी लय में बोलते हुए कहा ,”आप अपने को अपडेट क्यों नहीं रखते ? हमारे हालचाल जानने के लिए टमाटर जी और आलू जी से कभी मिल लिया करो | वैसे, यू नो,मैं अब थ्री-स्टार या फोर-स्टार नहीं रह गई हूँ | मेरा स्टेटस अब फाइव-स्टार वाला हो गया है |”

मैंने थोड़ा अनजान बनते हुए कुरेदा कि यह आप कैसे कह सकती हैं ? अभी-अभी रास्ते में हमें कुछ लोग खाली थैले ले जाते मिले हैं | वे कह रहे थे कि अब वे खुश रहेंगे क्योंकि मंत्री जी ने ऐसा ही कहा है | मंहगाई जी हमारी बात बीच में ही काटते हुए बोलीं ,”देखो, आप समझदार हैं ,इसलिए मैं आपको समझा रही हूँ,नहीं तो लोग हमसे मुलाक़ात करते ही हमें समझ जाते हैं और ऐसे-वैसे लोग तो भाग खड़े होते हैं| मैं उन्हें घास भी नहीं डालती | दर-असल जब से कुछ सामाजिक-दुश्मनों ने फिल्म बनाकर ‘मंहगाई डायन खाए जात है’ का ढोल पीटना शुरू कर दिया था,मुझे नए असाइनमेंट और क्लाइंट मिलने कम हो गए थे | अब जबसे माननीय मंत्री जी ने यह कहते हुए हमें अभयदान दे दिया है कि वे हमारे परफोर्मेंस से खुश हैं,सच्ची में,मुझसे पूनम पांडे भी जलने लगी है |“

मैंने उन्हें टोका,”आप मंत्री जी के बयान को ठीक से समझी नहीं हैं | जहाँ तक मेरी जानकारी है ,सरकार-बहादुर ने बहुत पहले से ऐलान कर रखा है, “हाथ का साथ,आपके साथ” तो फ़िर यह तो हमारे ही साथ रहेगा ,किसी और के साथ नहीं |” उन्होंने चहकते हुए कहा कि आप कह तो ठीक रहे हैं पर ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं.सरकार जी का मतलब है कि हाथ आपके साथ रहेगा,गर्दन पर भी तो हो सकता है | इसलिए भरम आपको है,हमको नहीं | हम तो अब बड़ी सेलिब्रिटी हो गई हैं,और हाँ,हमारे दर्शन करने हों तो टमाटर जी या आलू जी से अप्वाइंटमेंट ले लेना | मैं बहुत बिजी हूँ,चलती हूँ |”

मैं बाज़ार के दरवाजे से ही लौट पड़ा | यह सोचकर इत्मीनान हो रहा था कि चलो,बहुत दिन बाद सही,हमारे किसान भाई ही खुश हो लेंगे | लौटते हुए रास्ते में किसान जी मिल गए | हमने उन्हें टपक से बधाई दे दी तो उन्होंने मुँह बिसूरते हुए कहा कि भाई साहब ,हमारे जले में काहे को नमक लगाते हो ? हमें फायदा मिलने की बात सुनते ही बिचौलिया बाबू ने अपना कमीशन दोगुना कर दिया है |वह कह रहा है कि इससे मंत्री जी खुश होंगे | अब भाई ,हम अपने माई-बाप को कैसे नाराज़ कर सकते हैं ?”


'जनसंदेश टाइम्स ' में २९/०८/२०१२ को प्रकाशित !


शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

सपनों पर टैक्स नहीं है !


२३/०८/२०१२ को जनसंदेश में !
                            

      हम इस देश की नब्ज़ को जानने वाले इकलौते हैं इसलिए साठ सालों से देश की गद्दी पर विराजमान हैं | इस तरह हम आम जनता की समझ और अपनी उपयोगिता को अच्छी तरह से जान-समझ गए हैं | दूसरों को गलती से एक-आध मौक़ा मिल भी गया तो उन्होंने यह साबित कर दिया कि राज करने के लिए बहुमत के अलावा भी कुछ चाहिए होता है जो सिर्फ हमारे पास है |हम सपने नहीं देखते ,बल्कि दूसरों को दिखाते हैं | हम यह भी चाहते हैं कि दूसरे किस तरह के और कैसे सपने देखें | इसलिए देश की जनता और विपक्षी दल अंधाधुंध सपने देखें क्योंकि हमने उन्हें टैक्स–फ्री कर रखा है |  यह बात अब हमको खुलकर कहनी पड़ रही है ताकि सपनों को लेकर किसी को कोई भ्रम न रहे ! हमने जनहित में ही यह मर्म सारे देश के सामने खोल दिया है क्योंकि कुछ विरोधी दलों ने लगातार आपत्तिजनक सपने देखने शुरू कर दिए हैं |

समाजवादी पार्टी के लोग जब से उत्तर प्रदेश में सत्ता में आए हैं,कुछ ज़्यादा ही सपने देखने लगे हैं| उनके नेता मुलायम सिंह जी ने अपने बेटे को सत्ता देकर उसका सपना तो पूरा कर ही दिया,अपने सपने को बड़ा पद मिलने तक मुल्तवी रखा है | दर-असल इस तरह उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के सपने को अभी से आरक्षित करने की कोशिश की है ,जबकि यह बात जग-जाहिर है कि निकट भविष्य में ऐसा कोई पद खाली नहीं है | देश की आज़ादी के वक्त ही हमने देश से एक वादा कर लिया था कि उसकी सेवा का अधिकार केवल हमें ही होगा | इस पर किसी से कोई बात नहीं हो सकती है | यह सब जानते हुए भी नेताजी रह-रह के गलत सपने देख रहे हैं कि अगली बार आम चुनाव में तीसरे मोर्चे की सरकार बन सकती है और उसमें उनके लिए भरपूर संभावनाएं हैं |

बस,इसी बात पर हमने पूरी स्थिति स्पष्ट करनी चाही है और सबको बता दिया है कि भइया, सपने देखो,सपनों पर कोई टैक्स नहीं है पर अपनी सीमा में रहकर यह काम करो | यह बात दूसरों को नागवार गुजर रही है | उन्हें इस बात पर मलाल है कि सपने देखना क्या खानदानी अधिकार है ?अगर ऐसा ही कोई नियम है तो नेताजी ने भी देश और प्रदेश की सेवा के लिए परिवार के कई सदस्यों को लगा रखा है |अब ऐसे लोगों को क्या समझाया जाए ? उन्हें नहीं मालूम कि एक आम आदमी और युवराज के सपने एक नहीं हो सकते हैं फ़िर दूसरों की चीज़ पर कोई लार कैसे टपका सकता है ?

