रविवार, 12 अगस्त 2012

आओ,ठाकुर आओ !

जनसंदेश में ०८/०८/२०१२ को प्रकाशित



आओ ,ठाकुर आओ !
---संतोष त्रिवेदी
बहुत दिनों के बाद भ्रष्टाचारजी को अट्टहास करने का मौका नसीब हुआ है.जब से अन्ना ने कहा है कि वे अब देश को सुधारने के लिए राजनीति में उतरेंगे,तभी से महोदय की बांछें खिल गई हैं.उन्हें अपने देश के इतिहास पर पूरा भरोसा है कि अभी तक राजनीति से देश को नहीं अपने को ही सुधारने का पुण्य-कार्य किया गया है.इसलिए इस पुरातन-परंपरा के निर्वाह में कोई दिक्कत नहीं आनी चाहिए.

वैसे तो भ्रष्टाचारजी पिछले साल से ही खूब निश्चिन्त रहे हैं.उनके साठ सालों से अधिक के अनुभव ने उनमें इतना आत्मविश्वास भर दिया है कि सारी दुनिया अन्ना के आन्दोलन से झूम रही थी और वह घोड़े बेंचकर सो रहे थे.उन्हें अपनी टीम के पुराने और वफादार कारिंदों पर पूरा भरोसा था कि वे अपने काइंयापन से एक-एक प्रस्ताव और वादे की हवा निकाल देंगे और ठीक ऐसा ही हुआ.आदरणीय में इसलिए भी गज़ब का आत्मविश्वास था कि ऐसे अनुभवी कारिंदों ने हर दल में अपनी घुसपैठ बना ली है और इनमें से कई को ऐसे टुटपुन्जिये आंदोलनों के गुब्बारे फोड़ने में महारत हासिल है.

भ्रष्टाचारजी की खुशी इसलिए भी दूनी हुई है कि अभी तक अन्ना राजनीति के अखाड़े से बाहर उछल रहे थे,पर अब जब इसके अंदर घुसेंगे तो उनके महारथी ऐसे नौसिखुओं को मिनटों में धूल चटा देंगे.राजनीति के अखाड़े में जो भी दल पहलवानी कर रहे हैं,उन्हें धोबीपाट से लेकर दुलत्ती,कमरतोड़ जैसे साम,दाम वाले दाँव खूब आते हैं.इस क्षेत्र में भ्रष्टाचारजी ने इतना तगड़ा निवेश कर रखा है कि पहलवान तो पहलवान,रेफरी तक उनकी सेवाभावना से अभिभूत हैं.

सबसे ज़्यादा खुशी राजनीति के मैदान में सक्रिय पहलवानों को हुई है.वे लोकपाल जी को तो पहले ही पटखनी दे चुके हैं.चाहे सड़क हो या संसद हो,सभी पहलवानों ने सर्व-धर्म समभाव से उनको आने से पहले ही मोक्ष दे दिया.अब अन्ना टीम के सदस्यों को भी ये पहलवान बड़ी हसरत भरी निगाह से देख रहे हैं.अपने को चोर,डाकू और न जाने क्या-क्या कहने वाले जब अखाड़े में कूदेंगे,तो ये उनको अभिमन्यु की तरह रगड़कर सारा हिसाब चुकता कर लेंगे.

भ्रष्टाचार जी अपनी सर्वव्यापकता को लेकर अब तो आत्ममुग्धता की स्थिति में पहुँच गए हैं.उनकी इन्ही आँखों के सामने कितने लोग ईमानदारी का ढोल पीटने आए और आखिर में अपना फटा हुआ ढोल लेकर दुनिया से ही गुम हो गए.ऐसे लोगों को जनता भी जल्द भूल जाती है,यह श्रीमानजी अच्छी तरह से जानते हैं.इनके कार्यकर्ताओं ने अन्ना टीम पर दोहरा धावा बोला.एक तो उन्हें कभी तीन दिन,कभी तेरह दिन भूख से तड़पाया तो कभी कहा कि ये सब ड्रामा है,विदेशी हाथ है.एक कार्यकत्ता ने तो लोकपाल दादा को लाने के लिए इन लोगों को संयुक्त राष्ट्र जाने की सलाह भी दे दी.

अब जब अन्ना टीम सारे दाँव आजमाकर भ्रष्टाचार जी से स्वर्ण-पदक नहीं ले पाई तो सीधे अखाड़े में ही कूद गई है.ऐसे में काजू और बादाम के तेलों से सने भ्रष्टाचार जी के पहलवान आतुरता से उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं ताकि जल्द से जल्द उनको चारो खाने चित्त कर सकें.इसलिए भ्रष्टाचार जी इन दिनों शोले का एक डायलॉग गुनगुना रहे हैं,”आओ,ठाकुर आओ !”



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