रविवार, 9 अक्तूबर 2022

चैनलों का जंगल-विमर्श

बहुत बड़ा जंगल था।थोड़ा अजीब भी था।दूसरे जंगलों की तरह इसमें आर-पार जाने की आज़ादी नहीं थी।कह सकते हैं,एक बड़ा बाड़ा जैसा था।उसमें किसी भी ऐरे-ग़ैरे जानवर की ‘एंट्री’ नहीं थी।प्रवेश के लिए बक़ायदा ‘रूलिंग’ थी।आज उसी जंगल में ख़ूब चहल-पहल थी।ख़बर थी कि धरती पर सबसे तेज भागने वाले चीता महाराज अपने दल-बल के साथ जंगल में पधार रहे हैं।इसलिए ब्रह्मांड के सभी ख्यात चैनल-वीर मोर्चे पर डटे हुए थे।नागरिकों के लिए दर्शन का पुख़्ता इंतज़ाम था।कुछ तो मचान पर चढ़ गए थे,बाक़ी ने दूर राजधानी से ही अपने कैमरों में दूरबीन लगा रखी थी।आख़िर इंतज़ार की घड़ियाँ ख़त्म हुईं।एकबारगी हज़ारों फ़्लैश की रोशनी के मध्य चीता श्री ने अपनी पहली झलक दिखाई।पहले तो आम दर्शक समझ ही नहीं पाए कि एंकर और चीते में असली चीता कौन है ! दरअसल रिपोर्टिंग में विश्वसनीयता बहाल करने के लिए चैनलों ने कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी।जंगल में विचरने से पहले चीता जी चैनल-चैनल चल रहे थे।दर्शक चीतों से पहले चीता-एंकर के कौतुक देखने लगे।पर जल्द ही कुछ समझदार दर्शकों ने वास्तविक चीते की पहचान कर ली।असल में,चीता जी तो आराम से टहलते हुए नज़र आ रहे थे पर चीता-एंकर फ़ुल-ड्रेस रिहर्सल के मूड में थे।इधर ड्रॉइंग रूम में बैठे कुछ दर्शक इन दृश्यों को देखकर लहालोट हो रहे थे।उन्हें इस बात का पक्का भरोसा था कि एंकर भले ही चीता-ड्रेस पहन कर उस जैसी आवाज़ निकाल ले पर वह चैनल चीर कर बाहर नहीं आ सकता।इस इत्मिनान ने रोमांच और बढ़ा दिया था।


यह सब घटित हो रहा था कि तभी एक उत्साही चैनल-बाला को कुछ ‘मौलिक’ करने की सूझी।उसने अपने स्रोतों के ज़रिए जंगल में पहले से ही एक ‘चिप’ प्लांट कर दी थी।कुछ देर बाद उसके अप्रत्याशित परिणाम आए।उसे एक ऐसी दुर्लभ क्लिप मिली जिसमें नवागंतुक चीता श्री और उनके खान-पान की व्यवस्थापक चीतल कुमारी जी बिन दहाड़े बातचीत करते पाए गए।शाम के ‘प्राइम-टाइम’ की यही ‘लीद-स्टोरी’ थी।आप सब के सामने उसी का संपादित अंश यहाँ प्रस्तुत है।


चीतल कुमारी थाल में स्वयं को सजाकर चीता श्री के सम्मुख अर्पित करते हुए बोलीं, ‘महाराज,इस अभयारण्य में आपका स्वागत है।आप के खान-पान में कोई असुविधा न हो,इसलिए हम अपने बंधु-बांधवों सहित आपकी सेवा में उपस्थित हैं।आप जिसको चाहें,वरण कर लें।’ चीता श्री यह सुनकर हँस पड़े।चीतल कुमारी की ओर अतिरिक्त अनुराग से देखते हुए पुरपुराए, ‘लगता है तुम बेहद भोली हो।जंगल के क़ायदे भी भूल गई ? हम वरण नहीं आक्रमण करते हैं।दूसरी बात,यहाँ केवल हमीं अभय हैं।यह तुम्हारे लिए ‘अभयारण्य’ कब से हो गया ? भई,जंगल-अधिपति हम और हमारा कुटुंब है।तुम्हारा जन्म ही हमारे जीवन के लिए हुआ है और हमारा पर्यावरण के लिए।इसलिए हमारे स्वागत के सिवा तुम्हारे पास कोई विकल्प नहीं है।यह हम पर निर्भर है कि तुम में से हम किस का समर्पण स्वीकारें।’