पिछले कुछ दिनों से नितीश कुमार और नरेन्द्र मोदी ने भी अपने सपनों को जनता के सामने ज़ाहिर किया है | जनता अडवाणी जी के सपनों का हश्र तो पहले ही देख चुकी है इसलिए अब वह ज़्यादा ‘रिस्क’ नहीं लेना चाहती है | यह बात अडवाणी जी समझ चुके हैं तभी वे दूसरों के सपनों को तोड़ने में लग गए हैं | नए स्वप्न-दृष्टाओं को लेकर हम असहज नहीं हैं क्योंकि सपनों पर टैक्स नहीं है इसीलिए ये बेतहाशा बढ़ रहे हैं | हमने पूरी योजना के साथ काम किया है | हम चाहते हैं कि ऐसे सपनों के निःशुल्क होने से एक ही पद के लिए कई दावेदार पैदा हो सकें ताकि हम अपने काम को मूर्त रूप दे सकें और दूसरे केवल सपने देखते रहें | हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि यह भी है कि बढ़ती हुई महंगाई जहाँ हमारे खजाने को भरेगी वहीँ आम जनता इसके घटने को लेकर सपने देखने में मशगूल रहेगी | विपक्ष भी और कोई काम न करके इस सपनीली-दुनिया में घूमता रहेगा और हम जनता के बीच इस बात को दम ठोंककर कह सकते हैं कि देखो,हमने सपनों पर कोई टैक्स नहीं लगाया है |
दैनिक ट्रिब्यून के 'खरी-खरी' स्तंभ में ०२/०९/२०१२ को !

 

मंगलवार, 21 अगस्त 2012

बाबा की महाक्रांति !

डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट में २३/०८/२०१२ को प्रकाशित

आखिरकार बाबा ने दिल्ली में लालकिले के बगल से स्वतंत्रता-दिवस की पूर्व-दोपहर में उस महाक्रांति की शुरुआत कर दी जिसका ऐलान सुनने को कई तरह के लोग बेताब थे.बाबा ने सचमुच में चमत्कार ही कर दिया है जिससे केवल स्विस बैंक में जमा धन काला हो गया और देश के अंदर सारे नेताओं,अफसरों और बाबुओं की कमाई एक झटके में सफ़ेद ! इस तरह की क्रांति में हमारे देश के प्रतिष्ठित नेता भी खुलकर औपचारिक रूप से बाबा के साथ आ गए हैं.इससे यह आशा भी बलवती हुई है कि खुद बाबा के कई संस्थानों की रकम भी दूध की धुली हो जायेगी.

वैसे मैं चमत्कारों पर यकीन नहीं करता पर जब बाबा के साथ भ्रष्टाचार और काले धन के मुद्दे पर चौटाला,पवार,माया,मुलायम आदि को देखा तो घनी तसल्ली हो गई कि कुछ भी हो सकता है.रेड्डी-बंधुओं,येदियुरप्पा,मोदी,बंगारू जैसे महान नेताओं से सुसज्जित दल ने तो बाबा को हाथोंहाथ उठा लिया या यूँ कहिये कि उन्हें गोद ले लिया.अन्ना के झटके के बाद भाजपा और संघ को बाबा से ही उम्मीद थी.जो लोग खुलकर अन्ना के साथ भ्रष्टाचार और लोकपाल के लिए लड़ाई लड़ना चाहते थे वे उनके राजनैतिक दल बनाने से इस पुण्य-कार्य से वंचित हो गए थे.अब बाबा ने ऐसे सभी देशप्रेमी भक्तों के लिए अपना मंच खुला छोड़ दिया है.

बाबा का मुख्य मुद्दा कालेधन को लेकर रहा है.इस विषय में कांग्रेस और कम्युनिस्टों के अलावा तकरीबन सभी दलों ने पूरा सहयोग देने की प्रतिज्ञा बाबा से कर ली है.लगता है कि कांग्रेस ने इस पर समर्थन न देकर यह मान लिया है कि स्विस खातों में उसके कुछ नेताओं के पैसे हो सकते हैं पर बाकियों ने समवेत-स्वर से इसकी वापसी की सहमति देकर अपने को पाक-साफ़ घोषित कर लिया है.इस तरह जो बाबा के साथ हैं,उनका देश-विदेश का सारा पैसा अपने-आप सफ़ेद हो गया है.इस मामले में कांग्रेस चूक गई है.बाबा तो उसके भी धन को सफ़ेद करना चाहते थे.उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया था कि यदि सरकार उनसे बात कर लेती तो कांग्रेस ही नहीं पूरी सरकार को वे शुद्धता-प्रमाणपत्र जारी कर देते !

बाबा ने अपने आखिरी उद्बोधन में देश के आखिरी आदमी के सपनों की बात कही.गाँधी,जेपी और लोहिया को याद किया.साथ में वहीँ से ऐलान किया कि चौटाला,पवार,माया,मुलायम आदि की पार्टियां उनके इस मिशन में साथ हैं.इसमें सबसे बड़ी भूमिका राष्ट्र-भक्त पार्टी की है और उसके कई नेता उजले और सफ़ेद कपड़े पहनकर मंच में बोलते दिखाई भी दिए.उन पर उपस्थित जनता का इतना भरोसा रहा कि उनसे किसी ने यह भी नहीं पूछा कि पाँच साल सत्ता में जब वे रहे थे तो क्या काला धन या भ्रष्टाचार नहीं था ?

इतने सारे ईमानदार नेताओं को बाबा की इस मुहिम में देखकर लगता है कि सारा भ्रष्टाचार केवल आम आदमी का है.पूरे देश में किसी अफ़सर,बाबू या नेता या उद्योगपति के पास कोई काला धन नहीं है.स्विस बैंक में जमा धन केवल कांग्रेसियों का है और वही काला है.इस तरह से बाबा की महाक्रांति ने शुरुआत में ही काफ़ी बड़ी मात्रा में कालेधन को सफ़ेद कर दिया है.यदि आपके पास भी है तो बाबा की शरण में चले जाओ,चमत्कार हो जायेगा !

बुधवार, 15 अगस्त 2012

देश के नाम सालाना संबोधन !

१५/०८/२०१२ को 'जनसंदेशटाइम्स' में



प्यारे देशवासियों !
हम आपसे पैंसठवीं बार मिलकर महान आनंद का अनुभव कर रहे हैं.पिछले कई सालों से जारी भारी  दुष्प्रचार के बावजूद हमने अपने देश की अखंडता,एकता और धर्मनिरपेक्षता की पूरी मजबूती के साथ रक्षा की है.जब देश आजाद हुआ था,हमने गाँधीजी के नेतृत्व में एक संकल्प लिया था कि भारत को उसके सुनहरे दिन लौटायेंगे,अपनी सारी योजनाएं आखिरी आदमी तक पहुँचायेंगे और यकीन मानिये हमने इस कार्य में उल्लेखनीय प्रगति की है.अपने देश का सारा सोना हमारे सुरक्षित हाथों में है,जो छुट्टा और बड़ी मात्रा में धनराशि है,उसे सुरक्षा के लिहाज़ से बेहद गोपनीय स्विस बैंकों में रखवा दिया गया है.आम जनता के पैसे को भी हमने गलत हाथों में जाने से रोकने के लिए बाबुओं,सिपाहियों और अधिकारियों का त्रि-स्तरीय सञ्चालन-तंत्र तैयार कर दिया है,जिनसे बचकर और छनकर कोई भी रकम इधर-उधर नहीं जा सकती है.
ऐसा नहीं है कि हमने केवल आर्थिक-स्तर पर ही ऐसे क्रांतिकारी सुधार किये हों ! देश के किसानों के लिए हमने एक बलिदानी-जत्था तैयार किया है जो समय पड़ने पर आत्माहुति देने से पीछे नहीं हटते हैं.हमारे सैनिक हमेशा सीमाओं पर दनादन गोली खाने को तत्पर रहते हैं.उनके रहते,आपके धन की सुरक्षा करने में हमसे कोई कोताही नहीं हो सकती.हम देश की पुरानी परम्पराओं के भी ज़बरदस्त पोषक हैं और इसके लिए ‘अतिथि देवो भव’ का मान रखते हुए देश के दुश्मनों को बिरयानी खिलाने का पुरजोर इंतजाम किया गया है,भले ही इस पुण्य-कार्य में हमारा आखिरी आदमी भूख से शहीद हो जाय.हम अगली योजना से ऐसे शहीद को ‘भारत-रत्न’ का ख़िताब देने की सोच रहे हैं.इससे गाँधीजी का वह सपना भी पूरा हो सकेगा ,जिसमें उन्होंने ‘इस’ आदमी की खबर लेने की बात की थी.
हमने देश के लोगों को उनके मौलिक अधिकार देने के लिए भी ठोस कदम उठाये हैं.उन्हें किसी भी आन्दोलन में झंडे ले जाने और फहराने की पूरी स्वतंत्रता दी है,पर इसमें एहतियात बरतते हुए इसका डंडा अपने पास रखा है.झंडा कोई भी और कहीं भी फहरा ले पर डंडा हमारा ही रहेगा.हम देश की चाबी को असुरक्षित हाथों में नहीं जाने देंगे,यह हम आपको विश्वास दिलाते हैं.अगर झंडे के साथ डंडा भी दूसरे के हाथ में चला गया तो देश में अराजक स्थिति फ़ैल जायेगी.डंडे के इतने ज़्यादा वारिस पैदा करने की फ़िलहाल कोई योजना नहीं है.गाँधीजी ने आज़ादी के वक्त जिसके हाथ में डंडा पकड़ाया था,वह वहीँ रहेगा और वहीँ से उठेगा.
हम जनता के बहुत आभारी हैं,जिसने हमें बराबर सम्मान और विश्वास दिया है.इसके बने रहने के लिए भी हमने युद्ध-स्तर पर कार्रवाई शुरू कर दी है.लोगों को जाति और धर्म की टॉनिक का नियमित रूप से सेवन करवाया जा रहा है.इनके सेवन से भूख-प्यास और काम की माँग को नियंत्रित करने में बहुत मदद मिलती है.इसके प्रभाव से लोग मजे-मजे में मर लेते हैं और हमें देश को मज़बूत करने का मौक़ा मिल जाता है.
आप सब की खुशहाली को देखकर हम बिलकुल निश्चिन्त हैं.हमारे देश में भ्रष्टाचार से लोग दुखी हैं,यह कोरी अफवाह है,इससे यह सिद्ध हो गया है.हमको तो लगता है कि कुछ विदेशी ताकतें नहीं चाहतीं कि भारत प्रगति के रास्ते पर बढ़े,पर हमें आप पर पूरा भरोसा है कि आप हमारे साथ हैं और ऐसे ही अपना स्नेह बनाये रखेंगे !
जयहिन्द !

सोमवार, 13 अगस्त 2012

मानसून और सरकार की जंग !

                                                                                                                                                                       !    

नेशनल दुनिया में २८/०७/२०१२ को

जनसंदेश में २६/०७/२०१२ को !

हमारी सरकार बड़ी समझदार है.अब जब मानसून ने मौसम विभाग की बार-बार बढती तारीखों के बाद भी आने से साफ़ मना कर दिया है तो सरकार-बहादुर ने भी मान लिया है कि इस साल सूखा ही रहेगा.आम लोग वैसे भी मौसम विभाग के उलट सोचते हैं.जब वह यह कहता है कि बारिश होगी,समझो पक्का नहीं होगी और जब वह कहता है कि बारिश का अभी समय नहीं है तो ज़रूर बारिश होती है.ऐसा आम आदमी तो सोच और मान सकता है पर सरकार नहीं.मौसम-विभाग आखिर उसका अपना ही अंग है.

मानसून के इस रवैये ने बहुतों को निराश किया है.आम आदमी जहाँ उमस भरी गर्मी से निज़ात पाने की उम्मीद कर रहा है, वहीँ सरकारी-अमला बारिश के बाद मिलने वाले काम की जुगत में लगा है.बारिश के बाद बाढ़-राहत कार्यक्रम से पीडितों को भले ही न राहत पहुँचे,पर हमारे अफ़सर ज़रूर तर हो जायेंगे.वैसे अभी भी वो अपने लिए मौका तलाश रहे हैं कि सरकार बारिश का इंतज़ार खत्म करके पूरी तरह से देश को सूखा-ग्रस्त घोषित कर दे.ऐसा होने पर भी उनके लिए धन की बारिश तो हो ही जायेगी.सरकार भी काम करती हुई दिखेगी.अभी न वो सूखे से निपट पा रही है न बारिश का मोह छोड़ रही है.