चीता श्री की यह दो-टूक व्यवस्था सुनकर चीतल कुमारी तनिक भी विचलित नहीं हुईं।उनके बड़े जबड़े में प्रविष्ट होने से पहले उन्होंने कुछ सवाल पूछने ज़रूरी समझे।‘हमने सुना है कि आप की प्रजाति विलुप्त हो रही थी।कहा जा रहा है कि प्रकृति-संतुलन बनाने के लिए आपकी उपस्थिति अनिवार्य है।इसलिए आपकी वंश-वृद्धि के लिए पूरी कायनात तत्पर हो गई।हम उसी ‘प्रोजेक्ट’ का हिस्सा हैं।हम भी चाहते हैं कि किसी बिगड़ैल नायक द्वारा रौंदे जाने या ‘शूट’ किए जाने के बजाय आपके श्रीमुख में पर्यावरण-रक्षा करते हुए समा जाएँ।आपके जीवन के लिए हम ज़रूरी हैं, इससे तो हमारी ही महत्ता बढ़ती है।इस पर आप हँस क्यों रहे हैं ?’ चीतल कुमारी का यह सवाल चीता श्री को पसंद नहीं आया।भोजन ग्रहण करते समय वह किसी तरह की बहस में नहीं पड़ना चाहते थे।बात टालने की गरज से वह धीरे से गरजे, ‘सरकार कभी हमें विलुप्त नहीं होने देगी और हम तुम्हें।आम ने हमेशा ख़ास का ध्यान रखा है।इसे जंगल की भाषा में ‘शिकार’ कहते हैं पर ‘राजपथ’ का यह ‘कर्तव्य’ है।और हाँ,तुम्हें आज ख़बर में जो एक कोना मिला है,इसका कारण हम हैं।इससे साफ़ है कि तुम्हारी खोज-ख़बर लेने वाला मेरे अलावा कोई नहीं है।आओ,हम दोनों मिलकर प्रकृति,पर्यावरण और राज्य की रक्षा करें !’


बस,उस ‘क्लिप’ में इतना ही दृश्य था।इससे आगे का ‘पर्यावरण-रक्षा’ कार्यक्रम संवेदनशीलता के चलते काट दिया गया था।इससे व्यक्तिगत रूप से मुझे काफ़ी मायूसी हुई।इतना कुछ देखने के बाद भी उकताहट बनी रही।अभी मन नहीं भरा था।रिमोट उठाकर दूसरे चैनल की बटन दबा दी।वहाँ चीता-विमर्श में पूरा पैनल लगा हुआ था।इनमें पर्यावरण-विशेषज्ञ,वन्य-प्रेमी और आधुनिक इतिहासकार आमंत्रित थे।कार्यक्रम का संचालन कर रहा एंकर पूरे जंगल को ही अपने स्टूडियो में उठा लाया था।जंगली-पशुओं के स्थान पर चर्चाकार जमे थे।पूरा माहौल जंगली था।सबका इतिहास-बोध कमाल का था।वे चीता श्री के सत्तर साल के सफ़र को याद कर रहे थे,तभी बेटे ने मोबाइल पर इससे बड़ी ब्रेकिंग-न्यूज़ दी।उसे एक मोटे पैकेज के साथ ‘चीता-चैनल’ में ऑफ़र मिल गया है।तब कहीं जाकर मेरे दिल को चैन आया।


संतोष त्रिवेदी


एक पुल की आत्मकथा

मैं एक गिरा हुआ पुल हूँ।अभी हाल में गिरा हूँ।सबके सामने , दिन - दहाड़े।मेरे पास मनुष्यों की तरह गिरने के अलावा कोई विकल्प...