अगर बारिश हो जाती तो लेखक,कवि भी अपने में नयापन ला पाते,जबकि अभी उनके लिखने में भी सूखा पड़ा है.बारिश के न होने पर सबसे ज़्यादा व्यंग्यकार दुखी हैं.ज़्यादा बारिश के होने से जो अव्यवस्था फैलती,उनके लिए उसमें मीन-मेख निकालना उतना ही आसान होता.अभी सरकार को मानसून से निपटने का सही समय भी नहीं मिल पाया है.पहले वह राष्ट्रपति के चुनाव में व्यस्त थी,फ़िर उसमें दो-नंबर की लड़ाई से उसे इस ओर सोचने का वक्त ही नहीं मिला.यहाँ तक कि कृषि मंत्री दो नम्बरी बनने के लिए सरकार से अलग होने की बात कर रहे हैं.हमें तो लगता है कि इस मुद्दे पर मानसून अपने विभागीय मंत्री के साथ है,तभी उसने वह सरकार से नाराज़ होकर खुद का बरसना मुल्तवी कर रखा है.उसके बदले मंत्रीजी ही बरस रहे हैं.यह बात अब सरकार को भी समझ आ रही है.

वैसे शुरू से देखा जाय तो हमारा मौसम विभाग हमारा नहीं मौसम का वफादार रहा है.जैसे-जैसे दिन गुजरते जा रहे हैं,विभाग भी मानसून के आने की तारीख बढ़ा रहा है.इस तरह मानसून को मौसमी-राहत मिल रही है कि वह अपने आने की तारीख को अपने हिसाब से तय करे. मुझे तो लगता है कि हमारे हवाई-मंत्री की बादलों से इस सम्बन्ध में बात भी हो गई है कि जब तक सरकार के अंदर दो-नंबर का मुद्दा हल नहीं हो जाता है तब तक वे उमड़ते-घुमड़ते रहें पर बरसने की कतई ज़रूरत नहीं है.अगर ऐसा हुआ तो उन बादलों को मुंम्बई में भी घुसने नहीं दिया जायेगा.

अब ताज़ा हाल है कि सरकार ने सूखे को आने की हरी झंडी दे दी है.हो सकता है कि कृषि-मंत्रालय की खाली हुई सीट भी उसे दे दी जाय.इस तरह पवार और पावर की कमी को आसानी से दूर किया जा सकता है,भले ही इसके लिए सूखा-राहत का अलग से एक विशेष प्रकोष्ठ बनाकर सूखे और भूखे लोगों का पुनर्वास कर दिया जाय !

रविवार, 12 अगस्त 2012

आओ,ठाकुर आओ !

जनसंदेश में ०८/०८/२०१२ को प्रकाशित



आओ ,ठाकुर आओ !
---संतोष त्रिवेदी
बहुत दिनों के बाद भ्रष्टाचारजी को अट्टहास करने का मौका नसीब हुआ है.जब से अन्ना ने कहा है कि वे अब देश को सुधारने के लिए राजनीति में उतरेंगे,तभी से महोदय की बांछें खिल गई हैं.उन्हें अपने देश के इतिहास पर पूरा भरोसा है कि अभी तक राजनीति से देश को नहीं अपने को ही सुधारने का पुण्य-कार्य किया गया है.इसलिए इस पुरातन-परंपरा के निर्वाह में कोई दिक्कत नहीं आनी चाहिए.

वैसे तो भ्रष्टाचारजी पिछले साल से ही खूब निश्चिन्त रहे हैं.उनके साठ सालों से अधिक के अनुभव ने उनमें इतना आत्मविश्वास भर दिया है कि सारी दुनिया अन्ना के आन्दोलन से झूम रही थी और वह घोड़े बेंचकर सो रहे थे.उन्हें अपनी टीम के पुराने और वफादार कारिंदों पर पूरा भरोसा था कि वे अपने काइंयापन से एक-एक प्रस्ताव और वादे की हवा निकाल देंगे और ठीक ऐसा ही हुआ.आदरणीय में इसलिए भी गज़ब का आत्मविश्वास था कि ऐसे अनुभवी कारिंदों ने हर दल में अपनी घुसपैठ बना ली है और इनमें से कई को ऐसे टुटपुन्जिये आंदोलनों के गुब्बारे फोड़ने में महारत हासिल है.

भ्रष्टाचारजी की खुशी इसलिए भी दूनी हुई है कि अभी तक अन्ना राजनीति के अखाड़े से बाहर उछल रहे थे,पर अब जब इसके अंदर घुसेंगे तो उनके महारथी ऐसे नौसिखुओं को मिनटों में धूल चटा देंगे.राजनीति के अखाड़े में जो भी दल पहलवानी कर रहे हैं,उन्हें धोबीपाट से लेकर दुलत्ती,कमरतोड़ जैसे साम,दाम वाले दाँव खूब आते हैं.इस क्षेत्र में भ्रष्टाचारजी ने इतना तगड़ा निवेश कर रखा है कि पहलवान तो पहलवान,रेफरी तक उनकी सेवाभावना से अभिभूत हैं.

सबसे ज़्यादा खुशी राजनीति के मैदान में सक्रिय पहलवानों को हुई है.वे लोकपाल जी को तो पहले ही पटखनी दे चुके हैं.चाहे सड़क हो या संसद हो,सभी पहलवानों ने सर्व-धर्म समभाव से उनको आने से पहले ही मोक्ष दे दिया.अब अन्ना टीम के सदस्यों को भी ये पहलवान बड़ी हसरत भरी निगाह से देख रहे हैं.अपने को चोर,डाकू और न जाने क्या-क्या कहने वाले जब अखाड़े में कूदेंगे,तो ये उनको अभिमन्यु की तरह रगड़कर सारा हिसाब चुकता कर लेंगे.

भ्रष्टाचार जी अपनी सर्वव्यापकता को लेकर अब तो आत्ममुग्धता की स्थिति में पहुँच गए हैं.उनकी इन्ही आँखों के सामने कितने लोग ईमानदारी का ढोल पीटने आए और आखिर में अपना फटा हुआ ढोल लेकर दुनिया से ही गुम हो गए.ऐसे लोगों को जनता भी जल्द भूल जाती है,यह श्रीमानजी अच्छी तरह से जानते हैं.इनके कार्यकर्ताओं ने अन्ना टीम पर दोहरा धावा बोला.एक तो उन्हें कभी तीन दिन,कभी तेरह दिन भूख से तड़पाया तो कभी कहा कि ये सब ड्रामा है,विदेशी हाथ है.एक कार्यकत्ता ने तो लोकपाल दादा को लाने के लिए इन लोगों को संयुक्त राष्ट्र जाने की सलाह भी दे दी.

अब जब अन्ना टीम सारे दाँव आजमाकर भ्रष्टाचार जी से स्वर्ण-पदक नहीं ले पाई तो सीधे अखाड़े में ही कूद गई है.ऐसे में काजू और बादाम के तेलों से सने भ्रष्टाचार जी के पहलवान आतुरता से उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं ताकि जल्द से जल्द उनको चारो खाने चित्त कर सकें.इसलिए भ्रष्टाचार जी इन दिनों शोले का एक डायलॉग गुनगुना रहे हैं,”आओ,ठाकुर आओ !”



तुसी लन्दन ज़रूर जाओ !



२१/०७/२०१२ को जनसंदेश में !


तुसी लन्दन ज़रूर जाओ !

अगले महीने लन्दन में ओलम्पिक खेल होने वाले हैं.हर देश की तरफ से खूब ज़ोर-आज़माइश हो रही है कि उसका वहाँ पर अच्छा प्रदर्शन कैसे हो,पर हमारे देश में इस बात पर लट्ठ चल रहा है कि वहाँ कौन-कौन जाए ! पहले भूपति और पेस को लेकर खूब रार मची तो पाया गया कि इसके लिए दो टीम बना दी जांय,जिससे सब लोग अडजस्ट हो सकें.अब जब खेल के खिलाड़ी तय हो गए तो राजनीति के खिलाड़ी क्यों पीछे रहते ? इनका नया खेल शुरू हो गया है और लगता है कि यह ओलम्पिक का सबसे दिलचस्प इवेंट होगा.

हमारे यहाँ कामनवेल्थ खेलों में दोनों हाथों से कुल्हाड़ी मारकर पैसा बटोरने वाले नेता को अदालत ने ओलम्पिक में शामिल होने की छूट दे दी तो उनको ग़लतफ़हमी हो गई है कि वे ओलम्पिक खेलों के लिए क्वालीफाई कर गए हैं.इस आदेश से वे बहुत खुश हैं और उन्हें पक्का यकीन है कि यदि वे वहाँ गए तो कामनवेल्थ खेलों से भी ज़्यादा नाम कमाकर वहाँ से लौटेंगे.फ़िर,हमारे एथलेटिक्स के एक कोच ने भी कहा है कि कुल्हाड़ी जी के रहते खिलाड़ियों को ज़बरदस्त प्रेरणा मिलेगी.वे उन्हें स्टेडियम में देखते ही जोश से भरकर दौड़ लगाएंगे.जो व्यक्ति कामनवेल्थ से सीधे ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई कर गया हो,बिना खेल के खूब खेलता हो,वह तो सबसे बड़ा खिलाड़ी हुआ ना ?

इधर कुल्हाड़ी जी बढती हुई लोक-प्रियता से मंत्री मक्खन सिंह खासे नाराज़ हैं.उन्होंने पहले बकायदा फरमान जारी किया कि वे लन्दन कतई नहीं जा सकते,पर बाद में अपनी हैसियत को सिकोड़ते हुए बोले हैं कि उनसे अपील की जाती है कि वे हमारी नाक का ख्याल रखें.अब मक्खन सिंह को कौन समझाए कि कुल्हाड़ी जी की नाक तो इस समय ज़मानत पर है फ़िर वो हमारी नाक से ही तो काम चलाएंगे.ऐसे में वह नाक ऊंची करने का कोई मौका क्यों छोडना चाहेंगे ? ओलम्पिक में जहाँ बड़े-बड़े खिलाड़ी जाने के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाते,वहाँ अगर वो जा पा रहे हैं तो इससे हमारी नाक ही ऊंची हो रही है.कुल्हाड़ी जी ने कह दिया है कि मक्खन सिंह अपनी नाक बचाएं,देश को हमारे भरोसे छोड़ दें.

मुझे लगता है कि कुल्हाड़ी जी को लन्दन ओलम्पिक में अवश्य जाना चाहिए.खेलों में तो हमारी रेटिंग की वज़ह से ब्रिटिश-मीडिया हमें कोई भाव ही नहीं देगा.अगर ऐसा खिलाड़ी हमारे पास है जो बिना खेले करोड़ों में खेलता है तो ज़रूर उस पर वहाँ कवर-स्टोरी छापी जायेगी.दूसरी सबसे खास बात है कि लन्दन-ओलम्पिक के प्रशासक भी उनके आने से खासे उत्साहित हैं.उन्हें कुल्हाड़ी जी ऐसी-ऐसी नायाब टिप्स दे देंगे कि वे भी नाले,पुल,रेलिंग,स्टेडियम आदि में कमाई के निर्वात-स्थान को आसानी से खोज लेंगे.उन अधिकारीयों को यह भी सुखद अहसास है कि ऐसे अविकसित मुल्क में यदि कोई बन्दा खुद इतना विकसित हो जाता है,उसका कुछ बिगड़ता नहीं है,तो ज़रूर उसमें अलग खासियत होगी.अब तो उन अफसरों को लगने लगा है कि कुल्हाड़ी जी के आने से जेम्स-बांड भी उनका कुछ बिगाड़ नहीं पायेगा.



इसलिए हम तो कहते हैं कि कुल्हाड़ी जी को लन्दन ज़रूर जाना चाहिए.हमारे देश की नाक कम-से-कम किसी बात में ऊंची तो हो !


क्या करें ,कंट्रोल नहीं होता...?

'जनसंदेश' में शीर्षक बदलकर ०२/०८/२०१२



                  क्या करें,कंट्रोल नहीं होता !


                                                    ---संतोष त्रिवेदी

जब से अखिलेश भैया की सरकार बनी है,तभी से नेताजी के पुराने पहलवान खुंदक खाए बैठे हैं.सरकार बनने के साथ ही उन्होंने अपने अंदाज़ में जब खुशी मनानी शुरू की थी तभी उनको टोक दिया गया था कि अब वो पुराने दिन भूल जाओ.सत्ता से बाहर रहकर लम्पटई करना अलग बात है .तब फोटू ही तभी खिंचती है जब आप हल्ला-गुल्ला मचाएं.सत्ता में रहकर अपनी इमेज को बिलकुल वाशिंग-मशीन से धुलकर रखना पड़ता है,लेकिन नेताजी के हल्ला-बोल अभियान के कार्यकर्त्ता क्या करें ? उनको एकदम से नए ‘मोड’ में आना मुश्किल पड़ रहा है.

जब नेताजी विपक्ष में थे,तब हल्ला-बोल आन्दोलन की अपनी अहमियत थी.इस दल में लाठी-डंडों से लैस पूरी एक सेना थी जो पब्लिक,सरकार और मीडिया पर अपने अनूठे अंदाज़ से टूट पड़ती थी.तब उनसे यह वायदा किया गया था कि सरकार के आने पर उनको काम दिया जायेगा.इसके लिए बकायदा यह एलान कर दिया गया था कि यदि उत्तर-प्रदेश में समाजवाद आया तो मूर्तियों को गिरा दिया जायेगा जिससे प्रदेश में रोज़गार के ज़बरदस्त अवसर सृजित होंगे.पर हुआ ठीक इसके उलट,जैसे ही नेताओं को सत्ता का रोजगार मिला,कार्यकर्ताओं को भुला दिया गया.

अखिलेश भैया ने सत्ता में आते ही घोषणा कर दी थी कि अब मूर्तियों को नहीं गिराया जायेगा इससे पहलवान-टाइप कार्यकर्त्ता बेचैन हो उठे .उन्हें अपनी तेल से सनी लाठी की चिंता सताने लगी है कि अब उसका क्या होगा ?हल्ला-ब्रिगेड के सदस्य इसलिए भी उत्तेजित होने लगे हैं कि भैया के चाचा कई इंजीनियरों को दनादन सस्पेंड करके अपना पुनर्वास तो कर ले रहे हैं,पर उनके रोज़गार की चिंता किसी को नहीं है.यहाँ तक कि सरकार के कई मंत्री ‘ट्रांसफर-पोस्टिंग’ के नेक काम से उजली कमाई में लगे हैं .ऐसे में सारी बंदिशें उन्हीं पर क्यों लागू होती हैं ?इसलिए बहुत दिनों से भरे बैठे कार्यकर्ताओं ने लखनऊ में माया की काया तोड़कर सिर्फ छोटा-सा शक्ति-प्रदर्शन किया है.यह बताने के लिए कि उनके हल्ले को हल्के में न लिया जाय.

हल्ला-बोलियों के इस कृत्य की खबर जैसे ही अखिलेश भैया को मिली कि मूर्ति से धड़ और पर्स गायब है तो सब काम रोककर रातोंरात नई मूर्ति लगवा दी.आखिर इन्हीं मूर्तियों के बल पर वो सत्ता में आए हैं इसलिए उनके बने रहने के लिए इनका बचे रहना ज़रूरी है.सबसे ज़रूरी बात यह है कि किसी भी तरह जनता में यह सन्देश न जाए कि यह सरकार निकम्मी है.जो सरकार पत्थर की मूर्तियों के प्रति इतनी संवेदनशील दिखती है वह चलती-फिरती जनता का कितना ख्याल रख सकती है,यह उसने बिलकुल साफ़ कर दिया है.

माया मेमसाब इस मामले में चुप हैं.उन्हें लगता है कि जीते जी अपनी मूर्तियां स्वयं बनवाने का जो इलज़ाम विपक्ष लगातार लगाता आ रहा था उसी के द्वारा इन्हें बनवाकर स्थापित होने से बढ़िया क्या बात होगी ? अब तो उन्हें साफ़ लगता है कि इन मूर्तियों को अगर ढहा दिया जाय तो उन्हें सत्ता के लिए पांच साल का इंतज़ार भी नहीं करना पड़ेगा.इसलिए मूर्तियों के रहने से अधिक फायदा इन्हें ढहाने में है,पर नेताजी के सारे पहलवान अभी खुलकर नहीं आ रहे हैं.

बहरहाल,समाजवादियों की नई प्रदेश नव निर्माण सेना ने इस बात का संकल्प लिया है कि अखिलेश भैया भले ही नेताजी का एजेंडा भूल जांय पर वो प्रदेश में हर हाल में इस तरह का तोड़क-अभियान जारी रखेंगे.इस बात की खबर भैयाजी तक पहुंचा दी गई है जबकि दूसरी तरफ नेताजी की इस ब्रिगेड को अंदरूनी निर्देश दिए गए हैं कि अब जब सत्ता मिल गई है तो अपनी-अपनी लाठियाँ अखाड़ों में ही धर दी जांय !

पर क्या करें,कंट्रोल नहीं होता :-)

रीढ़ विहीनता का दौर !

नेशनल दुनिया में १४/०७/२०१२ को प्रकाशित


देश में अचानक रीढ़ वाले नेताओं की मांग बढ़ गई है.जब से राजनीति में अपनी गोटी गड़बड़ाई है,एक प्रदेश की मुख्यमंत्री ने सरे-आम यह पर्दाफ़ाश किया है कि हमारे यहाँ रीढ़विहीन नेताओं की संख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ी है.गोया ऐसे नेता रातोंरात पैदा हो गए हों ! यह तो इन नेताओं के ऊपर सरासर अन्याय है और यह पहचान उनको कैसे हुई यह भी गंभीर सोच का विषय है. रीढ़ नापने का कोई नया यंत्र तो हाल-फ़िलहाल इजाद भी नहीं हुआ है फिर कैसे उन महोदया ने ऐसी मेडिकल-रिपोर्ट जारी कर दी ?

याद आता है कि जब यही महोदया विपक्ष में थी तो लोकतंत्र और नागरिकों के मूल-अधिकार की बात पर रोज़ हो-हल्ला मचता था,बड़े-बड़े जनांदोलन खड़े किये जाते थे.ज़ाहिर है कि यह सब बिना रीढ़ की हड्डी के संभव नहीं था.सत्ता में आते ही अपने विरोधियों को सबक सिखाना,प्रेस के सवालों के जवाब न देना,अपनी सरकार की आलोचना करने वाले दो प्रोफेसरों को कारण बताओ नोटिस थमाना,व्यक्तिगत खुंदक के लिए माटी-मानुष का लिहाज़ न करना,रेल-मंत्रालय को निजी जागीर बना लेना आदि ऐसे काम इतनी सरलता से किये गए जिनमें किसी रीढ़ की हड्डी का काम ही नहीं पड़ा.इस हड्डी के होने से जहाँ काम करने में असुविधा होती है वहीँ इसके अभाव में व्यक्ति कैसे भी,किधर भी आराम से झुक या लपक सकता है.

बिना रीढ़ के होने का एक फायदा यह भी है कि संसद-भवन के अंदर आसानी से घुसा जा सकता है.उसके दरवाजे पर लगा सुरक्षा-यंत्र उस शख्स को बेरोक-टोक अंदर जाने देगा,जिसके रीढ़ की हड्डी नहीं है.ऐसी हड्डी होने पर वह यंत्र बीप-बीप कर सकता है.इसलिए यह अच्छा है कि संसद के अंदर ऐसे लोगों की संख्या बढ़े.दूसरे,ऐसा होने पर किसी भी सरकार को कोई अड़चन भी नहीं आ सकती.किसी खास मुद्दे पर सरकार के मनेजर जब चाहें तब ऐसे लोगों की सेवाएं ले सकते हैं.

आखिर ,फिर रीढ़-विहीन लोगों की बढती तादाद को लेकर इतना हल्ला क्यों मचाया जा रहा है,गहरी निराशा क्यों जताई जा रही है.हाँ,एक बात हो सकती है ,यदि ऐसे लोग प्रचुर मात्रा में सुलभ हो जायेंगे तो नखरे सहने की रेटिंग घट जायेगी,बाज़ार-भाव घटेगा सो अलग ! यही एक बात परेशान करनेवाली है कि जमे-जमाये रीढ़-विहीन लोगों के रहते अगर नई आमद पर रोक न लगाई गई तो क्या होगा ? इस सन्दर्भ में आने वाले दिनों में समर्थन की कीमत पर यह प्रस्ताव भी लाया जा सकता है कि आगे से पूरी सावधानी बरती जाय कि रीढ़-विहीन लोग बिना कोटे के न आवें.यदि ऐसे लोगों का आना ज़रूरी ही है तो  इनकी ही संतानों को,इनकी ही प्रजाति के लोगों को प्राथमिकता दी जाय !

रही बात रीढ़ वाले लोगों की, सो उनकी यहाँ ज़रूरत नहीं है.वे खेतों में,कार्यालयों में,विद्यालयों में मुस्तैदी से काम करें.अगर उनकी रीढ़ की हड्डी मज़बूत रहेगी तो ठीक से हल चलेगा,कुर्सी और कम्यूटर पर बैठकर काम हो सकेगा और जब किसी नेता को आन्दोलन करने की ज़रूरत पड़ेगी तो पुलिसिया-लाठीचार्ज में उनकी हड्डियां टूटने के काम आ सकेंगी ! इसलिए हमें भी लगता है कि रीढ़ की हड्डी केवल आम आदमी के लिए ही ज़रूरी है !

अंतरात्मा की आवाज़ के फायदे !

नेशनल दुनिया में ०४/०७/२०१२ को प्रकाशित


अंतरात्मा की आवाज़ के फायदे !

इधर हालिया दिनों में फिर से अंतरात्मा की आवाजें चर्चा में हैं.यह आवाजें खासकर हमारे नेताओं को बिलकुल उचित समय पर सुनाई देती हैं और वे तुरत इन्हें अपने चाहने वाले प्रजाजनों तक पहुंचा देते हैं.जब भी कोई बड़ा नेता अपने काम को जायज और असरदार ठहराना चाहता है तो तड़ से उसे वर्षों से सोई बेचारी निरीह पड़ी आत्मा की आवाज़ अचानक सुनाई देने लगती है.इसका उसे ज़बरदस्त फायदा भी होता है.बस इसकी टाइमिंग कमाल की होनी चाहिए,इसलिए जो अभ्यस्त और सिद्धि पाए हुये नेता हैं ,वो इससे फायदा उठाते हैं और जो नए खिलाड़ी होते हैं ,वे अपनी यह आवाज़ दूसरों को सुनाकर भी खाली हाथ रह जाते हैं.

कई वर्ष पहले की बात है जब एक किसान नेता ने उसे प्रधानमंत्री बनाये जाने पर अचानक अपने अंतरात्मा की आवाज़ सुन लि थी और कई अपनों की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए एक राजा को प्रधानमंत्री बना दिया था.बाद में वही अंतरात्मा जब दूसरी आवाज़ में उसे सुनाई दी तो उसको पदच्युत करने में भी बड़ी भूमिका निभाई थी.इस तरह यह आवाज़ इतनी ताकतवर होती है कि रंक को राजा और राजा को रंक बना देती है.

सबसे चर्चित आवाज़ पूरे देश ने तब सुनी थी जब इस देश की सबसे बड़ी पार्टी की नेता को चुनावों में बहुमत मिल गया था,वो अपने दल की नेता भी चुनी जा चुकी थीं,सब कुछ ठीक चल रहा था,पर ऐन शपथग्रहण से पहले अंतरात्मा जी ने ऐसी आवाज़ दी कि उन्होंने प्रधानमंत्री पद को एक इज्ज़तदार पगड़ी पहना दी.यह अंतरात्मा अब तक की सबसे शक्तिशाली अन्तरात्माओं  में थी,जिसने विपक्षी खेमे का खूँटा अगले कई सालों के लिए उखाड़ दिया.इस अंतरात्मा की आवाज़ का एक खास समय था,उसके बाद तो वह आवाज़ ऐसा घोड़ा बेंच कर सोई कि देश के किसी भी मुद्दे में इतना दम ही न रहा कि उसे जगा सके.

ऐसा नहीं है कि विपक्ष के नेता के पास यह हुनर न हो,पर क्या कहें ,किस्मत ही दगा दे गई.उसके एक बड़े नेता की अंतरात्मा ने तब आवाज़ दी जब वे पाकिस्तान गए हुए थे.इसके लिए उन्होंने अपनी सालों की अर्जित की हुई पुण्याई दांव पर लगा दी,पर जिन्ना साहब को सेकुलर बताना भी काम न आया और उनकी प्रधानमंत्री बनने की ललक पर हमेशा के लिए मट्ठा पड़ गया.इस दुर्घटना के पहले इसी दल के उदारवादी प्रधानमंत्री को भी गुजरात के विषय में अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनाई दी थी पर उन्होंने इसे सबको सुनाया ही नहीं और इस तरह उन्होंने वह स्वर्णिम अवसर गँवा दिया,जिसका अब तक कइयों को अफ़सोस है.

अभी हाल में राष्ट्रपति चुनाव के समय भी हमारे पूर्व राष्ट्रपति जी को ऐसा ही इलहाम हुआ और अपनी अंतरात्मा की आवाज़ पर चुनाव लड़ने से ही इंकार कर दिया,जिससे उनसे अधिक परेशानी उन भाई-बहनों को हुई थी जिनकी अंतरात्माएं इस समय कहीं प्रवास पर गई हुई हैं.बहरहाल इन्हीं राष्ट्रपति महोदय ने आठ साल पहले वाली बड़ी नेता की अंतरात्मा की आवाज़ को अपनी लिखी हुई किताब से सबको सुनाकर खलबली मचा दी है.कई लोग तब से लेकर उस आवाज़ का देशी-विदेशी तरह से पोस्टमार्टम कर रहे थे,अपनी राजनीति को प्राणवायु दे रहे थे,पर यह धक्का इतना गहरा लगा है कि उन्हें आगे का भविष्य फिर से धुंधला दिखाई दे रहा है.अब ऐसी आवाज़ को उनके द्वारा सुनाने से उस कमज़ोर पड़ती आवाज़ को और बल मिल गया है.दुर्भाग्य तो इन महाशय का रहा कि अगर यही आवाज़ महीने-दो महीने पहले बाहर आ जाती तो इन्हें भी भरपूर फायदा मिल सकता था.हो सकता है,हमारे अगले राष्ट्रपति वही होते !

पर,बात यही है कि बिना सही टाइमिंग के ऐसी आवाजें अपना असर खो देती हैं.

             

शनिवार, 11 अगस्त 2012

बस,प्रधानमंत्री सेकुलर होना चाहिए !

नेशनल दुनिया,२६ /०६/२०१२
जनसंदेश टाइम्‍स 27 जून 2012


हमारे देश को यूँ ही नहीं महान कहा जाता है.यहाँ के नेता तो इससे भी अधिक महान हैं.देश की इन्हें इतनी चिंता होने लगती है कि जितना कभी इन्होंने अपने घर-परिवार के बारे में नहीं सोचा होगा.अभी देखो,राष्ट्रपति के लिए होने वाले चुनाव में ये नेता जी-जान से लगे हुए हैं.सत्तापक्ष ने तो जैसे-तैसे अपनी पिटारी खोल दी थी,पर विपक्ष को पिटारी खोलने में ही डर लग रहा था.उसे आशंका थी कि कहीं पिटारी अंदर से खाली हुई तो और भद्द पिटेगी.इस चक्कर में बैठकों के कई दौर हो लिए तब तक दो-तीन समूह सत्तापक्ष की ही पिटारी पर अपना दाँव लगा बैठे.जब विपक्ष के बड़े भागीदार को कोई नहीं मिला तो बड़ी देर से बाहर से दौड़ते हुए को ही अपनी पिटारी से निकला दिखा दिया ! वह तो अच्छा हुआ कि उनको दौड़ लगाते हुए ही पकड़ लिया गया,नहीं तो वह लन्दन ओलम्पिक में होने वाली स्पर्धा के लिए क्वालीफाई कर जाते !
हमने महानता से बात शुरू की थी सो उसी पर अब आते हैं.जिस समय कुछ लोग राष्ट्रपति पद के लिए एकठो आदमी को ढूँढने में लगे हुए थे,उसी समय इन्होंने अगले प्रधानमंत्री को लेकर गंभीरता से सोचना शुरू कर दिया.एक तरफ बैठकों का लगातार दौर चल रहा था कि राष्ट्रपति के लिए किसको बलि का बकरा बनाया जाए,दूसरी तरफ एक महान और ज़मीं से जुड़े नेता ने सेकुलर प्रधानमंत्री की ज़रूरत पर ‘गोल्डन वर्ड्स’ पेश कर दिए.बस,हो-हल्ला मचना शुरू हो गया.मीडिया और राजनीति सामने खड़े राष्ट्रपति के चुनाव को भूलकर ‘सेकुलर-सेकुलर’ खेलने लगी.पता चला कि यह ‘सेकुलर-बम’ जानबूझकर अपनी ही पिटारी के एक विकास-पुरुष की ओर फेंका गया है.
इस ‘सेकुलर-बम’ की तीव्र भर्त्सना भी शुरू हो गई है.अजी,यह कौन निर्धारित करेगा कि फलाने सेकुलर हैं या नहीं ? यह तो अजीब मुसीबत हुई.अभी दलित,अल्पसंख्यक,आदिवासी आदि के नाम पर चयन हो जाता था,यह नई कैटेगरी कहाँ से आ गई ? आप किसी परिवार,वंश या वारिस के रूप में तो नेता चुन सकते हो पर इस नए पैमाने से निपटना मुश्किल है.इसे निर्धारित कौन करेगा ? इसी बीच इस ‘सेकुलर’ की आवाज़ के ज़वाब में एक प्रस्ताव यह भी आया,अजी सेकुलर ही क्यों,हिंदूवादी क्यों नहीं? इसका मतलब तो यही निकला जो पहला है वह दूसरा नहीं हो सकता या जो दूसरा है वह पहला नहीं !

अब तो मीडिया और हमारे महान नेताओं के बीच किसी के इंसान होने या न होने की कोई जिरह नहीं हो रही.बस,यह कि अगला सेकुलर है या हिंदूवादी,दलित है या सामान्य,अल्पसंख्यक है या बहुजन ! अब यह भी नहीं देखने की किसी को फुरसत नहीं है कि वो गूंगा है या बहरा,बस उसे खालिस सेकुलर होना चाहिए क्योंकि देश की सवारी करने के लिए इसी तरह के खाल के प्राणी की ज़रूरत है.प्रधानमंत्री बन जायेगा तो बाकी सभी योग्यताएं अपने आप आ जाएँगी या अयोग्यताएं ढँक जाएँगी.
हमारे देश के नेता महान इसलिए भी हैं कि जो काम सर पर है वह तो कर ही लेते हैं,लगे हाथों दो साल बाद का अजेंडा भी निपटा देते हैं.अब यह और बात है कि इस प्रक्रिया में कोई और निपट जाता है या हमारे गले लग जाता है? फ़िलहाल तो देश के नेता इसी बात में दुबले हुए जा रहे हैं कि अगला प्रधानमंत्री सेकुलर हो,भले ही इससे जनता के ऊपर मंहगाई का बोझ कम न पड़े या शासन-व्यवस्था अपरिवर्तित रहे . हमारे नेताओं के लिए अगली पंचवर्षीय योजना का इंतजाम अभी से हो जाय तो क्या दिक्कत है ?

अनुभवी अंतरात्मा का रहस्योद्घाटन

एक बड़े मैदान में बड़ा - सा तंबू तना था।लोग क़तार लगाए खड़े थे।कुछ बड़ा हो रहा है , यह सोचकर हमने तंबू में घुसने की को...